
एमसीडी चुनावों के दौरान वैसे तो सभी पार्टियां एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाकर वोटरों को लुभाने की जुगत मे लगी हैं लेकिन स्कूली बच्चों के बारे में कोई नहीं सोच रहा, क्योंकि वो चुनाव में वोटर नहीं है. यही वजह है कि जब दिल्ली सरकार और एमसीडी ने स्कूलों में 33 हज़ार शिक्षकों की नियुक्ति अभी तक नहीं की तो हाई कोर्ट को 3 हफ्तों मे इस प्रक्रिया को शुरू करने के सख्त आदेश देने पड़े.
दरअसल दिल्ली सरकार के सरकारी स्कूलों मे 27 हज़ार शिक्षकों की नियक्ति होनी है. जो फ़िलहाल काम कर रहे शिक्षकों की संख्या का लगभग 50 फीसदी हैं. यानी दिल्ली सरकार के स्कूलों में 50 फ़ीसदी शिक्षक रखे बिना ही बच्चों को शिक्षा दी जा रही है. ये हाल तब है जब दिल्ली सरकार खुद मियां मिट्ठू बनकर शिक्षा को सरकारी स्कूलों में बेहतर करने का दावा करती आई है. अब सोचिये कि जब किसी स्कूल मे आधे शिक्षक होंगे ही नहीं तो पढ़ाई भला कैसे होगी.
एमसीडी के स्कूलों की हालत भी दिल्ली सरकार के स्कूलों जैसी ही है. यहां तीनों एमसीडी में कुल मिलाकर 6 हज़ार शिक्षकों के पद खाली हैं. बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जब एमसीडी चुनावों के दौरान अपनी उपलब्धियों को गिनाने में लगे हैं उसी वक्त दिल्ली सरकार और एमसीडी को शिक्षकों की नियुक्ति पर हाई कोर्ट ने फटकार लगाई है. कोर्ट ने इस मामले में एक कमेटी के गठन का आदेश भी दिया है जो कोर्ट को बताएगी कि नियुक्ति की प्रक्रिया को कैसे शुरू किया जाए और इस प्रक्रिया को जल्द से जल्द कैसे खत्म किया जा सकता है.
हाई कोर्ट इस बात से बेहद नाराज था कि पिछले कई आदेशों के बाद भी अब तक शिक्षकों की नियुक्ति के मामले को सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया जो कि सीधे तौर पर बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ है. हाइकोर्ट शिक्षकों की भर्ती से जुड़ी एक अवमानना याचिका पर भी सुनवाई कर रहा है. कोर्ट 2016 में ही आदेश कर चुका था कि इन शिक्षकों की नियुक्ति तुरंत की जाए लेकिन जब सरकार और एमसीडी ने आदेश का पालन नहीं किया तो कोर्ट में वकील अशोक अग्रवाल ने पिछले साल अवमानना की याचिका दायर कर दी.
अशोक अग्रवाल बताते हैं कि पहली बार शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए 2001 मे याचिका लगाई थी. 2008 मे कोर्ट ने शिक्षकों की नियक्ति के आदेश भी दे दिए लेकिन 9 साल बीतने के बाद भी हालात सुधरने के बजाय बदतर ही हुए हैं. गरीब से गरीब आदमी भी सरकारी स्कूलों की ऐसी हालत देखने के बाद अपने बच्चो को यहां दाखिला नहीं दिलाना चाहता.
कोर्ट के इस आदेश के बाद एक बार फिर उम्मीद जगी है कि सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को स्कूलों में शिक्षकों की कमी के चलते पढ़ाई का नुकसान नहीं झेलना पड़ेगा. अगर कोर्ट के आदेश और कमेटी की सिफारिशों पर जल्द अमल हुआ तो मुमकिन है कि सरकारी स्कूलों में अगले सत्र तक शिक्षकों की कमी को पूरा कर लिया जाएगा.