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छत्तीसगढ़ में जब्त हुई नक्सली पाठ्यक्रम की पुस्तकें, सरकार हैरत में

स्कूलों में नक्सली सिलेबस की पढ़ाई को लेकर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान हैरत में हैं. सरकार को सुचना दी गई है कि जंगलों के भीतर बसे गांव में नक्सलियों ने किस तरह से नक्सली पाठ्यक्रम की पढ़ाई शुरू करवाई है.

छत्तीसगढ़ में जब्त हुई नक्सली पाठ्यक्रम की पुस्तकें छत्तीसगढ़ में जब्त हुई नक्सली पाठ्यक्रम की पुस्तकें
सुनील नामदेव
  • रायपुर,
  • 02 मई 2017,
  • अपडेटेड 7:01 AM IST

स्कूलों में नक्सली सिलेबस की पढ़ाई को लेकर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान हैरत में हैं. सरकार को सुचना दी गई है कि जंगलों के भीतर बसे गांव में नक्सलियों ने किस तरह से नक्सली पाठ्यक्रम की पढ़ाई शुरू करवाई है. नक्सली साहित्य पढ़ाने से इंकार करने वाले शिक्षकों, पंच सरपंचों को ना केवल मौत के घाट उतारने का फरमान सुनाया गया है बल्कि उन स्कूलों को ही बारूदी सुरंगों से उड़ा दिया गया है. बस्तर में सुकमा, दंतेवाड़ा, कांकेर, नारायणपुर, बीजापुर और अभुझमाड़ में कई स्कूलों को नक्सलियों ने इसलिए आग के हवाले कर दिया क्योंकि वहां शिक्षकों ने उनके निर्देश के बावजूद स्कूली बच्चों को नक्सली पाठ्यक्रम नहीं पढ़ाया.

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बस्तर के माड़ इलाके में पुलिस और नक्सली मुठभेड़ के दौरान जब्त सामग्रियों में नक्सली पाठ्यक्रमों का खुलासा हुआ है. आमतौर पर नक्सली दण्डकारण्य राज्य की स्थापना, उनके मारे गए साथियों और क्रांतिकारी विचारों से जुड़े साहित्य का ही प्रचार-प्रसार करते थे. लेकिन अब नक्सलवाद की नई पौध को तैयार करने के लिए उन्होंने प्राथमिक स्कूलों में ही अपना पाठ्यक्रम लागू कर दिया है. सरकारी पढ़ाई-लिखाई के अलावा स्कूली बच्चों को नक्सली साहित्य और पाठ्यक्रम की पढ़ाई करना अनिवार्य है. शिक्षकों को भी नक्सली पाठ्यक्रम पढ़ाना होगा वरना वे भी मौत के घाट उतार दिए जाएंगे.

इन पुस्तकों को देख कर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि नक्सली आखिर किस सोच और तैयारी के साथ नक्सलवाद की फसल रोप रहे हैं. अपने दम खम वाले इलाकों में नक्सलियों ने पहली कक्षा से लेकर पांचवी कक्षा तक के स्कूली बच्चों के लिए नक्सली पाठ्यक्रम लागू किया है. नक्सली पाठ्यक्रमों को लेकर सरकार हैरत में है, लिहाजा जिन स्कूलों के भवनों को नक्सलियों ने ढहा दिया है वहां के बच्चों को दूसरे स्कूलों में शिफ्ट किया गया है. राज्य के स्कुल शिक्षा मंत्री के मुताबिक नक्सली बचपन से ही स्कूली बच्चों को नक्सलवाद से जोड़ने की कवायद में जुटे हैं.

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उधर इन इलाकों में रहने वाली एक बड़ी आबादी नक्सली पाठ्यक्रम को लेकर चिंता में है. उन्हें नहीं समझ में आ रहा है कि अपने घरों में रह कर उनके बच्चे देश के जिम्मेदार नागरिक बनेंगे या फिर हथियार उठा कर नक्सली. लिहाजा बड़ी तादाद में बच्चों को शहर और जिला मुख्यालयों में शिफ्ट कराया गया है.

बस्तर के अंदरूनी इलाकों के स्कूली बच्चों और शिक्षकों पर नक्सली साहित्य और पाठ्यक्रमों की भी मार पड़ रही है. शिक्षकों को इस बात का डर है कि नक्सलियों की नाफरमानी कहीं उनकी जान ना ले ले तो स्कूली बच्चे इस बात को लेकर चिंता में है कि इन इलाकों में रह कर आखिर उनके भविष्य का क्या होगा.

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