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समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार से सुनवाई शुरू हो गई है. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
केंद्र सरकार की ओर से अदालत में पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इन याचिकाओं पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि सबसे पहले यह तय किया जाना चाहिए की इन याचिकाओं पर सुनवाई की जाए या नहीं?
सीजेआई ने कहा- 'हम हैं इंचार्ज'
चीफ जस्टिस ने कहा कि वह पहले इस मामले को समझने के लिए याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनना चाहेंगे. दलीलें सुनने के बाद ही फैसला लिया जाएगा. इस पर मेहता ने कहा कि यह मामला पूरी तरह विधायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है. हमने इस पर आपत्ति जताते हुए एक आवेदन दिया है कि क्या इस मामले में अदालतें दखल दे सकती हैं या ये सिर्फ संसद का एकाधिकार है?
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि समलैंगिक विवाह पर संसद को फैसला लेने दीजिए. इस पर सीजेआई ने कहा कि हम इंचार्ज हैं और हम तय करेंगे कि किस मामले पर सुनवाई करनी है और किस तरह करनी है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने मामले की शुरुआती परतें उघाड़ते हुए अपनी दलीलें देनी शुरू की. उन्होंने गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार, निजता का सम्मान और अपनी इच्छा से जीवन जीने की दलीलें दीं.
'समलैंगिक विवाह को मान्यता मिले'
रोहतगी ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 14 के मुताबिक समानता के अधिकार के तहत विवाह को मान्यता मिलनी चाहिए. क्योंकि सेक्स ओरिएंटेशन सिर्फ महिला-पुरूष के बीच नहीं, बल्कि समान लिंग के बीच भी होता है.
रोहतगी ने कहा कि इसमें आ रही कानूनी अड़चनों के मद्देनजर कानून में पति और पत्नी की जगह जीवनसाथी यानी स्पाउस शब्द का इस्तेमाल किया जा सकता है. इससे संविधान की प्रस्तावना और अनुच्छेद 14 के मुताबिक समानता के अधिकार की भी रक्षा होती रहेगी.
मुकुल रोहतगी ने कहा कि 377 हटाकर सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर कर दिया. लेकिन बाहर हालात जस के तस हैं. समलैंगिकों के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने हमेशा अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के लिए अंतरजातीय और अंतर-धार्मिक जोड़ों के अधिकार की रक्षा की है. समलैंगिक विवाह को मान्यता नहीं देना LGBTQIA+ जोड़ों की गरिमा पर आघात करने जैसा है. LGBTQ+ नागरिक देश की आबादी में 7 से 8% हिस्सेदारी रखते हैं.
रोहतगी ने नवतेज जौहर मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था. इसके साथ ही पुट्टास्वामी का फैसला, जिसमें निजता के अधिकार और पसंद और चयन के अधिकार पर जोर दिया गया था.
रोहतगी ने कहा कि पसंद का अधिकार, चुनने का अधिकार एक मौलिक अधिकार है. इस पर जस्टिस कौल ने पूछा कि क्या हम इस तरह का डिक्लेरेशन दे सकते हैं?
रोहतगी ने कहा कि हमारी जिंदगी कट और घट रही है. हम जिंदगी भर विधायिका का इंतजार नहीं कर सकते. कुछ डिक्लेरेशन जिनकी हमें आवश्यकता है. इस पर सीजेआई ने कहा कि हम आपसे सहमत हैं. लेकिन क्या हम हस्तक्षेप कर सकते हैं, वह भी तब जब विधायिका भी उस पर विचार कर रही है?
रोहतगी ने कहा अदालतें हमारे अधिकारों की रक्षा के लिए हस्तक्षेप कर सकती हैं. यह हमारा मौलिक अधिकार है. हम केवल उस डिक्लेरेशन की मांग कर रहे हैं जो हमें कोर्ट दे सकता है.
'भगवान अयप्पा का भी हुआ जिक्र'
समलैंगिक विवाह का आधुनिक शहरी विचार बताने की सरकार की दलील का विरोध करते हुए मुकुल रोहतगी ने कहा कि भगवान अयप्पा के जन्म की कथा तो काफी पुरानी है. वो भी भगवान शिव और विष्णु की संतान माने जाते हैं. विष्णु ने जब मोहिनी रूप धरा तो उस समय भगवान अयप्पा का जन्म हुआ.
उन्होंने कहा कि सॉलिसिटर जनरल मेहता सरकार का जो पक्ष रख रहे हैं, उसमे सिर्फ ट्रांसजेंडर का जिक्र है, जो LGBTQ में सिर्फ एक हिस्से 'टी' का ही प्रतिनिधित्व करता है.
क्या है मामला?
दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट समेत अलग-अलग अदालतों में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग को लेकर याचिकाएं दायर हुई थीं. इन याचिकाओं में समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के निर्देश जारी करने की मांग की गई थी. पिछले साल 14 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेंडिंग दो याचिकाओं को ट्रांसफर करने की मांग पर केंद्र से जवाब मांगा था.
इससे पहले 25 नवंबर को भी सुप्रीम कोर्ट दो अलग-अलग समलैंगिक जोड़ों की याचिकाओं पर भी केंद्र को नोटिस जारी की था. इन जोड़ों ने अपनी शादी को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की थी. इस साल 6 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी याचिकाओं को एक कर अपने पास ट्रांसफर कर लिया था.