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EXCLUSIVE: खून की कालाबाजारी, दिल्ली के चार बड़े अस्पतालों में चल रहा है दलालों का नेटवर्क

जितना ज्यादा बुखार का खौफ उतनी ही जल्दी मरीज़ और तीमारदार इन खून के सौदागरों की गिरफ्त में फंस रहे हैं. इन्हीं को बेनकाब करने के लिए 'आजतक/इंडिया टुडे' की स्पेशल इनवेस्टीगेटिव टीम ने दिल्ली के चार बड़े अस्पतालों- लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल (एलएनजेपी), ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंज अस्पताल(एम्स), गुरु तेग बहादुर अस्पताल (जीटीबी) और राम मनोहर लोहिया अस्पताल (आरएमएल) का रुख किया.

खून के सौदागरों की गिरफ्त में फंस रहे हैं दिल्ली के मरीज खून के सौदागरों की गिरफ्त में फंस रहे हैं दिल्ली के मरीज

दिल्ली के चार बड़े अस्पतालों में खून के कारोबार को लेकर आज तक के खुलासे का बड़ा असर हुआ है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक इस स्टिंग के बाद दिल्ली सरकार का स्वास्थ्य विभाग अलग-अलग अस्पतालों में छापेमारी की तैयारी कर रहा है. आज तक ने बुधवार को स्टिंग कर बड़ा खुलासा किया था. राजधानी दिल्ली में हर तरफ चिकनगुनिया की दहशत है. डेंगू और मलेरिया के मरीज भी मिल रहे हैं. अस्पतालों में मरीजों की भरमार है. दिल्ली में AAP की सरकार है लेकिन तीनों एमसीडी में बीजेपी का वर्चस्व है. राजनीतिक दल जहां आरोप-प्रत्यारोपों में व्यस्त है वहीं मरीज बेहाल हैं. इस साल चिकनगुनिया का डेंगू के मुकाबले ज्यादा प्रकोप है. लेकिन फिर भी डेंगू के मरीज मिल रहे हैं. डेंगू में प्लेटलेट्स की कमी जानलेवा साबित हो सकती है. ऐसे में दिल्ली के बड़े अस्पतालों में खून की कालाबाजारी करने वाले दलाल जमकर चांदी कूट रहे हैं.

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जितना ज्यादा बुखार का खौफ उतनी ही जल्दी मरीज और तीमारदार इन खून के सौदागरों की गिरफ्त में फंस रहे हैं. इन्हीं को बेनकाब करने के लिए 'आजतक/इंडिया टुडे' की स्पेशल इनवेस्टीगेटिव टीम ने दिल्ली के चार बड़े अस्पतालों- लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल (एलएनजेपी), ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंज अस्पताल(एम्स), गुरु तेग बहादुर अस्पताल (जीटीबी) और राम मनोहर लोहिया अस्पताल (आरएमएल) का रुख किया.

एलएनजेपी अस्पताल
एलएनजेपी अस्पताल में मरीजों की भरमार के साथ यहां खून की कालाबाजारी करने वाले दलाल धड़ल्ले से अपना काम करते दिखे. यहां एक थैली खून की कीमत 3,500 रुपए तक की मांग करते देखा गया. डेंगू के मरीजों को प्लेटलेट्स मुहैया कराने के लिए 12,000 रुपए यूनिट के हिसाब से मांगे जा रहे हैं.

'आजतक' के कैमरे ने एलएनजेपी अस्पताल के एक कर्मचारी को कैद किया. ये एमरजेंसी वार्ड के पास मिला. अंडर कवर रिपोर्टर ने इस कर्मचारी से कहा कि मरीज एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती है और उसे तत्काल खून की जरुरत है. ये सुनते ही कर्मचारी ने अपने एक साथी दलाल को बुला लिया. दलाल ने कहा कि एलएनजेपी अस्पताल के ब्लड बैंक से खून लाकर दे दिया जाएगा लेकिन फिर किसी भी सूरत में उसकी वापसी नहीं होगी.

