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अस्तित्व पर संकट के चलते गुस्से में जंगली हाथी, बस्त‍ियों में घुसकर इंसानों को बना रहे निशाना

जंगलों में बढ़ते इंसानी दखल की वजह से हाथी अपना रास्ता भूलकर गांवों और बस्त‍ियों में घुसकर लोगों को निशाना बना रहे हैं.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
राहुल झारिया/धरमबीर सिन्हा
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  • 13 अगस्त 2018,
  • अपडेटेड 8:40 PM IST

झारखंड के जंगली हाथी इनदिनों काफी गुस्से में हैं और वे फसलों, घरों के साथ-साथ लोगों को भी अपना निशाना बना रहे हैं. इन जंगली हाथियों के गुस्से की मुख्य वजह उनके आने-जाने समेत घूमने-फिरने के रास्तों-जगहों पर इंसानी दखल है. दरअसल विकास की दौड़ में लोगों को सुविधा मुहैया कराने इन मूक प्राणियों की अनदेखी की जा रही है. उनके ट्रांजिट रूट्स पर पक्के निर्माण कर दिए जाने की वजह से ये हाथी रास्ता भटक रहे हैं और ग्रामीणों से उनकी भिड़ंत हो रही है. दूसरी तरफ जंगलों की अवैध कटाई से भी इनका इलाका सिमटता जा रहा है.

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हाथि‍यों के हमले से औसतन हर साल करीब 58 लोगों की जान जाती है. आंकड़ों के मुताबिक, 2017-18 में हाथियों के हमले में 78 लोगों की जान गई थी. इस साल यह आंकड़ा बढ़ भी सकता है. वहीँ बीते 10 सालों में 582 लोग हाथियों के गुस्से का शिकार बने हैं. इनमें से ज्यादातर लोग खेतों और जंगलों में इनका शिकार बने. अमूमन जंगली जानवर आग से घबराते हैं, लेकिन हालिया दिनों में कुछ ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जिनमें हाथियों ने ग्रामीणों के द्वारा जलाई आग की परवाह न करते हुए हमले किए. इससे इनके गुस्से का अंदाजा लगाया जा सकता है.

वन विभाग के अफसर भी इस बात को मानते हैं कि हाथी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं. इसकी वजह वे जंगलों पर बढ़ता इंसानी दखल के दबाव को बताते हैं. अफसरों के मुताबिक, जंगलों की सघनता में लगातार कमी आ रही है. भोजन, जमीन की कमी के कारण इंसान और हाथी आपस में प्रतियोगी हो गए हैं. उनके रास्तों में रुकावटें आ जाने की वजह से ये अक्सर जंगलों के बीच से गुजरने वाली रेल पटरियों पर पहुंच जाते हैं और ट्रेन की चपेट में आकर अपनी जान गंवा देते हैं. हाल के सालों में ऐसे हादसों में इजाफा हुआ है.

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बता दें कि हाथियों की संख्या में कमी के मद्देनजर इंटरनेशनल यूनियन फॉर कांसर्वेशन ऑफ नेचर ने भी भारतीय हाथियों को लुप्तप्राय वन्य प्राणियों की सूची में शामिल किया है.

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