
बिहार एक और सामाजिक क्रांति के प्रति अपनी एकजुटता दिखाने जा रहा है. सूबे में इस साल फिर 21 जनवरी को सामाजिक बुराई के खिलाफ ऐतिहासिक मानव श्रृंखला बनाने की तैयारी है. यह मानव श्रृंखला बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ होगी. इससे पहले साल 2017 में बिहार ने शराब जैसी बुराई के खिलाफ इसी तरह की एकजुटता दिखाकर मानव श्रंखला बनाई थी, जिसमें चार करोड़ से अधिक लोग शामिल होकर लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड बनाया था. इसी बार फिर ऐसा ही अवसर है.
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी हर जनसभा में कहते आ रहे हैं कि दहेज और बाल विवाह एक सामाजिक कुरीति है. इससे सभी वाकिफ भी हैं. इसे जड़ से मिटाना बहुत जरूरी है. नशा मुक्ति के बाद अब बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसी कुरीति पर कड़ी चोट करने का वक्त आ गया है. हमारे यहां करीब 39 प्रतिशत बाल विवाह होते हैं. जो लोग बाल विवाह गांव-देहात में करते हैं, उसका कारण उनकी सोच है. ऐसे लोगों का मानना है कि जब बच्ची बड़ी हो जाएगी, तो दहेज ज्यादा लगेगा. लिहाजा मुख्यमंत्री ने तय किया है कि बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ सशक्त अभियान चलाया जाएगा.
इस अभियान की शुरूआत बापू के जन्मदिन पर 2 अक्टूबर 2017 से कर दी गई है. इस बाबत कानून तो साल 1961 से ही बन गया था. इसके बावजूद दहेज प्रथा का कुप्रभाव बढ़ता चला जा रहा है. बाल विवाह में उतनी कमी नहीं आ रही है, तो ऐसी स्थिति में एक सशक्त अभियान चलाने की जरूरत है. हाल ही में एक सर्वे में पाया गया कि बाल विवाह के कारण 15 से 19 आयु वर्ग की 12.2 प्रतिशत किशोरियां मां बन गईं या फिर गर्भावती हो गईं. बच्चों को जन्म देने के दौरान 15 वर्ष से कम उम्र की बालिकाओं की मृत्यु की संभावना 20 वर्ष की उम्र वाली महिलाओं की अपेक्षा पांच गुणा अधिक होती है.
बाल विवाह के दुष्परिणाम सिर्फ बालिकाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अगली पीढ़ी को भी प्रभावित करते हैं. बाल विवाह की वजह से लड़कियों का शारीरिक, मानसिक और मनोवैज्ञानिक विकास बुरी तरह प्रभावित हो जाता है. कम उम्र में गर्भधारण करने के कारण माताएं अस्वस्थ और अविकसित शिशु को जन्म देती हैं. ऐसे बच्चे आगे चलकर बौनेपन और मंदबुद्दि के शिकार हो जाते हैं. अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के प्रतिवेदन के अनुसार बिहार राज्य में वर्ष 2006 से 2016 के बीच पांच वर्ष से कम आयु के करीब 40 प्रतिशत बच्चे बौनेपन का शिकार हुए हैं.
भेदभाव के चलते राज्य में बालिकाओं का शिशु मृत्यु दर 46 फीसदी और बालकों का 31 फीसदी है. दहेज प्रथा एक सामाजिक कुरीति है, जो कानूनन अपराध होने के बावजूद समाज में व्याप्त है. यह कुप्रथा समय के साथ और व्यापक हुई है. साथ ही समाज के सभी वर्गों, विशेषकर गरीब वर्गों, को प्रभावित कर रही है. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के वर्ष 2015 में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक महिला अपराध की दर में राष्ट्रीय स्तर पर बिहार का 26वां स्थान है, लेकिन दहेज मृत्यु के मामलों में दूसरे स्थान पर है. दहेज मृत्यु के मामलों में 2.3 के दर के साथ बिहार और उत्तर प्रदेश प्रथम स्थान पर हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत दर 1.3 प्रतिशत है.
बिहार हमेशा से नए प्रयोग करने वालों में अग्रणी रहा है. यह भूमि सिक्ख समाज, जैन समाज, बौद्ध समाज के अलावा भी कई धर्मावलंबियों के लिए तीर्थस्थल है. जब यहां शराबबंदी के लिए कदम उठे, तो सभी धर्मावलंबियों ने भी इसका समर्थन किया. साथ ही एक साल के अंदर ही बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ अभियान की शुरुआत में समाज का हर तबका कदम से कदम मिलाकर चलने को तैयार है.