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दिल्ली को सर्दियों में प्रदूषण से कैसे मिलेगी मुक्ति, क्या पड़ोसी राज्यों का मिलेगा साथ?

सर्दियों के मौसम से ठीक पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रदूषण से निपटने के लिए पड़ोसी राज्यों का साथ मांगा है. इससे पहले केजरीवाल सरकार ऑड इवन जैसे फॉर्मूले आजमा चुकी है. चीन की तर्ज पर फॉगिंग मशीन का भी टेस्ट भी सरकार कर चुकी है.

दिल्ली में प्रदूषण दिल्ली में प्रदूषण
पंकज जैन/देवांग दुबे गौतम
  • नई दिल्ली,
  • 18 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 6:17 PM IST

देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण एक आम समस्या बनते जा रही है. हैरानी की बात यह है कि राज्य की सरकार या एजेंसियां प्रदूषण की अलग-अलग वजहों से निपटने के लिए कोई ठोस प्लान बनाने में असमर्थ नज़र आ रही हैं. इस बीच सर्दियों के मौसम से ठीक पहले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रदूषण से निपटने के लिए पड़ोसी राज्यों का साथ मांगा है.

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दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के पीछे कई घरेलू वजहें प्रमुख हैं. इसके बावजूद पिछले कई सालों से सरकार और तमाम एजेंसियां, प्रदूषण की समस्या से पूरी तरह निपटने की बजाय आपातकालीन कदम पर ज्यादा फोकस करती हैं.

आपको बताते हैं कि अबतक उपराज्यपाल दफ़्तर, सरकार और एजेंसियों ने प्रदूषण से निपटने के लिए किन-किन तैयारियों को अंजाम दिया:

-13 अगस्त को प्रदूषण की समस्या पर उपराज्यपाल दिल्ली के पर्यावरण मंत्री इमरान हुसैन, दिल्ली नगर निगम और अन्य अधिकारियों के साथ बैठक की थी.

-उपराज्यपाल ने डीपीसीसी को औद्योगिक क्षेत्रों को पीएनजी में बदलने के लिए 30 सितंबर 2018 तक की डेडलाइन दी है. हालांकि वाहनों के प्रदूषण या खुले में कूड़ा जलाने पर कोई चर्चा हुई या नहीं इसकी जानकारी उपराज्यपाल दफ़्तर की तरफ से साझा नहीं हुई.

-केजरीवाल सरकार अपनी सत्ता के दौरान ऑड इवन जैसे फॉर्मूले आजमा चुकी है. चीन की तर्ज पर फॉगिंग मशीन का भी टेस्ट भी सरकार कर चुकी है. साथ ही इलेक्ट्रॉनिक बसों को लाने की तैयारी भी चल रही है, लेकिन ये बसें कब तक आएंगी, ये बड़ा सवाल है.  

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-खुले में कूड़ा जलाने से रोकने, निर्माणधीन इमारतों के आसपास प्रदूषण को रोकने और सड़कों-पेड़ों पर जमी धूल को हटाने की अहम ज़िम्मेदारी एजेंसियों की होती है. एजेंसियों का क्या प्लान और तैयारी है इसकी जानकारी भी सामने नहीं आई है.

फ़िलहाल मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर दिल्ली के पड़ोसी राज्यों की सरकार से साथ देने की अपील की है. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार और दिल्ली के लोग प्रदूषण से निपटने की कोशिश कर रहे हैं. दिल्ली में प्रदूषण की समस्या घरेलू नहीं है और यह समस्या सिर्फ पड़ोसी राज्यों की आपसी सहयोग से दूर हो सकती है.

दिल्ली में पड़ोसी राज्यों से आने वाले प्रदूषण पर आज तक ने पर्यावरण जानकार विमलेंदु झा से बातचीत की. उन्होंने बताया कि पराली जलाने की वजह से सिर्फ 20 से 25 दिनों तक प्रदूषण बढ़ता है. पराली की समस्या से निपटने के लिए दिल्ली के पड़ोसी राज्य राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकार को साथ आना होगा.

किसानों को पराली न जलाने के लिए फंड भी दिया जाता है, लेकिन क्या सभी राज्यों के मंत्रीगण एक कमरे में बैठकर चर्चा करते हैं? हालांकि असल समाधान ढूंढने की बजाय सिर्फ राजनीति हो रही है.

दिल्ली सरकार और एजेंसियों से सवाल -

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1. वाहनों का प्रदूषण को कम करने के लिए क्या कोई खास कदम उठाया गया?

2. दिल्ली में धूल से फैलने वाले प्रदूषण को कंट्रोल के लिए क्या कोई प्लान बनाया गया?

3. दिल्ली में कूड़े जलने से 20% प्रदूषण फैलता है, इससे निपटने की क्या तैयारी हुई?

4. एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में 9 लाख पेड़ों की कमी है. इस कमी को दूर करने के लिए सरकार क्या कर रही है?

पर्यावरण जानकार विमलेंदु झा का कहना है कि समस्या की जानकारी होने के बावजूद सरकार और एजेंसियां प्रदूषण के लिए गंभीर नहीं है. विमलेंदु झा ने कहा कि पिछले कई सालों से खुद सरकार की रिपोर्ट बताती है कि प्रदूषण की वजह हमारे पास मौजूद है.  वाहनों से 30% से 40% प्रदूषण होता है, लगभग 20% से 30% प्रदूषण हवा में धूल की मात्रा बढ़ने से होता है. इसके अलावा खुले में कूड़ा जलाने और थर्मल फैक्ट्रीयों की वजह से प्रदूषण फैलता है.  

पर्यावरण जानकारों के मुताबिक प्रदूषण बढ़ने के पीछे दिल्ली की घरेलू समस्याएं हैं, जिससे निपटने के लिए सरकार और एजेंसियों ने ठोस कदम नहीं उठाएं हैं. 2015 से लेकर 2018 तक दिल्ली के पास प्रदूषण से निपटने के लिए कोई ठोस प्लान नहीं है. जानकारों का सवाल है कि क्या सरकार ने पिछले 36 महीने में कोई ऐसा कदम उठाया है जिससे 2018 की सर्दियों में भयावह प्रदूषण से बचा जा सके.

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