
जम्मू-कश्मीर में सरकार के निर्माण को लेकर रूपरेखा क्या होगी, इसको लेकर न तो पीडीपी और न ही बीजेपी कुछ स्पष्ट कर पा रही है. जबकि रविवार को महबूबा मुफ्ती से सोनिया गांधी की मुलाकात ने राजनीति के नई समीकरण की ओर संकेत जरूर दे दिए हैं. दूसरी ओर, गर्वनर रूल के मद्देनजर राज्यपाल एनएन वोहरा ने सोमवार को सचिवालय में प्रशासनिक सचिवों की बैठक बुलाई है. वोहरा मुख्य सचिव और पुलिस प्रमुख से अलग से मुलाकात करेंगे.
मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद प्रदेश में बदले सियासी महौल में अगले मुख्यमंत्री पर सबकुछ तय होते हुए भी, कुछ भी तय नहीं जैसी स्थिति बनी हुई है. पीडीपी के सूत्रों के हवाले से खबर है कि न तो पार्टी और न ही महबूबा मुफ्ती सरकार निर्माण को लेकर जल्दबाजी करना चाहती है. बीजेपी के राम माधव ने भी कहा है कि पीडीपी ने सरकार के स्वरूप को लेकर अपनी राय अभी नहीं रखी है, इसलिए उनकी पार्टी इस ओर फिलहाल कुछ कहना नहीं चाहती.
इस बीच प्रदेश में गर्वनर रूल के मद्देनजर राज्यपाल ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी हैं तो मुख्य सचिव बीआर शर्मा और राज्य पुलिस के मुखिया के. राजेंद्र भी रविवार को श्रीनगर से जम्मू लौट आए हैं.
एक साल बाद फिर वही कहानी...
करीब एक साल बाद जम्मू-कश्मीर में सियासत की धुरी कहीं न कहीं उसी जगह आकर टिक गई है, जहां से इसकी शुरुआत हुई थी. 2014 में विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद ने सत्ता के शीर्ष पर बैठने में कोई जल्दबाजी नहीं दिखाई थी और अब उनके निधन के बाद बेटी महबूबा मुफ्ती भी पिता के पदचिन्हों पर ही आगे बढ़ रही हैं. सियासी दलों से लेकर राजभवन तक मिलने-मिलाने और बैठकों का दौर जारी है, जबकि सरकार का चेहरा क्या होगा इसको लेकर कोई खाका साफ-साफ खींचा नहीं गया है.
याद कीजिए तो 25 दिसंबर 2014 को चुनाव के नतीजों के बाद भी सरकार निर्माण को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं थी और तब सियासी गहमागहमी के बीच 9 जनवरी 2015 को राज्यपाल वोहरा ने ही राज्य में गवर्नर रूल की घोषणा की थी. तमाम राजनीतिक नफा-नुकसान की पड़ताल के बाद पीडीपी-बीजेपी में गठबंधन हुआ तो मुफ्ती मोहम्मद ने 01 मार्च 2015 को बतौर मुख्यमंत्री शपथ ग्रहण किया था. करीब एक साल बाद 9 जनवरी 2016 को भी राज्य में गवर्नर रूल लागू है और गठबंधन की सीरत से लेकर सरकार की सूरत तक कुछ साफ नहीं है.
समझा जा रहा है कि पीडीपी का एक धड़ा बीजेपी से गठबंधन के खिलाफ है. जबकि बीजेपी को लेकर महबूबा मुफ्ती का रुख भी कभी कोई खास अच्छा नहीं रहा है. वहीं, बीजेपी नेता राम माधव ने रविवार को मीडिया से रूबरू होते हुए कहा, 'इस समय पीडीपी नेतृत्व आगे की सरकार की व्यूहरचना बनाने के लिए मिलने वाली है. उनकी क्या रणनीति है यह जानने के बाद ही मैं कुछ बोल पाउंगा.' बीजेपी नेता ने आगे कहा, 'हमें पूरा विश्वास है कि जो मुफ्ती साहब का विजन था, हम उसे पूरा करेंगे और सरकार चलाएंगे.'
क्या नाराज चल रही हैं महबूबा मुफ्ती?
सूत्रों के हवाले से खबर है कि पिता के निधन के बाद पीडीपी की बागडोर संभालने वाली महबूबा मुफ्ती बीजेपी से नाराज चल रही हैं. खबरें तो यहां तक आ रही हैं कि उन्होंने सरकार निर्माण को लेकर बीजेपी के सामने कुछ शर्तें भी रखी हैं. इनमें राज्य में बड़े पोर्टफोलियो पीडीपी के हिस्से से लेकर संवेदनशील मुद्दों को दरकिनार करने तक की बात शामिल है.
हालांकि, बीजेपी विधायक के. रवींद्र रैना ने दोनों दलों के बीच किसी भी तरह की नाराजगी की खबरों को खारिज किया है.
इससे पहले, रविवार दिन में श्रीनगर में कांग्रेस उपाध्यक्ष सोनिया गांधी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी महबूबा मुफ्ती से मिलने पहुंचे. हालांकि दोनों नेताओं ने कहा कि वे मुफ्ती मोहम्म्द की मौत पर संवेदना के नाते मुलाकात करने पहुंचे थे, लेकिन मुलाकात के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं.
साफ संकेत हैं कि पीडीपी एक साल पहले की तरह ही गठबंधन की सरकार बनाने से पहले हर फॉर्मूले और हर विकल्प को अच्छी तरह परख लेना चाहती है. राज्य में सीटों का समीकरण भी कुछ ऐसा जहां बिखरे रिश्ते जुड़े तो नई इबारत लिखी जा सकती है.
चार दिन के शोक के बाद साफ होगी सूरत!
गौरतलब है कि सरकार बनाने में हो रही देरी के कारण प्रदेश में शनिवार से गवर्नर रूल लगा दिया गया है. राज्यपाल एनएन वोहरा ने बीते शुक्रवार को पीडीपी और बीजेपी दोनों दलों को चिट्ठी लिखकर सरकार बनाने के बारे में स्थिति स्पष्ट करने को कहा था. पीडीपी ने कहा था कि महबूबा पिता के चोहरम (चार दिनों के शोक) के बाद सरकार संभालना चाहती हैं और इसलिए फिलहाल मुख्यमंत्री पद की शपथ नहीं लेना चाहतीं.
क्या कहता है सीटों का गणित
सूत्रों के मुताबिक बीजेपी भी सईद के चौथे के बाद गवर्नर को नई सरकार को सपोर्ट करने के बाबत चिट्ठी सौंप सकती है. जम्मू-कश्मीर विधानसभा की बात करें तो यहां 87 सदस्यों वाले सदन में पीडीपी के 28, जबकि बीजेपी के 25 विधायक हैं. सरकार बानाने के लिए 44 सीटों की जरूरत है. बाकी पार्टियों में कांग्रेस के पास 12, नेशनल कॉन्फ्रेंस के पास 15, सीपीआई (एम) के पास 1, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (जेकेपीसी) के पास 2, जम्मू-कश्मीर पीपुल ड्रेमोक्रेटिक (सेकुलर) के पास 1 सीट है, जबकि 3 सीटें स्वतंत्र हैं.