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छत्तीसगढ़ में घट गया जंगल का रकबा, हाई कोर्ट ने पूछा- कहां लग रहे पौधे

राज्य के हाई कोर्ट ने भी नोटिस जारी कर वन विभाग से पूछा है कि आखिर पौधे लग कहां रहे है. और लग रहे हैं तो जंगल का रकबा क्यों घट गया. दरअसल वृक्षारोपण होने के बावजूद वर्ष 2001 से 2015 तक लगभग 3700 वर्ग किमी जंगल कम हो गया है.

सीएम रमन सिंह (फाइल) सीएम रमन सिंह (फाइल)
सुनील नामदेव/रणविजय सिंह
  • रायपुर,
  • 30 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 9:59 PM IST

छत्तीसगढ़ में प्रतिवर्ष करोड़ों पौधे के रोपण होने के बावजूद 15 वर्षों में छत्तीसगढ़ में जंगल कम हो गए हैं. छत्तीसगढ़ में बीते 15  सालों में जंगल बढ़ने के बजाए घट गए. जबकि सालाना बारिश के मौसम में 500 करोड़ से ज्यादा की रकम प्लांटेशन में खर्च की जाती है. हर साल वन विभाग दावा करता है कि वो एक करोड़ से ज्यादा पौधे लगा रहा है. लेकिन ये पौधे कहां लग रहे हैं यह रहस्‍य बना हुआ है.

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राज्य के हाई कोर्ट ने भी नोटिस जारी कर वन विभाग से पूछा है कि आखिर पौधे लग कहां रहे है. और लग रहे हैं तो जंगल का रकबा क्यों घट गया. दरअसल वृक्षारोपण होने के बावजूद वर्ष 2001 से 2015 तक लगभग 3700 वर्ग किमी जंगल कम हो गया है. इसका खुलासा सरकार की रिपोर्ट में हुआ है. मामले की जांच को लेकर हाई कोर्ट का नोटिस जारी होने के बाद वन विभाग के आला अफसर बगले झांक रहे है. दरअसल राज्य में 8-10 सालों में सिर्फ कागजों में पौधा रोपण हुआ. और उस पर खर्च हुई रकम अफसरों की तिजोरी में चली गई. RTI कार्यकर्ताओं के मुताबिक अफसरों ने पौधा रोपण के नाम पर 15 सौ करोड़ से ज्यादा की रकम डकार ली.

यूं तो छत्तीसगढ़ में हर साल स्कूलों से लेकर जंगलों तक पर्यावरण दिवस जोरशोर से मनाया जाता है. VIP की मौजूदगी में प्लांटेशन का कार्यक्रम भी खूब होता है. चंद पौधों का रोपण करने के बाद वन विभाग आंकड़े जारी करता है कि उसने बारिश के चार माह में एक करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए. पौधा रोपण का यह टारगेट फिक्स होता है. ये पौधे शहरी इलाकों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक लगाए जाते हैं.

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इसके अलावा जंगलों में बड़े पैमाने पर पौधा रोपण का दावा कर वन विभाग अपनी पीठ थपथपाता है. राज्य में 2001 से लेकर 2015 तक कभी हरीहर छत्तीसगढ़ योजना तो कभी मुख्यमंत्री बाड़ी बांस योजना तो कभी ऑक्सीजन जोन के नाम पर करोड़ों पौधों का रोपण बताया गया.

इन वर्षों में वन विभाग ने पौधा रोपण के नाम पर करोड़ों रकम खर्च कर दी, लेकिन वो पौधे ना तो जंगलों में दिखाई दिए और ना ही आबादी से दूर खुली बस्तियों में. तो सवाल ये उठता है कि आखिर ये पौधे कहां गए?

राज्य में बड़े पैमाने पर पौधा रोपण के नाम पर जनता की गाढ़ी कमाई हथियाने के आरोप वन विभाग पर लग रहे हैं. RTI कार्यकर्ताओं ने घोटाले के पूरे साक्ष्‍य छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट को सौंपे हैं. इस पर हाई कोर्ट ने तीन हफ्ते के भीतर वन विभाग से पौधा रोपण का पूरा ब्योरा मांगा है.

RTI कार्यकर्ता राकेश चौबे के मुताबिक हरियर छत्तीसगढ़ के नाम से प्रदेश में एक बड़ा घोटाला हुआ है. इसमें वन विभाग के आला अधिकारी और मंत्री तक शामिल हैं. उनके मुताबिक RTI से मिले तमाम दस्तावेजों को हाई कोर्ट ने परखा. फिर वन विभाग को नोटिस जारी कर प्लांटेशन का पूरा ब्योरा मांगा है. उन्होंने मामले की सीबीआई जांच की मांग की. उधर राज्य के वन मंत्री महेश गागड़ा ने इस बात की पुष्टि की है कि बड़े पैमाने पर जंगलों का रकबा घटा है. इसकी जांच के लिए उन्होंने वन विभाग की टीम गठित करने के निर्देश दिए हैं.

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हरिहर छत्तीसगढ़ 2017 के तहत 8 करोड़ 2 लाख पौधे लगाए गए हैं. 2016 में 7 करोड़ 60 लाख पौधे लगाए गए थे. और 2015 में 10 करोड़ पौधे लगाए गए थे. छत्तीसगढ़ निर्माण के पश्चात् लगातार वृक्षारोपण होने के बावजूद वर्ष 2001 से 2015 तक लगभग 3700 वर्ग किमी जंगल कम हो गया है. अब लोगों की निगाहें वन विभाग के जवाब पर टिकी हुई है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक, गर्मियों में ही वृक्षारोपण के लिए गड्ढे खोद लिए जाने चाहिए. वृक्षों की देखरेख 3 वर्षों तक होनी चाहिए. वन विभाग ने 2013 में निर्देश दिए थे कि हर हालत में 20 जुलाई तक वृक्षारोपण कार्य पूर्ण हो जाना चाहिए. बरसात या विषम परिस्थितियों हो तो 31 जुलाई तक वृक्षारोपण किया जा सकता है, लेकिन उसके लिए मुख्यालय से अनुमति लेनी होगी. लेकिन कभी भी वन विभाग ने अपने इन निर्देशों के पालन कोई जानकारी नहीं दी. न तो गर्मियों में पौधा रोपण के लिए गड्ढे खोदे और ना ही बारिश के मौसम में. गड्ढे उन्ही जगहों पर खोदे गए, जहां VIP और जन प्रतिनिधियों को पौधा रोपण करना था.

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