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सरकारी खजाने से दी जेठमलानी को फीस, केजरीवाल और सिसोदिया को राहत

अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पर आरोप था कि मानहानि के एक मामले में सरकारी खजाने से वकील राम जेठमलानी को फीस दी गई. राम जेठमलानी को जिस केस के लिए नियुक्त किया गया था वो निजी केस था.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (IANS) दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (IANS)
पूनम शर्मा
  • नई दिल्ली,
  • 14 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 6:59 PM IST

  • याचिकाकर्ता का कहना था कि यह केजरीवाल का पर्सनल केस था
  • अपने पक्ष में कोई बिल पेश न कर सके याचिकाकर्ता प्रदीप मित्तल

सरकारी धन के दुरुपयोग के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को राहत मिली है. दिल्ली की रॉउज एवेन्यू कोर्ट ने आम आदमी पार्टी (आप) के दोनों नेताओं को राहत दी है. अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पर आरोप था कि मानहानि के एक मामले में सरकारी खजाने से वकील राम जेठमलानी को फीस दी गई.

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राम जेठमलानी को जिस केस के लिए नियुक्त किया गया था वो निजी केस था लेकिन केजरीवाल और सिसोदिया ने जेठमलानी की फीस सरकारी खजाने से दी. इस मामले में शिकायतकर्ता आरटीआई कार्यकर्ता प्रदीप मित्तल हैं. उन्होंने कोर्ट में दलील दी कि ये मामला एक तरह से भ्रष्टाचार का है.

क्या है मामला?

दरअसल, आरटीआई एक्टिविस्ट प्रदीप मित्तल ने कोर्ट में रिव्यू पेटिशन दायर कर के कहा था कि अरुण जेटली की ओर से केजरीवाल पर किए गए मानहानि केस में वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी को सरकारी खर्च पर केजरीवाल ने नियुक्त किया था.

याचिकाकर्ता का कहना था कि यह केजरीवाल का पर्सनल केस था. ऐसे में वकील को दी जाने वाली फीस सरकारी खर्चे से कैसे दी जा सकती है. सोशल मीडिया और टि्वटर हैंडल पर यह बात कही गई कि अरविंद केजरीवाल ने अरुण जेटली के खिलाफ अपना मानहानि का मुकदमा लड़ने के लिए राम जेठमलानी को करीब चार करोड़ रुपए सरकारी खर्चे से दिए. केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के वकील ने कोर्ट से कहा था कि राम जेठमलानी को किसी तरीके की कोई फीस नहीं दी गई है. उन्होंने केजरीवाल के लिए यह केस फ्री में लड़ा था.

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बचाव पक्ष की तरफ से पेश हुए वकीलों ने कोर्ट को कहा कि जब अरुण जेटली ने केजरीवाल पर मानहानि का केस किया था उस समय जेठमलानी ने बयान दिया था कि बिना पैसे लिए वो केजरीवाल का केस लड़ेंगे. इसी बयान के मद्देनजर केजरीवाल ने अपना वकील जेठमलानी को नियुक्त किया था. ऐसे में इस याचिका का कोई आधार ही नहीं है. लिहाजा इसे खारिज किया जाना चाहिए.

पहले भी खारिज हो चुकी है याचिका

याचिकाकर्ता भी इस मामले में कोई ऐसा बिल कोर्ट में पेश करने में नाकाम रहे जिससे यह साबित हो सके कि केजरीवाल और सिसोदिया ने राम जेठमलानी को फीस देने के लिए सरकारी फंड का इस्तेमाल किया. कोर्ट ने भी इन्हीं सब चीजों को आधार बनाते हुए केजरीवाल और सिसोदिया को इस मामले में राहत देते हुए याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज कर दिया. कोर्ट पहले भी इस मामले में याचिकाकर्ता की अर्जी को खारिज कर चुका था. इस बार आरटीआई एक्टिविस्ट प्रदीप मित्तल की ओर से रिविजन पिटिशन लगाई गई थी.

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