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अंडर कवर रिपोर्टर के भरोसा दिलाने पर कि खून वापस नहीं करेंगे, अस्पताल के कर्मचारी और दलाल ने आगे बात करना कबूल किया. रिपोर्टर के पूछने पर कि पैसे कितने लगेंगे तो दलाल ने कहा कि डॉक्टर से पूछ कर बताता हूं. फिर कुछ लोगों से फोन पर बात करने के बाद दलाल ने एक यूनिट खून के लिए 3,500 रुपए तक की मांग की.

रिपोर्टर के ये पूछने पर कि खून होगा तो सही, दलाल ने जवाब दिया, 'ठीक होगा, टेंशन मत लो.' साथ ही अस्पताल का कर्मचारी भी बोला- 'ये मत सोचो तुम्हें ऐसे ही उल्टा सीधा पकड़ा देंगे, काम कर रहे हैं यहां, ठीक है, जो लोगे वो दोगे, जो दोगे वो लोगे.'

अस्पतालों से खून लेने का नियम होता है कि तीमारदारों को उसकी एवज में खून डोनेट करना होता है. अंडर कवर रिपोर्टर ने जब कहा कि खून डोनेट करने का तो कोई पंगा नहीं होगा, तो दलाल का जवाब था- 'नहीं आपको डोनेट नहीं करना होगा, हम आपको आठ बोतल दे देंगे लेकिन उन्हें यहां से कैसे ले जाना है वो आपकी जिम्मेदारी होगी.'

अंडर कवर रिपोर्टर ने खून के सौदागरी की पहुंच कहां तक है, ये जानने के लिए पूछा कि क्या डेंगू के मरीज को चढाने के लिए प्लेटलेट्स भी मिल जाएंगे, तो दलाल ने उसके लिए भी हामी भर दी. दलाल ने कहा, प्लेटलेट्स मिल तो जाएंगे लेकिन उसमें टाइम लगेगा. दलाल ने फिर पूछा- 'मरीज का ब्लड ग्रुप क्या है?' रिपोर्टर के O पॉजिटिव बताने पर दलाल ने कहा, 'अगर O पॉजिटिव के प्लेटलेट्स ही मरीज को चढाए तो उसे जल्दी फायदा होगा.'

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खून की कालाबाजारी करने वाले कैसे शातिर अंदाज से नेटवर्क बना कर काम करते हैं, इसका भी 'आजतक/इंडिया टुडे' को पता चला. बात प्लेटलेट्स की थी, काम जोखिम भरा था. अस्पताल के अंदर हो पाना मुश्किल था, ऐसे में दलाल ने अपने नेटवर्क के दूसरे सदस्य से अंडर कवर रिपोर्टर को मिलवाया. उसने भरोसा भी दिलाया कि अस्पताल में खून नहीं मिलेगा तो कहीं और से लाकर उपलब्ध कराया जाएगा. इन दलालों का दावा था कि वो 12 साल से इस काम में लगे हैं और किसी खास ब्लड ग्रुप के प्लेटलेट्स यहां नहीं मिले तो उसी ग्रुप के ब्लड डोनर मुहैया करा देंगे. जाहिर ये डोनर स्वेच्छा से खून दान करने वाले तो होंगे नहीं बल्कि अपना खून बेचने वाले लोग ही होंगे.

दलालों ने 8 यूनिट खून के लिए 28,000 रुपए और तीन यूनिट ब्लड के प्लेटलेट्स के लिए 36,000 रुपए की मांग की. जाहिर है कि डेंगू जैसी बीमारी का जितना खौफ फैलता है उतना ही खून के इन सौदागरों का धंधा चमकता है.

