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झारखंडः ग्राम सभा के स्कूलों में दी जा रही अजीब शिक्षा

झारखंड के इस पाठ्यक्रम में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी की गई है. कुछ जातियों को भी दिकू बताते हुए उन्हें विदेशी कहा गया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
वरुण शैलेश/धरमबीर सिन्हा
  • रांची,
  • 12 मार्च 2018,
  • अपडेटेड 7:58 AM IST

आपने स्कूलों में बच्चो को प्राथमिक ज्ञान पाते जरूर देखा होगा, जिसमें शिक्षक बच्चों को 'क' से कबूतर, 'ख' से खरगोश पढ़ाते दिख जाएंगे. लेकिन क्या कभी आपने यह सोचा है कि आजाद भारत में कोई ऐसा भी दिन आएगा जहां खुले तौर पर बच्चों को सामाजिक तानेबाने को तोड़ने की शिक्षा दी जाएगी. आइए हम आपको रू-ब-रू कराते हैं एक ऐसी ही कड़वी सच्चाई से, जो इन दिनों झारखंड के ग्रामीण इलाकों के बच्चों को दी जा रही है.

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'क' से कानून, 'ख' से खनिज

'क' से कानून, 'ख' से खनिज-संपदा आदिवासियों की है, 'ग' ग्राम सभा-जो सर्वोपरि है, अंगः अंग अंग में रूढ़ि व्यवस्था है. चौकिए मत यह शिक्षा बच्चों को बाकायदा स्कूल चलाकर दी जा रही है. ये पाठ्यक्रम खूंटी जिले के मुरहू इलाके के उदबुरू गांव की रूढ़िवादी ग्राम सभा ने अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए जारी किया है.

इस पाठ्यक्रम में देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू तक के खिलाफ अमर्यादित टिप्पणी की गई है. कुछ जातियों को भी दिकू बताते हुए उन्हें विदेशी कहा गया है. खुले में चल रहे इस स्कूल के ठीक सामने सरकारी स्कूल है, जहां सिर्फ दो बच्चे नियमित पाठ्यक्रम पढ़ रहे हैं.

दरअसल झारखंड में बच्चों को इस तरह पढ़ाया जा रहा है कि उनके दिमाग में वही बातें आएं जो ग्राम सभा कहती है. पाठ्यक्रम में बताया गया है- 'क' से कानून. इसकी व्याख्या है- आदिवासियों के पास अपना कानून है. 'ख' से खनिज यानी खनिज संपदा आदिवासियों की है. खूंटी जिले के चामड़ी, बरबंदा, भंडरा, कुदाटोली, सिलादोन पंचायत समेत रांची के बुंडू प्रखंड के बेड़ा, पानसकम, हांजेद गांवों में ग्रामसभा स्कूल चला रही है.

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इनमें ग्रामसभा द्वारा चयनित शिक्षक पढ़ाते हैं. इसके पीछे के तर्क भी अजीबोगरीब है. इलाके के ग्रामीण जोसफ पूर्ति का कहना है कि हम आदिवासियों की व्यवस्था के तहत अपनी शिक्षा बच्चो को दे रहे हैं. वहीँ खूंटी के जिला शिक्षा अधिकारी का कहना है कि जो कुछ हो रहा है वो निश्चित तौर पर अच्छा नहीं है.

कहा जाता है कि अगर किसी भी समाज के सामाजिक और आर्थिक तानेबाने को तहस नहस करना हो तो बच्चों की शिक्षा को बिगाड़ दो. यही सब कुछ ग्राम सभा की आड़ लेकर किया जा रहा है. दरअसल ग्राम सभा एक पुरानी व्यवस्था थी जिसे ग्रामीणों के हक़ में फैसले लेने का अधिकार था. मगर लोकतंत्र में इसे फिर से सामने लाकर बच्चों के कोमल मस्तिष्क में जो जहर घोला जा रहा है उसे जल्द रोकना बहुत जरूरी है.

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