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पीएम मोदी और अमिताभ बच्चन को दलित देंगे ‘बदबू गुजरात की’ का न्योता

ऊना दलित अत्याचार लादत समिति मंगलवार अहमदाबाद के नजदीक कालोल में यह अभियान शुरू करेगी. इसके साथ ही ‘बदबू गुजरात की’ टैगलाइन वाले हजारों पोस्टकार्ड मुंबई में अमिताभ बच्चन के रिहायशी पते और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्हें राज्य में आने का न्यौता देते हुए भेजे जाएंगे.

ऊना में हुआ था दलित युवकों पर अत्याचार ऊना में हुआ था दलित युवकों पर अत्याचार
केशव कुमार/BHASHA
  • अहमदाबाद,
  • 11 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 10:56 PM IST

ऊना में मारपीट की घटना का विरोध कर रहे दलितों ने पर्यटन विभाग की पहल ‘खुशबू गुजरात की’ के जवाब में ‘बदबू गुजरात की’ नामक एक पोस्टकार्ड अभियान चलाने का फैसला किया है. ‘खुशबू गुजरात की’ में अमिताभ बच्चन प्रचार करते हुए नजर आते हैं.

ऊना दलित अत्याचार लादत समिति मंगलवार अहमदाबाद के नजदीक कालोल में यह अभियान शुरू करेगी. इसके साथ ही ‘बदबू गुजरात की’ टैगलाइन वाले हजारों पोस्टकार्ड मुंबई में अमिताभ बच्चन के रिहायशी पते और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उन्हें राज्य में आने का न्यौता देते हुए भेजे जाएंगे.

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समिति के संयोजक जिग्नेश मेवानी ने रविवार को कहा कि ये पोस्टकार्ड उन्हें गुजरात आने और मरी हुई गायों की बदबू लेने का न्यौता देते हैं, जिन्हें आंदोलनकारी दलितों ने निस्तारित नहीं किया. क्योंकि मारपीट की घटना के बाद उन्होंने यह काम नहीं करने का संकल्प लिया है.

मेवानी ने कहा कि बच्चन ने मोदी के एजेंडे के प्रचार के लिए गुजरात की झूठी छवि बनाई. उन्होंने कहा, ‘अमिताभ बच्चन तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के निमंत्रण पर आए और उन्होंने हरियाली, सुंगध और प्रगतिशील संस्कृति जैसी अच्छी बातें वाले गुजरात की ही बात की.’

मेवानी ने कहा, ‘हमने मरी गायों का निस्तारण करना छोड़ दिया है. कई जगहों पर सैकड़ों गायें मरी पड़ी हैं और उनसे बदबू आ रही है. दलित गंदे नालों में अब भी मर ही रहे हैं, जाति विभाजन और छुआछूत ने उन्हें बहुत सहने को मजबूर कर रखा है.’ उन्होंने कहा, ‘अब , चूंकि हमने मरी हुई गायों का निस्तारण छोड़ दिया है. हम बच्चन और मोदी को गुजरात आने, कुछ वक्त गुजारने और बदबू गुजरात की लेने का न्यौता देंगे.’

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ऊना में मोटा समधियाला गांव के दलितों के साथ स्वयंभू गौरक्षकों ने बेरहमी से मारपीट की थी. उसके बाद दलितों ने विरोधस्वरूप गायों का निस्तारण का अपना पारंपरिक पेशा छोड़ देने का संकल्प लिया था.

मेवानी ने दावा किया, ‘जाति आधारित पेशा छोड़ना दलितों का विवेक है, क्योंकि जाति प्रथा ने यह पेशा उनपर थोपा. हजारों दलितों ने मरी हुई गायों को नहीं उठाने का संकल्प लिया और सैकड़ों ने इसे छोड़ दिया. इससे यह मिथक भी टूटा कि दलित पूरी तरह इसी पेशे पर निर्भर हैं.’ उन्होंने आरोप लगाया कि कई गांवों में गायें नहीं निस्तारित करने पर दलितों पर ऊंची जाति वालों ने हमला भी किया.

उन्होंने कहा, ‘मरी गायों के निस्तारण करने या नहीं करने को लेकर दलित पीटे जा रहे हैं. इससे वे राज्य सरकार के खिलाफ नाराज हो गए हैं. राज्य सरकार अनुसूचित जाति-जनजाति को जमीन देने समेत हमारी मांगों मानने को अबतक तैयार नहीं है.’

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