एम्स
एलएनजेपी अस्पताल के बाद 'आजतक/इंडिया टुडे' ने देश के सबसे बड़े अस्पताल एम्स का रुख किया. ये जानने के लिए कि खून के कालाबाजारियों की जड़ें कहां तक फैली हुई हैं. एम्स में सख्ती ज्यादा है इसलिए यहां ब्लड बैंक से खून तभी मिलता है जब पहले मरीज का कोई तीमारदार खून डोनेट करे. इस सख्ती के बावजूद यहां भी खून के सौदागर बेखौफ सक्रिय दिखाई दिए.

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यहां महेश पंजाबी नाम के दलाल से अंडर कवर रिपोर्टर ने मरीज की हालत नाजुक बताते हुए 5 यूनिट खून कहीं से भी जुटाने के लिए कहा. इस पर दलाल ने कहा कि 5 हो 10 हो या 15 यूनिट, जितना मर्जी चाहो खून मिल जाएगा. जब दलाल से पूछा गया कि डोनर कहां से जुटाओगे तो उसने कहा कि कॉलेज से लड़के मंगवाएंगे जो खून देने का पैसा लेंगे. रिपोर्टर ने पूछा कि कितना पैसा लगेगा तो दलाल ने कहा कि तीन हजार रुपये यूनिट लेते हैं लेकिन आप से 2800 रुपये ले लेंगे. इस दलाल से जब O पॉजिटिव ग्रुप के मरीज के लिए प्लेटलेट्स उपलब्ध कराने के लिए कहा तो उसने इसके लिए 6000 रुपए यूनिट के हिसाब से मांग की.

जब दलाल को एमरजेंसी का हवाला दिया गया तो उसने कहा कि एम्स में भीड़ ज्यादा है, यहां लड़कों को बुलाने के बाद ब्लड चेकिंग, और खून दान कराने से लेकर प्लेटलेट्स निकालने तक में लिए एक दिन से ज्यादा वक्त लग जाएगा. जब अंडर कवर रिपोर्टर ने कहा कि इतना वक्त नहीं है तो दलाल (महेश पंजाबी) ने एक और दलाल को बुलाया. इस दूसरे दलाल ने कहा कि काम हो जाएगा, दो घंटे का वक्त देना होगा, लेकिन पैसे ज्यादा लगेंगे.

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जब अंडर कवर रिपोर्टर ने पैसे कम करने की बात की तो दलाल खून में व्हाइट ब्लड सेल्स की अहमियत समझाने लगा. बताने लगा कि प्लेटलेट्स से ही खून बनता है. दलाल से जब ये जानना चाहा कि इस तरह खून लेना सुरक्षित तो होगा, कहीं किसी ड्रग एडिक्ट का खून तो नहीं दे दिया जाएगा. इस पर दलाल ने कहा कि नहीं कॉलेज के लड़कों से खून लिया जाता है. इन दलालों ने ये भी बताया कि वो ऐसे कॉलेज स्टूडेंट्स से खून लेते हैं जिनके खर्चे ज्यादा होते हैं और वो उन्हें पूरा करने के लिए ये रास्ता अपनाते हैं. दलालों के दावे के मुताबिक खून की ब्लैक मार्केटिंग में दिल्ली ही नहीं, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और गाजियाबाद के लड़के भी हिस्सा बने हुए हैं.

इसके बाद दलाल बोनी की बात करने लगे. कहा कि अभी एक हजार रुपए दे दो बाकी काम होने के बाद. आखिर दलाल बोनी के तौर पर 200 रुपए लेने पर ही राजी हो गया. खून के सौदागर अस्पतालों में दलालों पर पड़ने वाली रेड से भी बेखौफ हैं. दलाल महेश पंजाबी ने एक दिन पहले सफदरजंग अस्पताल में रेड पड़ने की बात खुद ही बताई.

जीटीबी अस्पताल
खून के गोरखधंधे में लगे लोगों को बेनकाब करने की अगली कड़ी में 'आजतक/इंडिया टुडे' जीटीबी अस्पताल पहुंचा तो वहां का नजारा भी कुछ अलग नहीं था. आजतक की टीम को जीटीबी अस्पताल के गेट नंबर 7 की पार्किंग के बाहर ही खून का सौदागर मिल गया। चेहरा देखकर ही वो बोला बाहर से आए हो?

