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नक्सली खौफ के चलते ग्रामीण नहीं बना पा रहे हैं आधार कार्ड!

बीजापुर के गंगालूर गांव में रहने वाली यशोबाई का हाल भी कुछ ऐसा ही है. इस आदिवासी महिला ने चार बार बीजापुर डाक ऑफिस के चक्कर काटे लेकिन अपना आधार कार्ड बनवाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
सुनील नामदेव
  • रायपुर,
  • 04 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 11:25 PM IST

छत्तीसगढ़ के बीजापुर और जगदलपुर में आधा दर्जन से ज्यादा ऐसे गांव हैं जहां नक्सलियों की खौफ की वजह से ग्रामीणों के आधार कार्ड नहीं बन पाए हैं. आधार कार्ड नहीं होने की वजह से ग्रामीणों को सरकारी राशन दुकानों से खाने-पीने की वस्तुओं को खरीदने के लिए कड़ी मशक्त करनी पड़ रही है. दरअसल नक्सलियों के कब्जे वाले इस गांव में नक्सली नेताओं ने फरमान जारी कर रखा है कि किसी भी ग्रामीण ने यदि आधार कार्ड बनवाया तो उसकी खैर नहीं. जान जाने की चिंता के चलते ग्रामीणों ने आधार कार्ड बनवाने में कोई रूचि नहीं दिखाई. लेकिन अब यही आधार कार्ड उनकी मुसीबत का कारण बन गया है.

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बीजापुर के गंगालूर गांव में रहने वाली यशोबाई का हाल भी कुछ ऐसा ही है. इस आदिवासी महिला ने चार बार बीजापुर डाक ऑफिस के चक्कर काटे लेकिन अपना आधार कार्ड बनवाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई. इसके पहले सरकारी अफसरों का एक दल ग्रामीणों के आधार कार्ड बनाने साल भर पहले यशो के गांव आया था. लेकिन नक्सलियों ने उन्हें बैरंग लौटा दिया. मारे नक्सली खौफ के सरकारी अफसरों की टीम ने दूसरी बार इस गांव का रुख ही नहीं किया. लेकिन सरकारी अफसर ये जरूर बता गए कि जिस किसी को भी आधार कार्ड बनवाना हो तो वो बीजापुर ब्लॉक ऑफिस आ जाए. यशोबाई ही नहीं उसके साथ कई ग्रामीण तीन चार बार ब्लॉक ऑफिस गए. लेकिन जैसे ही उन्हें नक्सली नाफरमानी की याद आई उनकी हिम्मत टूट गई. ये लोग बगैर आधार कार्ड बनवाए वापस अपने गांव लौट आए. उधर सरकारी राशन दुकानों में आधार कार्ड के लिंक ना होने से ग्रामीणों को खाने-पीने की वस्तुओं के लिए दो चार होना पड़ रहा है.

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ये हाल सिर्फ यशोबाई का ही नहीं है. आधा दर्जन से ज्यादा गांव के लगभग 40 हजार ग्रमीणों का आधार कार्ड नहीं बन पाया है. वजह सिर्फ नक्सली खौफ. नक्सली नहीं चाहते कि उनके कब्जे वाले इलाकों में कोई भी सरकारी सुख सुविधा पहुंचे. वो सरकारी योजनाओं का ना केवल विरोध कर रहे हैं बल्कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन करने वाले सरकारी अमले को मौत के घाट उतारने की चेतावनी दे रहे हैं. बस्तर में जंगल के भीतर बसी आदिवासियों की एक बड़ी आबादी खाने-पीने की वस्तुओं के लिए सरकारी राशन दुकानों पर निर्भर है. खुले बाजार में दाल, चावल और चना महंगा होने के चलते वे इसे PDS की दुकानों से ही खरीदते हैं. लेकिन इन दुकानों पर भी नक्सलियों ने अपना पहरा लगा दिया है.

 

उधर पुलिस हालात पर निगाह रखे हुए है. वो लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिला रही है. ग्रामीणों को आधार कार्ड बनाने के लिए प्रोत्साहित भी कर रही है. लेकिन नक्सली खौफ के चलते उसकी तमाम कोशिशें बेअसर साबित हो रही हैं. PDS सिस्टम की खामियां दूर करने और सरकारी राशन दुकानों में अनाज की हेराफेरी रोकने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने आधार कार्ड को राशन दुकानों से लिंक करवाना अनिवार्य कर दिया है. इन दुकानों से रियायती दर पर उन्हें ही अनाज मुहैया हो पाएगा जिनके पास आधार कार्ड है. ऐसे में ये आदिवासी राशन पानी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं.

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