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बाढ़ से बेहाल बिहार में जान बचाने के लिए 18 दिन पेड़ पर भूखे-प्यासे टंगे रहे 15 लोग

भागलपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर बगडेर गांव में बीते 18 दिन से 15 लोगों को पेड़ पर ही घर बनाकर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा.

मदद के लिए तरस गया परिवार मदद के लिए तरस गया परिवार
खुशदीप सहगल
  • भागलपुर,
  • 01 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 10:09 PM IST

बिहार में बाढ़ के दिल दहला देने वाले एक सच से आपको यहां रू-ब-रू कराने जा रहे हैं. बाढ़ पीड़ितों को मदद पहुंचाने के बिहार सरकार के तमाम दावों की कलई खोलती 'आज तक' टीम की ये रिपोर्ट है. भागलपुर से करीब 15 किलोमीटर दूर बगडेर गांव में बीते 18 दिन से 15 लोगों को पेड़ पर ही घर बनाकर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा. चारों तरफ पानी ही पानी और ये लोग भूखे-प्यासे पेड़ पर टंगे हुए राहतकर्मियों का टकटकी लगाए इंतजार ही करते रहे.

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18 दिनों से बाढ़ के बीच फंसा था परिवार
हैरानी की बात है कि 18 दिन में कोई राहतकर्मी इन लोगों तक नहीं पहुंच सका. इतने दिनों में 'आज तक' टीम पहली बार एसडीआरएफ (राज्य आपदा राहत बल) के जवानों के साथ राहत लेकर इन तक पहुंची. वहां 'आज तक' टीम ने जो देखा वो हैरान कर देने वाला था. लोगों ने पेड़ पर ही घर बना लिया था. बाढ़ से साइकिल आदि घर का जो जरूरी सामान बचाया जा सका वो भी पेड़ पर साथ ही टांग रखा था. लोगों ने बताया कि इतने दिनों में वो सत्तू खाकर ही किसी तरह अपनी जान बचाए रखी.

मदद के लिए तरस गया परिवार
पेड़ पर बसेरा डालकर रहने वाले लोगों में परमानंद मंडल का पूरा परिवार भी शामिल था. परमानंद के परिवार में पत्नी, दो बेटे, दो बेटियां भी शामिल हैं. परमानंद के मुताबिक बीते 18 दिन में उन्होंने जो झेला वो किसी से नर्क से कम नहीं था. नीचे उतर नहीं सकते थे क्योंकि चारों तरफ पानी के बीच सांप-बिच्छू के काटने का भी खतरा था.

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राहत शिविर में जाने से परिवार का इनकार
बुधवार को एसडीआरएफ के इंस्पेक्टर डी एन ओझा ने बगेडर में बाढ़ पीड़ितों तक राहत सामग्री पहुंचाई, साथ ही उन्हें राहत शिविर में पहुंचाने की बात कही. लेकिन परमानंद मंडल के परिवार ने शिविर में जाने से इनकार कर दिया. परमानंद का कहना था कि अगर वो चले गए तो जो कुछ सामान बचा है वो भी चोरी हो जाएगा.

बता दें कि बीते दिनों राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू यादव ने बाढ़ को लेकर बयान दिया था कि गंगा मैया घर के दरवाजे तक आ रही है तो लोगों को सौभाग्यशाली समझना चाहिए. ऐसे असंवेदनशील बयान देने वालों को बगडेर में पेड़ पर बसेरे को मजबूर इन लोगों के दर्द को जरूर देख लेना चाहिए था.

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