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रिपोर्टर- 'हां जी, B-ve है.'

दलाल- 'वो तो ग्रुप यहां होगा तभी देंगे...इसके पैसे जमा होंगे.'

रिपोर्टर- 'कोई नहीं, डोनर नहीं है हमारे पास.'

दलाल- 'आपके पास डोनर तो नहीं है हमारे पास है.'

रिपोर्टर- 'क्या लगेगा डोनर का?'

दलाल - 'एक डोनर का 3500 रुपये.'

रिपोर्टर- 'डोनर साफ-सुथरा होना चाहिए.'

दलाल – 'डोनर तो हम अपना भेजेगें साफ-सुथरा भेजेगें. हम ऐसे थोड़ी भेजते हैं. सब कुछ चेक-अप होता है अंदर.'

रिपोर्टर - 'करवा दो.'

ये सब जानने के बाद आपको समझ आ गया होगा कि खून के सौदागर किस तरह रेट सेट कर इस गोरखधंधे को अंजाम देने में लगे हैं.

आरएमएल अस्पताल
दिल्ली के बड़े अस्पतालों में फैले खून के कालाबाजारियों के नेटवर्क को बेनकाब करने की मुहिम के तहत 'आजतक/इंडिया टुडे' टीम आरएमएल अस्पताल पहुंची तो वहां भी स्थिति कुछ अलग नहीं मिली. अंडर कवर रिपोर्टर ने यहां ब्लड बैंक कर्मचारी सचिन से खून की जरूरत जताते हुए संपर्क किया.

रिपोर्टर - 'कैसे हमें खून मिल सकता है?'

सचिन - 'जो भी डोनेट होता है.'

रिपोर्टर - 'कितना पैसा लगेगा.'

सचिन - '10,000 रुपये.'

रिपोर्टर - '10,000 रुपये प्रति यूनिट'

सचिन - 'हां.'

रिपोर्टर- 'प्लेटलेट्स के लिए?'

सचिन - 'भाई से पूछना पड़ेगा.'

सचिन - 'दो यूनिट एडजस्ट कर देंगे, बाकी दो बाद में अरेंज होंगी.'

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रिपोर्टर - 'अनिल जी....रेडक्रॉस से?'

सचिन - 'आप उन्हें जानते हैं.'

रिपोर्टर - 'आप ही ने बताया.'

सचिन - 'अनिल जी ने कहा है कि वहां उनका एक रिश्तेदार है. वो मैनेज कर लेंगे.'

रिपोर्टर - 'कितना पैसा लगेगा.'

सचिन - 'अंकल ने पहले ही बता दिया है, 30,000 रुपये.'

रिपोर्टर - 'कैसे?'

सचिन - 'आपको प्लेटलेट्स भी चाहिए ना?'

रिपोर्टर - 'प्लेटलेट्स भी...15,000 रुपये?'

सचिन - 'प्रति यूनिट.'

रिपोर्टर - 'ये तो बहुत ज्यादा है.'

सचिन - 'ज्यादा? क्यों? हम प्लेटलेट्स भी दे रहे हैं. आपको ये कहीं नहीं मिलेंगे और आप फिर भी पैसे के लिए किचकिच कर रहे हैं. आपको ये कहीं नहीं मिलेंगे. आप यहां वहां देख लो. आपका काम हो जाएगा.'

रिपोर्टर - 'रेडक्रॉस से ही ना.'

सचिन - 'निश्चित तौर पर, हमारे वहां पांडेय जी है, उनके कॉन्टैक्ट हैं.'

'आजतक/इंडिया टु़डे' ने इस तरह आप तक पहुंचाया कि मरीजों की जरूरत को किस तरह खून के सौदागरों ने बड़ा धंधा बना लिया है. खून के दान को बेशक सबसे बड़ा दान कहा जाता हो लेकिन इन सौदागरों के लिए यही खून अपनी जेबें भरने का जरिया है.

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