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छत्तीसगढ़: 15 साल में कांग्रेस की पहली जीत, ये 5 कारण पड़े रमन सिंह पर भारी

किसान लगातार फसलों के दाम को लेकर बीजेपी के खिलाफ प्रदर्शन करता आया है, जिसका जबर्दस्त नुकसान चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ा.

रमन सिंह  (फाइल फोटो) रमन सिंह (फाइल फोटो)
मोहित ग्रोवर
  • नई दिल्ली,
  • 11 दिसंबर 2018,
  • अपडेटेड 4:16 PM IST

छत्तीसगढ़ से आ रहे रुझानों में भारतीय जनता पार्टी का सूपड़ा साफ होता दिख रहा है.  90 सीटों में से कुल 58 सीटों पर कांग्रेस आगे चल रही है और बीजेपी सिर्फ 23 सीटों पर सिमट गई है. जबकि पिछली बार बीजेपी 50 पार थी. छत्तीसगढ़ में बीजेपी की इस बड़ी हार के पीछे कई कारण हैं, पढ़ें किन मोर्चों पर बीजेपी इस बार फेल हुई है.

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1. रमन सिंह के खिलाफ एंटी इन्केंबंसी

2003 से राज्य में सरकार चला रही भारतीय जनता पार्टी को इस बार राज्य में एंटी इन्केंबंसी का सामना करना पड़ा. चुनाव से पहले ही रमन सिंह के खिलाफ माहौल दिख रहा था, जिसका रुख एग्जिट पोल ने भी दिखाया था. हालांकि, किसी को भी ये उम्मीद नहीं थी कि बीजेपी के गढ़ कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में रमन सिंह का इस तरह सूपड़ा साफ होगा.

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2. किसानों की नाराजगी

रमन सिंह भले ही राज्य में चावल वाले बाबा के नाम से मशहूर हों, लेकिन किसानों की नाराजगी उन पर इस बार भारी पड़ी है. किसानों के बीच रमन सिंह सरकार के खिलाफ गुस्सा वोटों में निकल कर आया. किसान लगातार फसलों के दाम को लेकर बीजेपी के खिलाफ प्रदर्शन करता आया है, जिसका जबर्दस्त नुकसान चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ा.

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3. चल गया कर्जमाफी का मास्टरस्ट्रोक

राज्य में किसान रमन सिंह की सरकार से नाराज था. इसका फायदा कांग्रेस ने पूरी तरह उठाया. कांग्रेस के घोषणापत्र में किया गया किसानों की कर्जमाफी के वायदे ने मास्टरस्ट्रोक की तरह काम किया. यही कारण रहा है कि पूरे राज्य में कांग्रेस लहर दिखी.

4. नक्सलवाद पर नाकामी

रमन सिंह की हार का बड़ा कारण इस बार नक्सलवाद पर नाकामी भी रही. नक्सलवादी क्षेत्रों में लगातार हमले होते गए और इस बार इन क्षेत्रों में बंपर मतदान भी हुआ. जाहिर है कि नतीजे बता रहे हैं कि ये बंपर वोटिंग रमन सिंह की सरकार के खिलाफ ही थी. नक्सलवादी क्षेत्रों में बक्सर, दंतेवाड़ा जैसी सीटें आती हैं. 

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5. दलित-आदिवासियों ने बिगाड़ा कांग्रेस का खेल

छत्तीसगढ़ में कुल 31.8 फीसदी मतदाता आदिवासी समुदाय से हैं और 11.6 फीसदी वोटर दलित हैं, यानी राज्य की सत्ता की चाबी उनके पास ही है. अभी तक आए रुझानों में दलित-आदिवासी बहुल इलाकों में बीजेपी को बुरी हार मिलती दिख रही है. जबकि बीजेपी सिर्फ शहरी इलाकों में ही अच्छा प्रदर्शन कर रही है.

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