
दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण लगातार खतरनाक स्थिति में बना हुआ है. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के ऊपर प्रदूषण की चादर धीरे-धीरे मोटी होती जा रही है. प्रदूषण पर लगाम के लिए सरकार और अदालत की ओर से भी कई कड़े कदम उठाए गए हैं. वहीं पर्यावरण मामलों के जानकारों का कहना है कि दिल्ली-एनसीआर में ई-रिक्शा की वजह से लगने वाले जाम से भी प्रदूषण हो रहा है.
राइट टू ब्रीथ कैंपेन से जुड़े पर्यावरणविद संदीप का कहना है कि वैसे तो बैट्री रिक्शा से कोई हानिकारक उत्सर्जन नहीं होता लेकिन अवैध रिक्शों की बाढ़ की वजह से दिल्ली में करीब हर बाजारों में जाम लगता है. इस वजह से ई- रिक्शा प्रदूषण बढ़ाने की एक वजह भी बन जाते हैं.
ई- रिक्शा से होने वाले दर्दनाक हादसे की वजह तभी दिल्ली हाईकोर्ट ने 31 जुलाई 2014 को ई-रिक्शा पर प्रतिबंध लगा दिया. वहीं जब सरकार को वोटबैंक का खतरा दिखाई दिया तो मार्च 2015 में संसद ने मोटर व्हीकल संशोधन कानून में बदलाव कर ई- रिक्शा को वैध बना दिया गया.
रिक्शा वेलफेयर एसोसिएशन जनरल सेक्रेटरी सुरेश प्रसाद के मुताबिक ई-रिक्शा को रजिस्टर्ड करवाने का खर्च करीब 15 से 20,000 आता है. इससे बचने के लिए ही अवैध ई-रिक्शा की भरमार हो गई है और ठेकेदारों का गोरखधंधा चल निकला है. ट्रैफिक एक्सपर्ट रजनी गांधी के मुताबिक किसी भी ई- रिक्शा खरीददार को शुरुआती प्रोसेसिंग की लागत अधिक लग सकती है लेकिन इससे होने वाली बचत और पर्यावरण को फायदा प्रत्यक्ष रूप से दिखाई नहीं देता.
एक आंकड़े के मुताबिक राजधानी में करीब 2000 ई- रिक्शा ही रजिस्टर्ड हैं लेकिन अकेले दिल्ली-एनसीआर में इनकी संख्या 2 लाख के करीब है.