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टॉपर घोटाला: बच्चा राय के कॉलेज को 24 घंटे के अंदर मिला था टेम्पररी एफिलिएशन

संयुक्त सचिव सुनील कुमार सिंह का कहना है कि पत्र पर हस्ताक्षर करना उनकी मजबूरी थी, क्योंकि फाइल पर उच्च शिक्षा निदेशक खालिद मिर्जा और तत्कालीन शिक्षा मंत्री पीके शाही का अनुमोदन प्राप्त था.

बिहार में टॉपर घोटाले का मास्टरमाइंड बच्चा राय बिहार में टॉपर घोटाले का मास्टरमाइंड बच्चा राय
अंजलि कर्मकार/सुजीत झा
  • पटना,
  • 03 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 7:21 AM IST

बिहार शिक्षा माफिया और इंटर टॉपर घोटाले के मास्टरमाइंड बच्चा राय के चार डिग्री कॉलेजों को निगरानी विभाग ने सारे नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए क्लीन चिट दे दी थी, जिसका खुलासा 'आजतक' पहले ही कर चुका है. इस खुलासे के बाद 'आजतक' को बिहार सरकार के दो और पत्र मिले, जो यह साबित करने के लिए काफी है कि बच्चा राय की जड़ें शिक्षा विभाग के अंदर कितनी गहराई तक जा चुकी थी. शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने 24 घंटे के अंदर बच्चा राय के राजदेव राय डिग्री कॉलेज को पांच सत्रों के लिए टेम्पररी एफिलिएशन दे दिया था.

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बैक डेट में मिला एफिलिएशन
हैरानी की बात है कि जहां एक तरफ शिक्षा विभाग 31 अगस्त 2005 को एक पत्र विश्वविद्यालय को लिखकर एफिलिएशन देने के लिए सूचनाएं मांग रही थी. वहीं, 24 घंटे के अंदर विश्वविद्यालय के जवाब का इंतजार किए बिना दूसरा पत्र जारी हो जाता है. इसमें बच्चा राय के कॉलेज को साइंस, आर्ट्स और कॉमर्स के कई विषयों की मान्यता बैक डेट में मिल जाती है. 1 सितंबर 2015 को पत्र जारी होता है और कॉलेज को 2010-11 से 2014-15 तक एफिलिएशन दे दिया जाता है.

पीके शाही थे तत्कालीन शिक्षा मंत्री
सवाल ये है कि शिक्षा विभाग में उस वक्त ऐसे कौन अधिकारी और मंत्री थे, जिन्होंने नियमों की परवाह किए बिना बच्चा राय की खातिर नीतीश सरकार की छवि पर बट्टा लगा दिया. उस समय पीके शाही बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री और खालिद मिर्जा उच्च शिक्षा निदेशक थे. खालिद मिर्जा ने ही पत्रांक 14-ए.एफ-09/2015-1320 दिनांक 31 अगस्त 2015 के माध्यम से बच्चा राय के कॉलेज को एफिलिएशन देने के लिए विश्व विध्यालय से कुछ सूचनाएं मांगी, लेकिन 24 घंटे बाद ही शिक्षा विभाग के संयुक्त सचिव ने निर्देशानुसार बच्चा राय के राजदेव राय डिग्री कॉलेज को टेम्पररी एफिलिएशन देने की मंजूरी दे दी.

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क्या कहते हैं संयुक्त सचिव
संयुक्त सचिव सुनील कुमार सिंह का कहना है कि पत्र पर हस्ताक्षर करना उनकी मजबूरी थी, क्योंकि फाइल पर उच्च शिक्षा निदेशक खालिद मिर्जा और तत्कालीन शिक्षा मंत्री पीके शाही का अनुमोदन प्राप्त था. इस बाबत जब उच्च शिक्षा निदेशक खालिद मिर्जा से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.

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