
छत्तीसगढ़ में पांच साल बाद भी झीरम घाटी हत्याकांड की हकीकत सामने नहीं आने पर राज्य की कांग्रेस सरकार ने कड़ा एतराज जाहिर किया है. छत्तीसगढ़ सरकार को इस मामले में NIA की पूरी रिपोर्ट का इंतजार है. इसके लिए सरकार ने NIA को पत्र लिखकर घटना का पूरा ब्योरा और केस की वापसी करने की मांग की है, ताकि SIT जांच जल्द शुरू हो सके.
बता दें कि 25 मई 2013 को बस्तर के झीरम घाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर ताबड़तोड़ हमला कर 35 नेताओं और कार्यकर्ताओं को मौत के घाट उतार दिया था. इस हमले में कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल, पूर्व मंत्री महेंद्र कर्मा, पूर्व विधायक उदय मुदलियार को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया था.
SIT जांच कराएगी कांग्रेस
इस घटना के तीन दिन बाद राज्य की तत्कालीन बीजेपी सरकार ने एक न्यायिक आयोग का गठन किया था. लेकिन पांच साल बाद भी रिपोर्ट नहीं आने पर कांग्रेस सरकार ने इसे राजनैतिक षड्यंत्र करार देते हुए पूरी घटना की SIT से जांच कराने का फैसला किया.
छत्तीसगढ़ सरकार के मंत्रालय में NIA की विस्तृत जांच रिपोर्ट का इंतजार हो रहा है. राज्य की कांग्रेस सरकार ने NIA को पत्र लिखकर झीरम कांड का पूरा ब्योरा मांगा है. छत्तीसगढ़ में पांच साल पहले हुए झीरम घाटी हमले की जांच अब स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम से कराई जाएगी. यह जांच शुरू हो इससे पहले NIA से अब तक हुई जांच का निष्कर्ष और फाइनल रिपोर्ट के अलावा केस वापसी की मांग की गई है. राज्य के पुलिस महानिदेशक ने NIA को इस बारे में पत्र लिखा है.
NIA ने इतने बड़े हमले की जांच में न तो बस्तर के तत्कालीन एसपी और आईजी से पूछताछ की और न ही दूसरे जिम्मेदार पुलिस और प्रशासन के अफसरों से. NIA ने अपनी जांच के बाद जो चार्जशीट पेश की थी उसमें कांग्रेस ने कई खामियां पाई थीं. लेकिन तत्कालीन सरकार ने उसकी किसी भी आपत्ति को गंभीरता से नहीं लिया. लिहाजा पार्टी को अंदेशा है कि इस घटना को राजनैतिक षड्यंत्र के तहत अंजाम दिया गया है. मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने NIA से जल्द से जल्द इस घटना का पूरा ब्योरा मांगा है, ताकि SIT जांच को जल्द शुरू किया जा सके.
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि यह राजनैतिक साजिश का हिस्सा है. उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं और चुनिंदा नेताओं को षड्यंत्र के तहत मारा गया. अब SIT जांच से हकीकत सामने आएगी. राज्य के डीजीपी डीएम अवस्थी का कहना है कि NIA से पूरा केस वापस मांगा गया है. उन्होंने इसके लिए चिट्ठी भी NIA को भेजी है. उन्होंने SIT के सदस्यों के नामों का खुलासा करने से इंकार कर दिया. इस घटना से पीड़ित राज्य के कैबिनेट मंत्री उमेश पटेल ने उम्मीद जाहिर की कि उनकी सरकार इस राजनैतिक षड्यंत्र का सच सबके सामने लाएगी और गुनाहगारों को सजा भी मिलेगी.
पांच साल बाद भी नहीं पूरी हुई जांच
NIA की जांच के अलावा राज्य की तत्कालीन बीजेपी सरकार ने झीरम घाटी हत्याकांड की जांच के लिए 28 मई 2013 को एक न्यायिक आयोग का गठन किया था. हाईकोर्ट के न्यायाधीश प्रशांत कुमार मिश्रा की अध्यक्षता में गठित इस न्यायिक आयोग को तीन माह के भीतर अपनी जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपनी थी, लेकिन आज पांच साल बाद भी यह आयोग झीरम घाटी हत्याकांड की जांच पूरी नहीं कर पाया है. अलबत्ता उसके कार्यकाल में साल दर साल लगातार वृद्धि की जा रही है.
न्यायिक आयोग ने अब तक 70 लोगों के बतौर गवाह बयान दर्ज किए है. इसमें से 50 निजी व्यक्ति है जबकि 20 सरकारी गवाह है. तत्कालीन बीजेपी सरकार की जांच की मंशा पर सवालिया निशान लगाने और पुलिस के कई अधिकारियों की संदिग्ध भूमिका के कांग्रेस के आरोपों को स्वीकारते हुए रमन सिंह सरकार ने विधानसभा में इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की घोषणा भी की थी. लेकिन NIA की जांच और न्यायिक आयोग के गठन का हवाला देकर सीबीआई ने इस मामले को जांच के लिए उपयुक्त नहीं माना. उधर पुलिस मुख्यालय ने SIT गठन की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है. नक्सली मामलों और क्राइम कंट्रोल से जुड़े चुनिंदा अफसरों का पैनल तैयार किया जा रहा है. SIT के जांच के बिंदु भी तय किए जा रहे हैं.
सिर्फ छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि देश में राजनेताओं की एक साथ हत्या की दृष्टि से यह सबसे बड़ा मामला है. कांग्रेसियों की दलील है कि परिवर्तन यात्रा की सुरक्षा को पूरी तरह से जानबूझकर नजरअंदाज किया गया. जबकि प्रोटोकाल के तहत उसके सभी बड़े नेताओं की सुरक्षा की जवाबदेही छत्तीसगढ़ पुलिस और राज्य सरकार की थी. बस्तर में परिवर्तन यात्रा के दौरान रोड ओपनिंग पार्टी को अचानक हटा लिया गया था. कांग्रेस की यह भी दलील है कि नक्सलियों का इतना बड़ा जमघट झीरम घाटी में मौजूद था, लेकिन इसकी जानकारी पुलिस और ख़ुफ़िया विभाग को क्यों नहीं थी यह सोचनीय है. और तो और 35 महत्वपूर्ण व्यक्तियों की जान जाने के बावजूद किसी भी पुलिस अधिकारी के खिलाफ न तो बीजेपी सरकार ने कार्रवाई की और न ही इस घटना के लिए किसी को जिम्मेदार ठहराया.
यही नहीं इन वर्षों में झीरम घाटीकांड को लेकर नक्सलियों और कुछ संदेहास्पद प्रभावशाली व्यक्तियों की सीडी भी सामने आई थी, लेकिन राज्य सरकार ने इसकी भी जांच से पल्ला झाड़ लिया. लिहाजा SIT गठित कर झीरम घाटी के पीड़ितों के दुखों पर मरहम लगाने की कोशिश कांग्रेस सरकार ने की है.