
यूपी में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मायावती पर संगीन सियासी इल्जाम लगाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य शुक्रवार को दिल्ली पहुंच चुके हैं. अपने लिए राजनीतिक विकल्प तलाशने में जुटे मौर्य यहां बीजेपी नेताओं से मुलाकात करने वाले हैं, वहीं बीएसपी छोड़ने के बाद उनकी 'साइकिल की सवारी' यानी सपा में शामिल होने की चर्चा ने जोर पकड़ी है.
अभी तक इस सवाल को लेकर अटकलों का बाजार गर्म था और चर्चा यहां तक थी की मौर्य न सिर्फ समाजवादी पार्टी का दामन थामेंगे, बल्कि 27 जून को होने वाले अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल फेरबदल में मंत्री पद भी पा सकते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य के बहुजन समाज पार्टी छोड़ने के बाद जिस तरह अखिलेश यादव शिवपाल यादव से लेकर आजम खान ने उनकी तारीफ की, उससे इन अटकलों को और भी दम मिला. अखिलेश ने तो मौर्य के लिए यहां तक कहा कि वह अच्छे व्यक्ति हैं, लेकिन गलत पार्टी में हैं.
दूसरी ओर, बीएसपी के प्रमुख ओबीसी चेहरे के बाहर होने के बाद मायावती की पूरी कोशिश पार्टी के वोट को छिटकने से रोकना है. माया ने इस बाबत पार्टी विधायकों की बैठक भी बुलाई है.
सपा पर मौर्य ने साधा निशाना
स्वामी प्रसाद मोर्य ने गुरुवार को जिस तरह से समाजवादी पार्टी के खिलाफ बयानबाजी की, उससे यह तय हो गया कि वह साइकिल की सवारी करने से पहले हर तरह के विकल्प को टटोलना चाहते हैं. समाजवादी पार्टी पर सीधा हमला बोलते हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि पिछले 4 वर्षों से उत्तर प्रदेश में जिस तरह अराजकता और गुंडाराज चल रहा है, उसे रोकने की जिम्मेदारी समाजवादी पार्टी के नेताओं की है.
मौर्या ने यहां तक कहा कि चाहे समाजवादी पार्टी हो या भारतीय जनता पार्टी अपने लोगों पर लगाम लगाना और पार्टी में क्या चल रहा है, इसे देखना नेताओं की जिम्मेदारी है. मौर्य के इस बयान से सपा के नेता हक्के-बक्के रह गए. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि ऐसी बयानबाजी करके मौर्य अपने लिए सपा में आने के रास्ते बंद कर रहे हैं. अब इस बात की कोई संभावना नहीं है की 27 तारीख को होने वाले मंत्रिमंडल के फेरबदल में स्वामी प्रसाद मौर्य पार्टी में शामिल होकर मंत्री बनेंगे.
सपा के लिए होगा फायदे का सौदा
हालांकि, समाजवादी पार्टी के नेता यह मानते हैं की मौर्य अगर उनकी पार्टी से आकर जुड़ते तो वोटों के गणित के हिसाब से यह अच्छा सौदा होता. चुनाव के पहले सपा इस कोशिश में जुटी हुई है कि ज्यादा से ज्यादा पिछड़ी जातियों को पार्टी के साथ जोड़ा जाए. इसे सपा के खिलाफ लगने वाले इस आरोप की धार कम होगी कि वह सिर्फ यादवों की पार्टी है.
बताया जाता है कि इसी कोशिश के तहत बेनी प्रसाद वर्मा से लेकर अजीत सिंह तक से पुरानी दुश्मनी भूलकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया गया. समाजवादी पार्टी के नेताओं को उम्मीद है कि बेनी प्रसाद वर्मा अपने साथ कुरमी वोट और अजीत सिंह अपने साथ जाट वोट की सौगात लाएंगे. स्वामी प्रसाद मौर्य सपा के लिए काम के नेता हो सकते हैं, क्योंकि जिस कुशवाहा बिरादरी से मौर्य आते हैं उसका कोई बड़ा चेहरा समाजवादी पार्टी के पास नहीं है.
सपा में मौर्य को लेकर रुखे तेवर भी
सपा के नेता यह भी देख रहे हैं कि पिछड़ी जातियों को जोड़ने के लिए किस तरह से बीजेपी अपनी रणनीति तैयार कर रही है. केशव प्रसाद मौर्य को उत्तर प्रदेश में बीजेपी की बागडोर देकर उसने अपनी अपनी मंशा साफ कर दी है. लेकिन सपा के वरिष्ठ मंत्री का कहना है कि इतने भी बड़े नेता नहीं है कि उन्हें पार्टी में लाने के लिए आरजू मिन्नत की जाए. सभी इस बात को जानते हैं कि वह अपने विधानसभा चुनाव की हार गए थे और बाद में उपचुनाव में ही जीत पाए.
शक्ति प्रदर्शन के बाद बीजेपी तय करेगी राय
दूसरी ओर, स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी नेताओं के भी संपर्क में हैं और दिल्ली जाकर बीजेपी के नेताओं से मिल भी सकते हैं. एक जुलाई को मौर्य ने लखनऊ में अपने समर्थकों की बैठक बुलाई है. इसे उनका शक्ति प्रदर्शन भी माना जा रहा है. अगर समर्थन अच्छा मिला तो स्वामी प्रसाद मौर्य अपनी पार्टी भी बना सकते हैं ताकि उनकी स्थिति मजबूत हो और मोलतोल करके वह बाद में बीजेपी या सपा से जा मिलें.
मौर्य को लगता है कि जल्दबाजी में कदम उठाने से वह ठीक से मोल तोल नहीं कर पाएंगे. समाजवादी पार्टी फिलहाल उनसे आगे बढ़कर बातचीत करने के मूड में नहीं है. अब सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि उन्हें कितना समर्थन मिलता है और बीजेपी से उनकी बातचीत में उन्हें कितनी तरजीह दी जाती है.