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दिल्ली के किलोकरी गांव में नहीं है नोटबंदी का असर, लोग कर रहे हैं कैशलेस ट्रांजैक्शन

दिल्ली के सबसे पुराने गांवों में से एक किलोकरी में रेहड़ी पटरी वाले दुकानदार से लेकर बड़े शोरूम वालों में से अधिकतर ने कैशलेस इंतजाम कर लिए हैं. कहीं कार्ड स्वाइप मशीन यानी पीओएस प्वाइंट ऑफ सेलिंग का सहारा लिया जा रहा है तो कहीं पेटीएम जैसे आसान विकल्प हैं.

बाजार में कैशलेस इंतजाम बाजार में कैशलेस इंतजाम
संजय शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 17 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 12:25 PM IST

नोटबंदी के बाद नकदी का संकट ज्यादा बढ़ा तो जनता ने दूसरे विकल्प अपनाने शरू कर लिए. दुनिया किसी का इंतजार ज्यादा वक्त तक नहीं कर सकती. उसे तो अपनी रफ्तार से बढ़ते जाना है. ये तो जमाने के साथ कदम ताल करने की चाहत वालों पर लाजिमी है कि वो कैसे जमाने के हमकदम और हमसफर हो पाते हैं. अब चाहे मामला नकदी नोट की किल्लत का ही क्यों ना हों.

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दिल्ली के सबसे पुराने गांवों में से एक किलोकरी में रेहड़ी पटरी वाले दुकानदार से लेकर बड़े शोरूम वालों में से अधिकतर ने कैशलेस इंतजाम कर लिए हैं. कहीं कार्ड स्वाइप मशीन यानी पीओएस प्वाइंट ऑफ सेलिंग का सहारा लिया जा रहा है तो कहीं पेटीएम जैसे आसान विकल्प हैं. आश्रम और लाजपत नगर के बीच रिंग रोड के बिल्कुल किनारे चार सौ साल से भी ज्यादा के इतिहास वाला किलोकरी अब शहरीकृत गांव है. यानी यहां एक ओर चौपाल में हुक्के की गुड़गुड़ाहट और तंबाकू की मीठी गंध पसरी है तो दूसरी ओर चहल पहल भरे बाजार भी हैं. दुकानदार छोटे हों या बड़े सबके शीशे के दरवाजों पर पेटीएम का स्टीकर लगा है. यहां तक कि फल की रेहड़ी लगाने वाले ने भी पेटीएम का क्यूआर कोड लाल सेबों के बीच फंसा रखा है. पूछने पर शिव नारायण बताते हैं कि आसानी तो हो गई है लेकिन ग्राहकों को ज्याद है. हमें तो दस दिन बाद खाते से पैसे मिलते हैं. आढ़ती तो तीसरे दिन ही तकाजा करने लगता है. लेकिन हां, ठीक है अब जमाना बदल रहा है तो ऐसा भी सही.

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समोसे मिठाई के छोटे से ढाबे नुमा रेस्टोरेंट में भी पेटीएम से पेमेंट हो रहा है. इससे दुकानदार को भी आसानी और ग्राहकों को भी आसानी है. ना दो दो हजार के नोट की चिंता और ना ही खुल्ले पैसे की खिचखिच. पंक्चर लगाने वाले और दोपहिया मैकेनिक ने भी पेटीएम का स्टिकर चिपका रखा है. उनका कहना है कि मोबाइल और कार्ड से पेमेंट से अधिकतर काम बिना नगदी के ही हो जाते हैं. मदर डेयरी से लेकर रेहड़ी पटरी तक ज्यादातर सबके पास पेटीएम या कार्ड से भुगतान की सुविधा है.

गौरतलब है कि आठ नवंबर को नोटबंदी के बाद किलोकरी भी दूसरे गांवों, कस्बों और शहरों की तरह ही परेशान और बेहाल था. फिर इलाके के डीएम ने शिवमंदिर में चौपाल लगाई और कारोबारियों के साथ-साथ आम जनता को नकदी के विकल्पों की जानकारी दी. स्वाइप मशीन से लेकर पेटीएम और यूपीआई तक कई उपायों का ऑडियो विजुअल प्रेजेंटेशन दिया. इलाके के मार्केट एसोसिएशन के साथ ही आम लोगों को भी ये मशवरा भा गया औरनकद के विकल्प को अपनाने का अभियान शुरू हो गया. किलोकरी दिल्ली ही नहीं देश के गांवों और कस्बों के लिए मिसाल बनता जा रहा है. जिन दुकानदारों ने ये विकल्प नहीं अपनाया है ग्राहक उनके पल्ले से निकलते जा रहे हैं. उन्हें भी वहीं से सामान लेना पसंद है जहां कार्ड से या मोबाइल से पेमेंट हो जाए.

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देश के बाकी गांव किलोकरी की तरह बनना भी चाहें तो इंटरनेट सिग्नल की दिक्कत भले आये लेकिन चाहत है तो सब कुछ आसान है. सिर्फ शिद्दत से काम करने वाले किलोकरी के डीएम की तरह अफसर चाहिए.

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