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चुनाव आयोग की सुनवाई से नाराज AAP के 20 विधायक फिर पहुंचे हाईकोर्ट

अलका लांबा ने 'आजतक' से खास बातचीत करते हुए चुनाव आयोग पर कई बड़े आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि इससे पहले हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को पलट दिया था. लेकिन अब भी चुनाव आयोग आम आदमी पार्टी के विधायकों के वकील को याचिकाकर्ता से सवाल जवाब नहीं करने दे रहा है. 'आप' विधायकों ने पूछा है कि आखिर चुनाव आयोग याचिकाकर्ता को क्यों बचाना चाहते हैं?

दिल्ली हाईकोर्ट दिल्ली हाईकोर्ट
पंकज जैन/देवांग दुबे गौतम
  • नई दिल्ली,
  • 23 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 2:18 PM IST

ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में चुनाव आयोग की सुनवाई से आम आदमी पार्टी एक बार फिर असहमत है. पार्टी विधायको ने पूरे मामले में चुनाव आयोग पर पक्ष न सुनने का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में रिट दाखिल की है. 'आप' विधायक अलका लांबा ने बताया कि शुक्रवार को आम आदमी पार्टी के विधायकों ने हाईकोर्ट का रुख किया है.  

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अलका लांबा ने 'आजतक' से खास बातचीत करते हुए चुनाव आयोग पर कई बड़े आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि इससे पहले हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग के फैसले को पलट दिया था. लेकिन अब भी चुनाव आयोग आम आदमी पार्टी के विधायकों के वकील को याचिकाकर्ता से सवाल जवाब नहीं करने दे रहा है. 'आप' विधायकों ने पूछा है कि आखिर चुनाव आयोग याचिकाकर्ता को क्यों बचाना चाहते हैं?

'आप' विधायक ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट को नकारते हुए सफाई दी है. हाईकोर्ट दोबारा जाने की वजह पूछने पर अलका लांबा का कहना है कि सभी 70 विधायकों के पास दफ़्तर हैं.  लेकिन वो दफ़्तर संसदीय सचिव के तौर पर नहीं मिले थे.  इस शंका को दूर करने के लिए याचिकाकर्ता और जवाब दाखिल करने वाले अधिकारियों से पूछताछ होनी चाहिए.

इतना साफ है कि आम आदमी पार्टी के विधायक चुनाव आयोग में दोबारा हो रही सुनवाई से सहमत नहीं हैं.  अलका लांबा का आरोप है कि चुनाव आयोग जिस तरह सुनवाई कर रहा है वो साफ़ तौर पर दवाब में नज़र आ रहा है.  17 मई से 27 मई तक 10 दिन जैसे-तैसे सुनवाई को निपटाया गया है. इससे पहले 19 फरवरी को फैसला आता है और 21 फरवरी को राष्ट्रपति की मोहर लग जाती है. अगर हाईकोर्ट हमें राहत नहीं देता तो एक अलोकतांत्रिक काम को अंजाम दिया चुका था.

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ये पूछने पर कि क्या आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को सदस्यता जाने का डर सता रहा है. जवाब में अलका लांबा ने कहा कि यह 20 विधायकों की सदस्यता का मामला नहीं है. यह संवैधानिक संस्थाओं पर कम हो रहे विश्वास का मामला है.  हमें कुर्सी की चिंता नहीं है, बल्कि लोकतंत्र के साथ खेले जाने वाले खेल की चिंता है. हमें उम्मीद है कि हाईकोर्ट हमारा पक्ष सुनेगा.

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