
मूनक नहर और हरियाणा से राजधानी को मिलने वाले पानी से जुड़े मामले में सुनवाई के दौरान शुक्रवार को जल बोर्ड ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली में अभी केवल 55 फीसदी एरिया में सीवर सिस्टम है. बाकी 45 फीसदी हिस्से में सीवर 2031 तक डाल दिए जाऐंगे. जल बोर्ड की बात सुनने के बाद नाराज कोर्ट ने कहा कि 'तब तक तो राजधानी गंदे पानी के तालाब में तब्दील हो जाएगी.' हाई कोर्ट मूनक नहर और हरियाणा से राजधानी को मिलने वाले पानी के मसले पर दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है.
कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए कहा ऐसे इलाकों का क्या होगा जहां सीवर सिस्टम नहीं है. कोर्ट ने दिल्ली जल बोर्ड को निर्देश दिया की वह अगली सुनवाई सीवर सिस्टम को लेकर अपनी वर्क प्लानिंग कोर्ट में पेश करें. कोर्ट ने जल बोर्ड से पूछा की वह रिपोर्ट पेश कर बताएं की राजधानी में कितना सीवेज पैदा होता है. इसका क्या किया जाता है. इसमें से कितना पानी साफ होने के बाद इस्तेमाल किया जाता है और दिल्ली की सीवर ट्रीटमेंट सिस्टम की क्षमता कितनी है. कोर्ट ने जल बोर्ड से कहा कि वह या तो खुद इस पर काम करें या किसी विशेषज्ञ की मदद लेकर सर्वे करें की सीवरेज को लेकर क्या समस्या है. उनका समाधान कैसे किया जाए और इस पर अपनी काम करने की योजना तैयार करें.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात पर भी चिंता जताई की रोजाना 500 मिलियन गैलन सीवर यमुना नदी में फेंका जा रहा है. वहीं, रोजाना पैदा होने वाले 900 मिलियन गैलन सीवर में से केवल 400 मिलियन गैलन सीवर ट्रीटमेंट प्लांट में पहुंच रहा है. जबकि प्लांट की क्षमता 604 मीलियन गैलन है. हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने दिल्ली जल बोर्ड और दिल्ली सरकार को सीवर के पानी को साफ कर उसे पीने लायक और बाकी के कामों में इस्तेमाल करने के लिए इस्तेमाल में लाने लायक बनाने का निर्देश देने के लिए मांग की है. 21 अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई होगी.