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AAP और केंद्र में फिर छिड़ी दिल्ली को लेकर 'अधि‍कारों की जंग', सोमवार को SC में सुनवाई

चीफ जस्ट‍िस टीएम ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच आर्टिकल 239 A के तहत दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करने को तैयार है.

टीएस ठाकुर की बेंच करेगी सुनवाई टीएस ठाकुर की बेंच करेगी सुनवाई
स्‍वपनल सोनल/अनुषा सोनी
  • नई दिल्ली,
  • 01 जुलाई 2016,
  • अपडेटेड 4:02 PM IST

आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार और बीजेपी नीत केंद्र के बीच 'अधि‍कारों की जंग' अब सुप्रीम कोर्ट की दहलीज तक पहुंच गई है. अरविंद केजरीवाल की सरकार ने कोर्ट से मांग की है कि वह यह स्पष्ट करे कि राष्ट्रीय राजधानी को लेकर किसके पास कितना अधि‍कार है. मामले की सुनवाई सोमवार को होगी.

चीफ जस्ट‍िस टीएम ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच आर्टिकल 239 A के तहत दिल्ली सरकार की याचिका पर सुनवाई करने को तैयार है. दिल्ली सरकार की वकील इंदिरा जयसिंह और केके वेणुगोपाल ने कोर्ट से कहा कि राजधानी में दुविधा की स्थिति है, इसलिए कोर्ट को यह फैसला करना चाहिए कि दिल्ली एक राज्य है या नहीं.

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दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा चाहती है 'आप' सरकार
केजरीवाल सरकार के इस कदम को दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की उनकी पुरानी मांग से भी जोड़कर देखा जा रहा है. इससे पहले बीते दिनों ईयू रेफरेंडम के बाद दिल्ली के सीएम ने संकेत दिए थे कि वह एक बार फिर पूर्ण राज्य की मांग को पुरजोर तरीके से उठाएंगे. केजरीवाल ने ट्विटर पर लिखा था कि ब्रिटेन की तर्ज पर वह दिल्ली में भी जनमत संग्रह करवाएंगे.

केंद्र के नियंत्रण में जमीन और पुलिस
गौरतलब है कि दिल्ली में पुलिस और जमीन जैसे अहम विभाग केंद्र सरकार द्वारा चलाए जाते हैं. सत्ता में आने के बाद से ही अरविंद केजरीवाल का कई प्रमुख मसलों पर केंद्र सरकार और उप राज्यपाल नजीब जंग से विवाद होता रहा है. आम आदमी पार्टी एलजी पर यह आरोप लगाती है कि वह लोगों द्वारा चुनी गई सरकार को नजरअंदाज करते हैं.

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आम आदमी पार्टी की शि‍कायत यह भी है कि दिल्ली विधानसभा महज तीन विधायक होने के बावजूद बीजेपी राज्य की सत्ता में दखल रखती है या उसे नियंत्रित करने का प्रयास करती है. पिछले साल हाई कोर्ट में केंद्र सरकार की उस अधिसूचना को चुनौती दी गई थी, जिसमें कहा गया कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर केजरीवाल की शक्तियां सीमित हैं और अहम अधिकारियों की नियुक्ति में उनका कोई रोल नहीं है. हाई कोर्ट ने अधिसूचना पर संशय जताया था जिसके बाद केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई थी.

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