
दिल्ली में फरवरी में हुई हिंसा की अदालत में सुनवाई के दौरान वकीलों की नियुक्ति को लेकर दिल्ली की चुनी हुई सरकार और उपराज्यपाल के बीच एक बार फिर ठन गई है. उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार के उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें कैबिनेट ने फैसला लिया था दिल्ली सरकार के पैनल के वकील ही सुनवाई में शामिल होंगे.
दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार ने मामले की सुनवाई के लिए पुलिस द्वारा दिए गए वकीलों के पैनल को खारिज करते हुए सरकारी वकीलों के पैनल संबंधी आदेश जारी किए थे. दिल्ली सरकार द्वारा गुरुवार को जारी किए गए बयान में कहा गया है कि दिल्ली सरकार के कैबिनेट के उस फैसले को अब उपराज्यपाल अनिल बैजल ने खारिज कर दिया है जिसके बाद दिल्ली पुलिस के पैनल को ही लागू करने के आदेश जारी किए जाएंगे.
इस तरह से अब दिल्ली हिंसा में पुलिस की ओर से वही वकील जिरह पैरवी करेंगे जिनके नाम दिल्ली पुलिस द्वारा दिए गए हैं. अरविंद केजरीवाल की सरकार ने मंगलवार को केबिनेट मीटिंग में पुलिस के वकीलों के पैनल को खारिज करते हुए कैबिनेट के जरिए यह फैसला दिया था कि दिल्ली सरकार के पैनल के वकील ही सुनवाई करेंगे.
उपराज्यपाल का आदेश बाध्य
दिल्ली सरकार का कहना है कि नियमों के तहत अब वह उपराज्यपाल का यह आदेश मानने के लिए बाध्य है और दिल्ली सरकार को हर हाल में उपराज्यपाल के ही आदेश को लागू करना होगा.
सरकार की दलील है कि संविधान से मिले विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए उपराज्यपाल ने चुनी हुई सरकार के फैसले को पलट दिया है.
दिल्ली हिंसा के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में वकीलों का पैनल नियुक्त करने को लेकर मंगलवार को लिए गए दिल्ली सरकार की कैबिनेट के निर्णय को उपराज्यपाल अनिल बैजल ने खारिज कर दिया था. संविधान से मिले विशेष अधिकार का इस्तेमाल कर एलजी ने ऐसा किया.
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साथ ही दिल्ली सरकार के गृह विभाग को आदेश दिया है कि दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूरी दें. अब संविधान के तहत एलजी का यह आदेश दिल्ली सरकार पर बाध्य होगा और दिल्ली सरकार को यह आदेश हर हाल में लागू करना होगा.
पुलिस की जांच निष्पक्ष नहीं!
दिल्ली कैबिनेट का मानना था कि दिल्ली हिंसा के संबंध में दिल्ली पुलिस की जांच को कोर्ट ने निष्पक्ष नहीं माना है. ऐसे में दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूरी देने से केस की निष्पक्ष सुनवाई संभव नहीं है.
दिल्ली के उपराज्यपाल ने संविधान के अनुच्छेद 239 (एए) (4) के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल कर दिल्ली सरकार के कैबिनेट के निर्णय को खारिज कर दिया. साथ ही इस अनुच्छेद से मिले अधिकार के तहत दिल्ली सरकार को अंतरिम आदेश जारी किया है कि दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूरी दी जाए.
दिल्ली कैबिनेट की मंगलवार शाम को हुई बैठक में दिल्ली पुलिस के प्रस्ताव के साथ दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के सुझाव पर विचार किया गया था. बैठक में यह तय हुआ था कि दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा पैदा करने के लिए जो भी दोषी हैं, उन्हें सख्त सजा मिलनी चाहिए. साथ ही यह भी तय हुआ था कि निर्दोष को परेशान या दंडित नहीं किया जाना चाहिए. इस कारण दिल्ली कैबिनेट ने दिल्ली सरकार के वकीलों के पैनल की नियुक्ति पर सहमति जताई थी.
साथ ही दिल्ली पुलिस के वकील पैनल को मंजूरी देने के उपराज्यपाल के सुझाव को अस्वीकार कर दिया था. इसके पीछे का कारण यह था कि दिल्ली पुलिस की जांच पर विभिन्न न्यायालय की ओर से पिछले दिनों उंगली उठाई गई है.
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दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायधीश सुरेश कुमार ने दिल्ली हिंसा के संबंध में दिल्ली पुलिस पर टिप्पणी की थी, "दिल्ली पुलिस न्यायिक प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल कर रही है." सेशन कोर्ट ने भी दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए थे.
इस स्थिति में सरकार को दिल्ली पुलिस के वकीलों के पैनल को मंजूरी देने से दिल्ली हिंसा की निष्पक्ष जांच पर संदेह था. इस कारण दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने दिल्ली पुलिस के पैनल को मंजूरी नहीं दी थी. सरकार ने बयान जारी करके कहा है कि राज्यपाल के आदेश के बाद सरकार के हाथ बंध गए हैं लिहाजा उसे उपराज्यपाल के आदेशों को ही लागू करना होगा.