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छत्तीसगढ़: जशपुर में पत्थरगढ़ी आदिवासी आंदोलन को लेकर गहराया विवाद, धारा 144 लागू

पूर्व अधिकारियों को पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है. दरअसल, जशपुर के बगीचा विकास खंड के बटूंगा गांव में आदिवासियों ने एक पत्थर लगा कर जल, जंगल और जमीन पर अपना हक जाहिर करते हुए ग्राम सभा में पारित कानूनों का ही पालन करने का फरमान जारी था.

प्रदर्शन करते लोग प्रदर्शन करते लोग
अजीत तिवारी/सुनील नामदेव
  • जशपुर,
  • 30 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 10:48 PM IST

छत्तीसगढ़ के जशपुर में पत्थरगढ़ी मामले को लेकर छिड़ा विवाद अब और गहराने लगा है. इस मामले में बड़ी कार्रवाई करते हुए राज्य सरकार के निर्देश पर पुलिस ने पूर्व आईएएस अधिकारी एच.पी. किंडो और ओएनजीसी के पूर्व अधिकारी जोसेफ मिंज को गिरफ्तार कर लिया. दोनों अधिकारियों के खिलाफ शांति भंग, साम्प्रदायिक भावना भड़काने और सरकारी कार्य में हस्तक्षेप करने की धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज किया गया है.

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दोनों पूर्व अधिकारियों को पुलिस ने तत्काल गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया जहां से उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया गया है. दरअसल, जशपुर के बगीचा विकास खंड के बटूंगा गांव में आदिवासियों ने एक पत्थर लगा कर जल, जंगल और जमीन पर अपना हक जाहिर करते हुए ग्राम सभा में पारित कानूनों का ही पालन करने का फरमान जारी था.

पत्थरगढ़ी नामक आदिवासी आंदोलन के जरिये करीब दो दर्जन गांव के लोगों ने ऐलान किया था कि राज्य की बीजेपी सरकार उनके हितों का कुछ भी ध्यान नहीं रख रही है. इसलिए वे ग्रामसभा को ही सबसे बड़ी सरकार मानते हैं. ग्रामीणों ने एक पत्थर पर लिखकर अपने अधिकारों की मांग की थी. राज्य की बीजेपी सरकार ने पत्थरगढ़ी को संविधान के खिलाफ बताते हुए उसे तोड़ दिया था. इसके बाद आदिवासी और सरकार इस मामले को लेकर आमने सामने आ गए थे.

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जशपुर के दो दर्जन से ज्यादा गांवों में संविधान की पांचवीं अनुसूची को पूरी तरह से लागू किये जाने की मांग ने जोर पकड़ा हुआ है. 10 हजार से ज्यादा आदिवासी ग्रामीण अनुसूचित क्षेत्रों को प्राप्त संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा की मांग कर रहे हैं. उनका आरोप है कि आदिवासियों को लेकर संवैधानिक धाराओं का पालन कराने में राज्य सरकार नाकाम साबित हुई है. लिहाजा वे अपनी ग्राम पंचायतों को ही सबसे ताकतवर और बड़ी संवैधानिक संस्था मानते हैं. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आदिवासियों के इस आंदोलन को लेकर राज्य की बीजेपी सरकार की सांसें फूली हुई हैं.

उसे इस बात का अंदेशा है कि यदि यह आंदोलन राज्य के और भी जिलों में फैला तो बीजेपी की फजीहत होगी. उसे इस बात का भी अंदेशा है कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस आदिवासियों को भड़काकर उन्हें बीजेपी के विरोध में खड़ा कर देगा. राज्य सरकार आदिवासियों के इस आंदोलन को कुचलने के लिए जोरशोर से जुटी हुई हैं. आदिवासी नेता और केंद्रीय इस्पात राज्य मंत्री विष्णु देव साय ने बटूंगा गांव पहुंचकर आदिवासियों को उनका आंदोलन खत्म करने के लिए समझाया बुझाया.

ग्रामीणों का आरोप है कि विष्णु देव साय के साथ आये बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उनके पत्थरगढ़ी शिलालेख को तोड़ दिया. वहीं प्रदेश के गृह मंत्री राम सेवक पैकरा ने पत्थरगढ़ी को संविधान के विपरीत करार दिया है. उन्होंने आदिवासियों के इस आंदोलन को राजनैतिक षड्यंत्र बताते हुए कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है. दूसरी ओर पूर्व केंद्रीय मंत्री और आदिवासी नेता अरविंद नेताम ने पत्थरगढ़ी का स्वागत करते हुए इसे संविधान के अनुरूप बताया है. उन्होंने कहा कि जल, जंगल और जमीन से जुड़ी समस्याओं को राज्य सरकार जानबूझ कर नहीं सुलझा रही है.

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जशपुर में आदिवासियों के इस आंदोलन को लेकर पुलिस और प्रशासन ने तगड़ा पहरा बैठाया हुआ है. तमाम गांव में चौबीसों घंटे पुलिस गश्त हो रही है. पत्थरगढ़ी तोड़ने को लेकर छिड़ा विवाद इतना गरमाया हुआ है कि आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच झड़प के आसार बढ़ गए हैं. फिलहाल लॉ एन्ड ऑर्डर की स्थिति को देखते हुए सम्पूर्ण जशपुर जिले में धारा 144 लगा दी गयी है. यह आंदोलन जोर ना पकड़ सके इसलिए पत्थरगढ़ी से प्रभावित सभी 25 गांव में धरना प्रदर्शन पर रोक लगा दी गयी है.

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