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महाराष्ट्र सरकार ने जज लोया की संदिग्ध मौत मामले की SIT जांच का विरोध किया है. साथ ही इस बाबत दायर याचिका को राजनीति से प्रेरित बताया है. फडणवीस सरकार की ओर से पैरवी कर रहे सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये याचिका न्यायपालिका को सकेंडलाइज करने के लिए दायर की गई है, क्योंकि इसके जरिए राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की जा रही है.
मुकुल रोहतगी ने कहा कि ये सब इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि जिस मामले की सुनवाई जज लोया कर रहे थे, उसमें आरोपी सत्तारूढ पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह हैं. लिहाजा इस मामले में आरोप लगाए जा रहे हैं और मीडिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस की जा रही है. अमित शाह के आपराधिक मामले में आरोपमुक्त होने को इस मौत से जोड़ने की कोशिश की जा रही है.
उन्होंने कहा कि इस मामले में जज लोया के साथी जजों के बयान के बाद उनकी मौत के पीछे अब कोई रहस्य नहीं रह गया है. लिहाजा इसकी आगे जांच की कोई जरूरत नहीं है. CBI के स्पेशल जज लोया की मौत 30 नवंबर 2014 को हुई थी. तीन साल तक किसी ने इस पर उंगली नहीं उठाई और अब अचानक इस पर सवाल उठाए जा रहे हैं. ये सारे सवाल कारवां की नवंबर 2017 की खबर के बाद उठाए गए, जबकि याचिकाकर्ताओं ने इसके तथ्यों की सत्यता की जांच नहीं की.
रोहतगी ने कहा कि 29 नवंबर को लोया के साथ मौजूद रहे चार जजों ने अपने बयान दिए हैं. वो ही चारों जज उनकी मौत के वक्त भी साथ थे. उन्होंने लोया के शव को एंबुलेंस के जरिए लातूर भी भेजा था. रोहतगी ने दलील दी कि पुलिस रिपोर्ट में जिन चार जजों के नाम हैं, उनके बयान पर भरोसा नहीं करने की कोई वजह नहीं है. इनके बयान पर भरोसा करना ही होगा. अगर कोर्ट इनके बयान पर यकीन नहीं करती और जांच का आदेश देती है, तो ये चारों जज साजिश में शामिल माने जाएंगे.
मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक जज लोया की मौत दिल के दौरे से हुई और चार जजों के बयानों पर भरोसा ना करने की कोई वजह नहीं है. लिहाजा राजनीति से प्रेरित इस याचिका को भारी जुर्माने के साथ खारिज किया जाए. रोहतगी की दलील सुनने के बाद कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को तय की है. अब देखना यह होगा कि अदालत इस पर क्या फैसला सुनाता है?