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वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी पर SC में बोली पुलिस- हमारे पास ठोस सबूत

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को पेश किए हलफनामे में महाराष्ट्र पुलिस ने दोबारा अपने दावे को पुख्ता किया और गिरफ्तार कार्यकर्ताओं को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा बताया.

वरवरा राव की फाइल फोटो वरवरा राव की फाइल फोटो
रविकांत सिंह
  • नई दिल्ली,
  • 05 सितंबर 2018,
  • अपडेटेड 7:34 PM IST

महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि पांच वामपंथी कार्यकर्ताओं को विरोध के कारण नहीं बल्कि प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) से उनके संपर्को के बारे में ठोस सबूत के आधार पर गिरफ्तार किया गया है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने 29 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक घरों में ही नजरबंद रखने का आदेश देते हुए महाराष्ट्र पुलिस को नोटिस जारी किया था. इस नोटिस के जवाब में ही राज्य पुलिस ने बुधवार को हलफनामा दाखिल किया.

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सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में इन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य की यचिका पर 29 अगस्त को सुनवाई के दौरान कहा था कि ‘असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वॉल्व’ है. यह बेंच गुरुवार को इस मामले में आगे सुनवाई करेगी.

घात लगाकर हमले की थी योजना

पीटीआई-भाषा की रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र पुलिस ने इस नोटिस के जवाब में ही अपने हलफनामे में दावा किया है कि ये कार्यकर्ता देश में हिंसा फैलाने और सुरक्षा बलों पर घात लगाकर हमला करने की योजना बना रहे थे. राज्य पुलिस का कहना है कि विरोधी नजरिए की वजह से इन्हें गिरफ्तार नहीं किया गया और इसे सिद्ध करने के लिए उसके पास पर्याप्त सबूत हैं.

महाराष्ट्र पुलिस ने गिरफ्तार कार्यकर्ताओं से पूछताछ के लिए उन्हें हिरासत में देने का अनुरोध करने के साथ ही सवाल उठाया है कि याचिकाकर्ता रोमिला थापर और अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक, देविका जैन, समाजशास्त्री सतीश देशपांडे और कानून विशेषज्ञ माजा दारूवाला ने किस हैसियत से याचिका दायर की है और कहा कि वे इस मामले की जांच से अनजान हैं.

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28 अगस्त को हुई थी गिरफ्तारी

महाराष्ट्र पुलिस ने 28 अगस्त को कई राज्यों में प्रमुख वामपंथी कार्यकर्ताओं के घरों पर छापे मारे थे और माओवादियों से संपर्क होने के संदेह में कम से कम पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था. इन गिरफ्तारियों को लेकर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने जबर्दस्त विरोध किया था. पुलिस ने इस छापेमारी के दौरान प्रमुख तेलुगु कवि वरवरा राव को हैदराबाद और वेर्नन गोंसाल्विज और अरुण फरेरा को मुंबई से गिरफ्तार किया गया था जबकि ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज को फरीदाबाद और नागिरक अधिकारों के कार्यकर्ता गौतम नवलखा को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था.

आपराधिक साजिश का हिस्सा थे कार्यकर्ता

पुलिस ने पिछले साल 31 दिसंबर को पुणे के नजदीक आयोजित एलगार परिषद कार्यक्रम के बाद भीमा-कोरेगांव गांव में भड़की हिंसा की जांच के सिलसिले में यह छापेमारी की थी. हलफनामे में कहा गया है कि गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ता आपराधिक साजिश का हिस्सा थे और वे प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य हैं जिन्होंने एलगार परिषद के बैनर तले सार्वजनिक बैठकों का आयोजन किया था.

हलफनामे में कहा गया है कि राज्य हर नागरिक के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है और विरोधी नजरिए या वैचारिक मतभेद या राजनीतिक विचारधारा पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता और प्रत्येक देश में हमेशा इसका स्वागत होना चाहिए.

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हलफनामे में कहा गया है कि वे पांच आरोपी, जिनके हितों की खातिर मौजूदा याचिका दायर की गई है, किसी राजनीतिक या वैचारिक विरोध के आधार पर गिरफ्तार नहीं किए गए हैं बल्कि आठ जनवरी, 2018 (प्राथमिकी दर्ज करने की तारीख) से चल रही जांच के दौरान उनके खिलाफ गंभीर आपराधिक आरोपों का पता चला और उनके खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री भी मिली.

हिंसा की फिराक में थे वामपंथी काडर

हलफनामे में कहा गया है कि यह कोर्ट उन व्यक्तियों के मामले को देख रहा है जिनके खिलाफ अभी तक रिकार्ड पर आए ठोस सबूतों से पता चलता है कि वे प्रतिबंधित आतंकी संगठन भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य हैं और वे न सिर्फ हिंसा की योजना की तैयारी में थे बल्कि 2009 से प्रतिबंधित आतंकी संगठन भाकपा (माओवादी) के एजेंडे के मुताबिक समाज में बड़े पैमाने पर हिंसा, संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और अव्यवस्था पैदा करने की दिशा में थे.

पुलिस ने कोर्ट से यह भी कहा है कि पांचों गिरफ्तार पहली बार किसी प्राथमिकी में आरोपी नहीं बनाए गए हैं बल्कि कुछ की पहले के भी ‘आपराधिक बैकग्राउंड’ थे और वे जेल भी गए थे. हलफनामे के मुताबिक, कार्यकर्ताओं की खोज में जून महीने में रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडगिल, सुधीर धवले और कुछ अन्य के वीडियोग्राफ लिए गए थे.

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कंप्यूटर से मिली चौंकाने वाली जानकारी

हलफनामे में यह भी कहा गया है कि आरोपी व्यक्तियों के कंप्यूटर/लैपटॉप/पेन ड्राइव्स/मेमोरी कार्ड्स से मिली सामग्री चौंकाने वाली है और यह साफतौर पर इन व्यक्तियों के न सिर्फ भाकपा (माओवादी) के सक्रिय सदस्य होने की पुष्टि करते हैं बल्कि अपराध करने के उनके राजनीतिक मंसूबे का पता चलता है. इससे यह भी पता चलता है कि वे समाज में अस्थिरता पैदा करने के लिए अपराध करने में लगे थे.

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