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छत्तीसगढ़ में फर्जी गूगल इमेज से अवैध तरीके से बनी इमारतों को वैध करने का काम जोरों पर चल रहा है. राज्य सरकार ने एक आदेश जारी कर बगैर अनुमति हुए निर्माण को वैधानिक करार देने की प्रक्रिया शुरू की थी. प्रक्रिया में टैक्स भरके अवैध निर्माण का नियमितीकरण किया जाना था.
आदेश में कहा गया था कि 30 अगस्त 2016 के पहले निर्मित मकानों का ही नियमितीकरण किया जा सकता है. इसके लिए अवैध निर्माण की नाप जोख के साथ-साथ पूरे रकबे का ब्यौरा प्रस्तुत किया जाना था. यह शर्त भी अनिवार्य की गई थी कि अगस्त 2016 के पूर्व की गूगल इमेज भी आवेदन के साथ लगाई जाए. लेकिन बड़ी तादाद में लोगों ने 2016 के बाद की गूगल इमेज लगाकर अपना आवेदन जमा कर दिया. गूगल इमेज में छेड़छाड़ करके हजारों अवैध निर्माण को वैध करने का गोरखधंधा जोरों पर चल रहा है. इस मामले में दो आर्किटेक्ट और एक इंजिनियर को नगरीय प्रशासन विभाग ने नोटिस जारी किया है.
राज्यभर में अवैध निर्माण को वैध करने के लिए एक लाख से ज्यादा आवेदन राज्य के टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग को प्राप्त हुए हैं. फिलहाल मात्र 18 फीसदी प्रकरणों का निराकरण किया गया है. इन्हें वैध बनाने में सरकार को 34 करोड़ की रकम बतौर जुर्माने के तहत मिली है. नगरीय प्रशासन विभाग के अफसरों का दावा है कि 31 मार्च 2018 के पहले सभी मामले निपटा दिए जाएंगे.
उधर, अवैध निर्माण को वैध करार देने की प्रक्रिया ने बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को हवा दे दी है. व्यवसायिक भवनों , दुकानों , बड़ी इमारते , होटल और व्यवसायिक उपयोग में किराए पर दी जाने वाली इमारतों के अलावा हाउसिंग कॉमप्लेक्स के कई ऐसे अवैध निर्माण को वैध बनाने करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, जो कभी भी खतरनाक साबित हो सकती हैं.
कई इमारतों में ना तो पर्याप्त रौशनी की व्यवस्था है और ना ही फायर फाइटिंग सिस्टम का कोई प्रबंध. इसके बावजूद उन्हें जुर्माना अदा कर वैधता प्रदान की जा रही है. टॉउन एन्ड कंट्री प्लानिंग और नगर निगम के पास इतना अमला नहीं है कि वो आवेदकों के प्रकरणों का निपटारा करते समय स्थल परीक्षण कर सके. नतीजतन खतरनाक और हादसों के अंदेशे वाले अवैध निर्माण भी सुनियोजित रूप से वैध हो रहे हैं.