
भारत के दो सबसे नए केंद्र शासित क्षेत्रों में से एक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए डेंजर जोन में तब्दील हो गया है. यहां बात हो रही है जम्मू और कश्मीर की, वहां भी खास कर कश्मीर घाटी इलाके की. पिछले साल 31 अक्टूबर को जम्मू और कश्मीर के साथ लद्दाख भी केंद्र शासित क्षेत्र बना था. जबकि दिल्ली में बीजेपी की अगुआई वाली केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के घटनाक्रमों को महत्वपूर्ण ठहराने के सभी प्रयास कर रही है, लेकिन जमीन पर पार्टी की इकाई को घाटी के ठंडे मौसम में भी तपिश का सामना करना पड़ रहा है.
घाटी में एक महीने से भी थोड़े समय में कम से कम छह स्थानीय बीजेपी नेताओं पर हमला किया गया, जिनमें से पांच की मौत हो गई. सुरक्षा के अभाव में स्थानीय बीजेपी नेता मुखर हो रहे हैं. उनमें से कई ने आधिकारिक तौर पर घाटी के प्रत्येक जिले में बीजेपी कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षित क्षेत्रों को चिह्नित करने के लिए कहा है. बडगाम निवासी अब्दुल हामिद नजर की हत्या के बाद, स्थानीय बीजेपी यूनिट ने पुलिस के शीर्ष अधिकारियों से अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए "सुरक्षा मॉडल" बनाने का आग्रह किया है.
बीजेपी प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर ने कहा, “जिला मुख्यालय में सुरक्षित आवास कम से कम 50 से 60 लोगों के लिए होना चाहिए. उन्हें भोजन और अन्य बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिए.” अन्य नेता भी सुरक्षा के मुद्दे पर जोर देते हुए प्रशासन की आलोचना कर रहे हैं. स्थानीय बीजेपी नेता सोफी यूसुफ ने कहा, “सुरक्षा के मोर्चे पर सरकार के प्रयासों में स्पष्ट रूप से कमी है. हम सरकार से अपील करते हैं कि जिन लोगों को खतरा है, उन्हें सुरक्षा मुहैया कराई जाए.”
जिन नेताओं को हमलों में निशाना बनाया गया वो सभी स्थानीय पंचायत स्तर की राजनीति से जुड़े थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य वरिष्ठ केंद्रीय नेताओं ने कई बार मुख्यधारा की राजनीतिक गतिविधि की कमी के कारण पंचायत चुनावों के महत्व पर फोकस किया. खास तौर पर पिछले साल 5 अगस्त को जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किए जाने के बाद के घटनाक्रम में.
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स्थानीय स्तर पर पार्टी के भीतर एक भावना है कि हमले पंचायत राजनीति पर ध्यान केंद्रित किए जाने की वजह से हो सकते हैं. स्थानीय बीजेपी नेता ब्रिगेडियर अनिल गुप्ता (रिटायर्ड) ने कहा, “आंख से जो दिखता है, उससे कहीं ज्यादा है. यह साफ है कि जो तत्व पंचायतों के जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को पनपते नहीं देखना चाहते, वही सब ऐसा कर रहे हैं.
घाटी के राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि सरकार ने जमीनी स्तर के इन कार्यकर्ताओं को नाकाम कर दिया है. राजनीतिक विश्लेषक माजिद हैदरी कहते हैं, “पहला बिंदु सरकार ने अपर्याप्त सुरक्षा प्रदान की है. दूसरा बिंदु यह है कि धारा 370 को रद्द करने और उसके बाद हुए परिवर्तनों ने ऐसी धारणा बनाई कि डेमोग्राफिक बदलाव लाने के लिए ये बड़ा हिन्दुत्व एजेंडा था और ये स्थानीय कार्यकर्ता पंचिंग बैग बन रहे हैं.”
अन्य राजनीतिक नेता घाटी में इन घटनाओं की निंदा कर रहे हैं. जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी के नेता गुलाम हसन मीर कहते हैं- “किसी के खिलाफ हिंसा का उपयोग करना बिल्कुल गलत है. हमारा साधन संवाद होना चाहिए न कि हिंसा. ये राजनीतिक हत्याएं गलत हैं.” इन हमलों ने घाटी में बीजेपी कार्यकर्ताओं को भयभीत कर दिया है. यही वजह है उनमें से कई अब इस्तीफा दे रहे हैं. ये खुले पत्रों के रूप में इस्तीफा सोशल मीडिया पर सभी को देखने के लिए अपलोड करते हैं. सूत्रों ने कहा कि 17 से अधिक ऐसे इस्तीफे पिछले कुछ हफ्तों में विभिन्न स्थानों पर हुए हैं.
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बडगाम निवासी और बीजेपी के ओबीसी मोर्चा प्रभारी अब्दुल हमीद नजर की हत्या हिंसा की सबसे हालिया घटना है. इससे एक महीने पहले बीजेपी नेता वसीम बारी की उनके भाई और पिता के साथ बांदीपोरा में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. पिछले कुछ महीनों में, विशेष रूप से दक्षिण कश्मीर में बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमले हुए हैं.