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कॉलेज फंड बंद करने पर ABVP ने फूंका सिसोदिया का पुतला, शिक्षकों ने बताया तानाशाही फरमान

डीयू के 28 कॉलेजों में से सिर्फ 12 कॉलेज को ही दिल्ली सरकार 100 फीसदी फंड देता है. बाकी 16 कॉलेजों को 95 फीसदी फंड यूजीसी और 5 फीसदी फंड दिल्ली सरकार देती है.

दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया
रोशनी ठोकने
  • नई दिल्ली,
  • 01 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 11:44 PM IST

दिल्ली यूनिवर्सिटी के 28 कॉलेजों का फंड रोकने के बाद दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शिक्षकों और छात्रों के निशाने पर आ गए हैं. मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ और एबीवीपी के कार्यकर्ताओं ने शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया का पुतला फूंका.

दरअसल, डीयू के 28 कॉलेजों में पिछले 10 महीने से कोई गवर्निंग बॉडी नहीं है. सिसोदिया का दावा है कि इन कॉलेजों में गवर्निंग बॉडी का गठन करने में डीयू जानबूझकर देरी कर रहा है. जिसके चलते कॉलेज में सरकार के फंड का दुरुपयोग हो रहा है. लिहाजा सिसोदिया ने भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए इन कॉलेजों का फंड रोक दिया. साथ ही कैग से ऑडिट कराने का आदेश दे दिया.

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मनीष सिसोदिया का यही आदेश डीयू के छात्रों को नागवार गुजरा. दिल्ली एबीवीपी प्रदेश मंत्री भरत खटाना ने कहा कि दिल्ली सरकार के इस फैसले का असर करीब 50 हजार छात्रों पर पड़ेगा. इतना ही नहीं सरकार के इस फैसले से सैकड़ों शिक्षक और कर्मचारी भी प्रभावित होंगे. प्रदर्शन में शामिल डीयू छात्रसंघ अध्यक्ष अमित तंवर के मुताबिक, ''जो सरकार चुनाव के समय 20 नए कॉलेज खोलने का वादा करती थी, वो आज कॉलेजों का अनुदान रोक कर उन्हें खत्म करने पर तुली हुई है.'' तंवर के मुताबिक ये एक सांकेतिक प्रदर्शन था, लेकिन अगर दिल्ली सरकार ने इस फैसले को वापस नहीं लिया, तो फिर आंदोलन उग्र होगा. 

NDTF ने भी किया विरोध

दिल्ली सरकार के इस आदेश को नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने भी छात्र विरोधी बताया. डीयू में आर्ट फैकल्टी के बाहर सांकेतिक धरना देते हुए NDTF के शिक्षकों ने सिसोदिया के खिलाफ नारेबाजी की और कहा कि प्रशासनिक कामों में हो रही देरी के चलते कॉलेजों की फंडिंग रोकने का आदेश देना सरासर गलत है.  NDTF के अध्यक्ष और एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य अजय भागी के मुताबिक गवर्निंग बॉडी के गठन के लिए डीयू के नियम तय हैं, लेकिन दिल्ली सरकार द्वारा जो नाम भेजे गए वो नियमों के मुताबिक नहीं थे. वहीं यूनिवर्सिटी ने भी एग्जीक्यूटिव काउंसिल को नजरअंदाज कर 5 नामों को प्रस्तावित किया. उन्होंने बताया ''जब ये प्रस्ताव एग्जीक्यूटिव काउंसिल की बैठक में आया तो हमने एक कमेटी गठित कर जरूरी सुझाव यूनिवर्सिटी को सौंप दिए.'' सूत्रों की मानें तो इस सूची में जेएनयू के विवादित प्रोफेसर सहित कई ऐसे नाम हैं, जिन पर डीयू के शिक्षक नेता ही नहीं, एग्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्यों को भी आपत्ति है.

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आपको बता दें कि गवर्निंग बॉडी में कुल 15 सदस्य होते हैं जिनमें से 10 सदस्यों की लिस्ट दिल्ली सरकार भेजती है. इनमें से 5 सदस्य डीयू द्वारा प्रस्तावित होते हैं. 5 सदस्य दिल्ली सरकार के तरफ से प्रस्तावित होते हैं. बाकी बचे 5 सदस्यों में से 2 सदस्य यूनिवर्सिटी नॉमिनी होते हैं. 2 सदस्य कॉलेज के टीचर्स और 1 सदस्य कॉलेज के प्रिंसिपल होते हैं, जो गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष होते हैं.

गौरतलब है कि डीयू के 28 कॉलेजों में से सिर्फ 12 कॉलेज को ही दिल्ली सरकार 100 फीसदी फंड देता है. जिनमें शहीद राज गुरु, दीन दयाल उपाध्याय, महाराजा अग्रसेन, शहीद सुखदेव कॉलेज शामिल हैं. बाकी 16 कॉलेजों को 95 फीसदी फंड यूजीसी और 5 फीसदी फंड दिल्ली सरकार देती है.

दिल्ली सरकार से 100 फीसदी फंड पाने वाले दीन दयाल उपाध्याय कॉलेज के प्रिंसिपल एस. के. गर्ग ने बताया कि दिल्ली सरकार हर तिमाही में फंड रिलीज़ करती है. हाल ही में मई के महीने में दिल्ली सरकार ने फंड रिलीज़ किया था, इसीलिए फिलहाल फंडिंग रोकने से कॉलेजों को कोई खासा परेशानी नहीं होगी. लेकिन अगर अक्टूबर तक अगला फंड रिलीज़ नहीं किया गया तो फिर टीचर्स की सैलरी और कॉलेज के खर्चों के लिए मुश्किलें आ सकती हैं.

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