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दिल्ली की समस्याओं पर एक निजी संस्था प्रजा ने रिपोर्ट तैयार की है. इसमें जानकारी जुटाई गई है कि दिल्ली में लोगों को सबसे ज्यादा समस्या किस वजह से होती है. इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली चीजें सामने आई
रिपोर्ट कहती है कि 2017 में पानी की किल्लत को लेकर 165735 शिकायतें आम जनता द्वारा की गई थी. यह आंकड़ा केवल 9 महीनों जनवरी 2017 से सितंबर 2017 तक का है. लेकिन इससे भी ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि जब लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे थे, तो उनके जनप्रतिनिधियों ने इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया.
रिपोर्ट बताती है कि 2017 में पानी की किल्लत का मुद्दा पार्षदों द्वारा उठाए गए मुद्दे का 1 फ़ीसदी भी नहीं था. वहीं पानी के लिए जिम्मेदार दिल्ली सरकार के विधायकों ने जो मुद्दे उठाए उसमें केवल 10 फ़ीसदी ही पानी से संबंधित थे.
पानी ना आने की शिकायतों में 51 फ़ीसदी की बढ़ोतरी
प्रजा संस्था की रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2015 में दर्ज शिकायतों के मुकाबले वर्ष 2017 में 51 फ़ीसदी शिकायतों में बढ़ोतरी हुई, जिनमें पानी ना आने की शिकायतें थीं. रिपोर्ट यह भी कहती है कि दिल्ली जल बोर्ड हम लोगों की शिकायतों को संग्रहित रखने में भी लापरवाही करती है. आंकड़े बताते हैं कि 2017 के आखिरी 3 महीने दिल्ली जल बोर्ड ने जनता की सारी शिकायतों का आंकड़ा खो दिया. आरटीआई में दिल्ली जल बोर्ड ने आंकड़ा मौजूद ना होने का हवाला देते हुए आखरी 3 महीने की जानकारी देने से इंकार कर दिया.
आवारा जानवरों से परेशान दिल्ली!
देश की राजधानी दिल्ली के निवासी केवल बिजली-पानी से ही नहीं परेशान हैं, बल्कि आवारा जानवरों की समस्या से भी परेशान नजर आ रहे हैं. यह दावा प्रजा संस्था की रिपोर्ट में किया गया है.
रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2017 में नागरिक मुद्दों में सबसे ज्यादा 22574 शिकायतें आवारा कुत्तों और बंदरों की परेशानियों से संबंधित थी. आपको बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट भी इस मसले पर दिल्ली नगर निगम और दिल्ली सरकार को फटकार लगा चुका है.
घोषणा पत्र बनाकर भूली पार्टियां!
चुनाव में उतरते वक्त बड़े-बड़े वादे करने वाली पार्टियां चुनाव बाद अपने वादे भूल जाती हैं. इसका उदाहरण प्रजा द्वारा की गई रिपोर्ट में साफ नजर आ रहा है. रिपोर्ट कहती है कि बीजेपी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने जिन मुद्दों का अपने घोषणापत्र में जिक्र किया था, जीतने के बाद उन मुद्दों को कभी सदन में नहीं उठाया. मसलन उदाहरण के तौर पर नवनिर्वाचित पार्षदों ने 2017 में एक भी सवाल इमारतों में आग से संबंधित नहीं उठाया.
जनप्रतिनिधियों का प्रदर्शन निराशाजनक!
प्रजा संस्था द्वारा पेश की गई रिपोर्ट से साफ पता चलता है कि दिल्ली में नगर निगम के पार्षदों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है. रिपोर्ट कहती है कि 2017 में आयोजित वार्ड कमेटी की मीटिंग में हर 4 पार्षदों में से एक ने बैठक में हिस्सा ही नहीं लिया, जबकि वार्ड कमेटी की बैठक बेहद अहम होती है. इतना ही नहीं, वर्ष 2015 के मुकाबले 2017 में सदन में विधायकों की उपस्थिति में 5% की कमी आई है. जहां 2015 में 92% विधायक सदन में उपस्थित रहते थे तो वहीं अब इनकी संख्या घटकर 87 फ़ीसदी रह गई.