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कूड़े की नई व्यवस्था से साउथ दिल्ली होगी क्लीन

साउथ एमसीडी की नई योजना के तहत अब गीले और सूखे कूड़े को अलग करके अलग रंगों के डस्टबिन में डाला जाएगा. लोगों को जागरूक करने के लिए इस अभियान को डोर टू डोर ले जाया जाएगा. ताकि लोग गीले और सूखे कूड़े को अलग अलग रंग के डस्टबिन में रखने की आदत डाल सकें. साथ ही लोगों को इस योजना को अपनाने के लिए विज्ञापनों का सहारा भी लिया जाएगा.

नीले और हरे रंग के डस्टबिन रखे जाएंगे नीले और हरे रंग के डस्टबिन रखे जाएंगे
रवीश पाल सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 01 जून 2017,
  • अपडेटेड 4:55 PM IST

आमतौर पर राजधानी दिल्ली में कूड़े का संकट गहराया रहता है. इस समस्या से निपटने के लिए साउथ एमसीडी के कमिश्नर पीके गोयल ने कूड़ा प्रबंधन की नई योजना को अपनाते हुए व्यवस्था को आगे बढ़ाया है.

सूखा और गीला कूड़ा होगा अलग
साउथ एमसीडी की नई योजना के तहत अब गीले और सूखे कूड़े को अलग करके अलग रंगों के डस्टबिन में डाला जाएगा. लोगों को जागरूक करने के लिए इस अभियान को डोर टू डोर ले जाया जाएगा. ताकि लोग गीले और सूखे कूड़े को अलग अलग रंग के डस्टबिन में रखने की आदत डाल सकें. साथ ही लोगों को इस योजना को अपनाने के लिए विज्ञापनों का सहारा भी लिया जाएगा. योजना की शुरुआत करते हुए निगम कमिश्नर ने लाजपत नगर मार्किट असोसिएशन और आरडब्लूए के लोगों को शपथ दिलवाई और हस्ताक्षर अभियान शुरू किया. इसके अलावा अब मार्किट और दूसरी जगहों पर अलग-अलग रंग के डस्टबिन भी रखे जाएंगे. इसके अलावा साउथ दिल्ली में लोगों को गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग रखने के लिए नीले और हरे रंग के डस्टबिन भी दिए जाएंगे.

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नई व्यवस्था से होगा ये फायदा
साउथ एमसीडी कमिश्नर पीके गोयल के मुताबिक गीला और सूखा कूड़ा यदि घरों से ही अलग-अलग हो जाए तो इससे पर्यावरण को काफी फायदा होगा. सूखा कूड़ा मसलन प्लास्टिक, कांच, पन्नी और बोतलें नीले रंग के कूड़ेदान में डाली जाएंगी. जिससे उनको सीधे रिसाइक्लिंग या वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में भेजा जा सकेगा. वहीं गीला कूड़ा मसलन बचा हुआ भोजन, सब्ज़ी और फलों के छिलके हरे रंग के डस्टबिन में डाले जाएंगे. जिनसे बाद में जैविक खाद बनाई जा सकेगी.

कम होगा लैंडफिल साइट से कूड़ा
निगम की इस योजना से लैंडफिल साइटों से कूड़ा कम करने में भी मदद मिलेगी क्योंकि वहां पहुंचने से पहले ही गीला और सूखा कूड़ा छंट जाएगा और बहुत कम मात्रा में ही कूड़ा लैंडफिल साइटों तक पहुंच जाएगा. जिससे कि पर्यावरण को भी खासा फायदा पहुंचेगा.

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