Advertisement

राहुल राज में लौटेंगे पुराने सहयोगी? NCP-कांग्रेस की साझा रैली के क्या हैं मायने

महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण ने बताया कि 2019 में कांग्रेस और एनसीपी मिलकर चुनाव लड़ेंगे और सरकार बनेगी.

शरद पवार और राहुल गांधी शरद पवार और राहुल गांधी
जावेद अख़्तर
  • नागपुर,
  • 13 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 12:16 PM IST

राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभालते ही अब चर्चा 2019 के लोकसभा चुनाव पर भी शुरू हो गई है. राहुल ने गुजरात में चुनाव प्रचार करने के बाद अध्यक्ष के तौर पर अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में भविष्य की रूपरेखा पर संक्षिप्त जानकारी दी. तो वहीं इससे पहले बिहार के पूर्व सीएम और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी राहुल को विपक्षी एकता के नेता के तौर स्वीकार्यता के संकेत दे चुके हैं.

Advertisement

ऐसे में अब राहुल की कोशिश भी बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मजबूत होते जनाधार को विपक्षी एकता के साथ तोड़ने की रहेगी. मंगलवार को आरएसएस के गढ़ नागपुर में एक ऐसी कोशिश भी देखने को मिली. जहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस की दोस्ती एक बार फिर ट्रैक पर लौटती नजर आई.

किसानों की कर्जमाफी पर महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ नागपुर में दोनों दलों ने संयुक्त रूप से विरोध प्रदर्शन किया. इस दौरान महाराष्ट्र के पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण ने बताया कि 2019 में कांग्रेस और एनसीपी मिलकर चुनाव लड़ने की घोषणा भी कर डाली.

आगामी लोकसभा चुनाव कांग्रेस के साथ गठबंधन पर एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि दोनों पार्टियों को यूनाइटेड रहना चाहिए और 2019 में उनकी सरकार आएगी. इस घोषणा के साथ ही एनसीपी ने बीजेपी के प्रति अपने सख्त तेवर भी दिखाने शुरू कर दिए हैं.

Advertisement
मोदी पर शरद पवार का निशाना

किसानों की कर्जमाफी और पीएम मोदी के पूर्व पीएम मनमोहन सिंह पर दिए गए बयान को लेकर एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार मोदी पर जमकर बरसे. उन्होंने यहां मनमोहन के खिलाफ टिप्पणी को लेकर कहा, 'मोदी को शर्म आनी चाहिए.'

वहीं शरद पवार ने किसानों से राज्य सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू करने का आह्वान किया और कहा कि सरकार जब तक किसानों का कर्ज माफ नहीं करती, तब तक किसान न तो बिजली का बिल भरें और न ही बैंकों का कर्ज चुकाएं.

NCP का रुख साफ

यूपीए में सहयोगी रही एनसीपी ने अपना स्टैंड लगभग क्लीयर कर दिया है. लेकिन अब लेफ्ट समेत दूसरे विपक्षी दलों को साथ लाना राहुल की रणनीति का एक हिस्सा रहेगा. यूपी में 2017 का विधानसभा चुनाव सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की दोस्ती में लड़ने वाले राहुल के लिए उन्हें 2019 में साथ लाना आसान माना जा रहा है. वहीं दूसरी तरफ बसपा भी अतीत में कांग्रेस को सरकार में समर्थन दे चुकी है. ऐसे में सपा का कांग्रेस के साथ होने के बावजूद राहुल के लिए मायावती को साथ लाना संभव माना जा रहा है.

वहीं बिहार, बंगाल और केरल की बात की जाए तो लालू कांग्रेस के सहयोग के साफ संकेत दे चुके हैं. केरल में बीजेपी ने ताकत फूंकी हुई है और आरएसएस नेताओं की हत्याओं को राष्ट्रव्यापी मुद्दा बनाया है. जिसने वहां सत्ताधारी लेफ्ट के लिए चुनौती खड़ी कर दी है. पहले भी कांग्रेस को लेफ्ट का समर्थन मिलता रहा है. ऐसे में राहुल वाम दलों को एकजुट लाकर भी बीजेपी के लिए कड़ी चुनौती पेश कर सकते हैं. पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी कांग्रेस के साथ आती-जाती रही हैं. ऐसे में राहुल उन्हें भी साधने की भरपूर कोशिश करेंगे.

Advertisement

राहुल के सामने जहां कांग्रेस संगठन को नया रूप देने और उसमें जान फूंकने का चैलेंज है, वहीं 2014 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने वाली बीजेपी के खिलाफ विपक्षी खेमों को एकजुट करना भी उनके लिए बड़ा टास्क रहेगा.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement