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मोदी के कारण टूटी 13 साल पुरानी दोस्ती, जुदा हुआ नीतीश का सियासी सारथी

नीतीश के हर कदम पर शरद साथ खड़े रहे, उनके राजनीतिक सारथी बनकर उन्हें सहारा देते रहे. नीतीश कुमार बिहार की सियासत संभालते रहे तो शरद दिल्ली के सियासी गलियारों और मीडिया के जरिए उनकी छवि में चार चांद लगाने का काम करते.

जेडयू नेता शरद यादव और बिहार के सीएम नीतीश कुमार जेडयू नेता शरद यादव और बिहार के सीएम नीतीश कुमार
कुबूल अहमद
  • पटना,
  • 19 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 4:15 PM IST

बिहार की सियासत में नई इबारत लिखने के लिए 30 अक्टूबर 2003 को नीतीश कुमार को शरद यादव के रूप में जो सियासी सारथी मिला था. आज वक्त और हालात ने ऐसे सियासी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है कि वही सारथी उनसे जुदा हो गया. जबकि इन 13 सालों में नीतीश के लिए शरद हमेशा ढाल की तरह रहे, चाहे लालू सत्ता का सिंहासन छीनने की बात रही हो या फिर मोदी के नाम पर एनडीए से अलग राह चलने की.

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कैसे बनी थी जेडीयू

दरअसल मुख्यमंत्री बिहार की सत्ता से लालू प्रसाद यादव को बेदखल करने के लिए शरद यादव , नीतीश कुमार और राम विलास पासवान एक जुट हुए. नीतीश कुमार की समता पार्टी, जिसके अध्यक्ष जार्ज फर्नाडीज थे और  पासवान की लोकशक्ति पार्टी ने शरद यादव की जनता दल के साथ मिले और फिर बना जनता जनता दल (युनाइटेड).  इसमें समता पार्टी का चुनाव निशान तीर को लिया गया और पार्टी व झंडा शरद यादव की जनता दल के नाम पर जेडयू रखा गया. जबकि कुछ दिन के बाद पासवान अलग होकर अपनी पार्टी एलजेपी अलग बना ली, लेकिन शरद यादव नीतीश का साथ नहीं छोड़ा.

नीतीश को मिला था शरद का सहारा

बिहार की सत्ता के सिंहासन पर काबिज होने के लिए नीतीश कुमार ने शरद यादव के मजबूत कंधों का सहारा लिया था. इसके बाद बीजेपी से भी हाथ मिलाया और 24 अक्टूबर 2005 में लालू प्रसाद यादव के सियासी तिलिस्म को तोड़कर सूबे की सत्ता की चाबी अपने हाथ में ली.

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ढाल बने रहे शरद यादव

नीतीश के हर कदम पर शरद साथ खड़े रहे, उनके राजनीतिक सारथी बनकर उन्हें सहारा देते रहे. नीतीश कुमार बिहार की सियासत संभालते रहे तो शरद दिल्ली के सियासी गलियारों और मीडिया के जरिए उनकी छवि में चार चांद लगाने का काम करते. यही नहीं शरद के जरिए नीतीश कुमार मुस्लिम मतों और यादव मतों को जोड़ने में कामयाब हुए हैं. जबकि पहले ये दोनों समुदाय के वोट बैंक के साथ हुआ करते थे. जेडयू का बीजेपी के साथ होने के बावजूद मुस्लिम और यादवों का बड़ा तबका उनके साथ जुड़ गया था. जिससे लालू की आरजेडी सूबे में आखरी सांसे लेने लगी थी.

मोदी के नाम पर ही अलग हुए थे

सितंबर 2013 में बिहार की सियासत ने नई करवट ली. ये वही समय था जब बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के नाम का एलान किया तो नीतीश कुमार ने अपना नाता ही तोड़ लिया. नीतीश कुमार पिछले 13 साल से एनडीए के साथ हैं. अटल सरकार में वे मंत्री थे.  ऐसे मुश्किल वक्त में शरद यादव आगे कर मोढ़ा थामा. शरद दिल्ली में सियासी बिसात बिछाकर नीतीश कुमार की ढाल बने. शरद यादव ने साफ किया कि हमारी पार्टी लाइन सेक्युलर है अगर मोदी आते है, तो हम बीजेपी के इस लाइन पर साथ नहीं चल सकते. जबकि शरद और मोदी के बीच किसी तरह राजनीतिक वर्चस्व की बात नहीं थी. वहीं नीतीश और मोदी के बीच सियासी वर्चस्व की जंग जरूर थी. बावजूद इसके शरद ने नीतीश के बचाव में खड़े हुए. एक सच्चे सारथी के नाते वो साथ देते रहे.

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अब मोदी के कारण ही टूटी दोस्ती

लोकसभा 2014 चुनाव में बिहार में एनडीए ने 40 में से 33 सीटें जीती थी. नीतीश की पार्टी सिर्फ दो सीटों पर सिमटकर रह गई. ऐसे में नीतीश के सामने अपने वजूद को बचाए रखने का संकट खड़ा हुआ तो शरद यादव फिर उनके सारथी बने. शरद ने लालू प्रसाद यादव के जरिए मिलकर फिर बिहार में महागठबंधन बना. 2015 के सूबे के चुनाव में बीजेपी को शिकस्त देकर नीतीश सत्ता बरकरार रखी. लेकिन जुलाई 2017 में लालू और नीतीश के बीच दरार हो गई फिर वे भ्रष्टाचार के मामले का आरोप लगाकर लालू का साथ छोड़ दिया और बीजेपी से हाथ मिला लिया. केंद्र की एनडीए का हिस्सा भी बनने जा रहे हैं. शरद इस खबर से बेखर थे. इसी वजह से शरद ने नीतीश के खिलाफ बगावत का झंडा उठा लिया. ऐसे में नीतीश का 13 साल पुराना सारथी जुदा हो गया. यानी नीतीश 13 साल की दोस्ती जहां बीजेपी से तोड़ी थी तो वहीं 13 साल पुराने साथी को भी अब छोड़ दिया है.

 

 

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