
महाराष्ट्र की उद्धव सरकार पर संकट के बादल गहरा गए हैं. मंत्री एकनाथ शिंदे 26 विधायकों के साथ सूरत के एक होटल में रुके हुए हैं. वे अपनी ही सरकार और पार्टी से नाराज बताए जा रहे हैं. एक साथ 26 विधायकों के जाने से महा विकास अघाडी का सरकार में बने रहना मुश्किल साबित हो सकता है. वर्तमान में महाराष्ट्र सरकार के पास 169 विधायकों का समर्थन है, अगर 26 विधायक कम कर दिए जाएं तो ये आंकड़ा 143 पर पहुंचता है. सरकार में बने रहने के लिए कम से कम 144 विधायकों के समर्थन की जरूरत है, ऐसे में उद्धव सरकार पर संकट बड़ा है.
सवाल उठता है कि आखिर एक बार फिर गैर बीजेपी शासित राज्य में सियासी संकट कैसे खड़ा हो गया? मोदी सरकार को सत्ता में आए आठ साल हो चुके हैं, इस दौरान कई ऐसे मौके आए हैं जब बीजेपी ने उन राज्यों में भी अपनी सरकार बनाई जहां या तो वो चुनाव जीतने में सफल नहीं रही या फिर जहां पर चुनाव के बाद विधायकों को अपने पाले में कर उसने समीकरणों को बदलने का काम किया. मध्य प्रदेश से लेकर कर्नाटक तक, अरुणाचल से लेकर बिहार तक, कई राज्यों में ऐसा देखने को मिला है.
अरुणाचल प्रदेश
साल 2016 में अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी ने अपनी सरकार बनाई थी. उस समय विधानसभा में पार्टी के 60 में से सिर्फ 11 विधायक थे, लेकिन फिर भी उस राज्य में कांग्रेस की सरकार गिरा दी गई. दरअसल पीपल्स पॉर्टी ऑफ अरुणाचल (PPA) के 33 विधायकों ने बीजेपी का समर्थन कर दिया. उन सभी ने पेमा खंडू के साथ बीजेपी का दामन थामा जिस वजह से बीजेपी और उनके सहयोगी दलों के पास 44 सीटों का आंकड़ा पहुंच गया. ऐसे में पेमा खंडू के नेतृत्व में अरुणाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार बना गई. फिर 2019 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ राज्य में अपनी सरकार बनाई.
कर्नाटक
साल 2018 में हुए कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भी काफी बड़ा खेल देखने को मिला था. उस चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. वो 225 सीटों की विधानसभा में बहुमत तो हासिल नहीं कर पाई, लेकिन उसके खाते में 105 सीटें गईं. वहीं कांग्रेस 78 सीटों पर सिमट गई और जेडीएस को 37 सीटों से संतुष्ट करना पड़ा. अब सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते बीजेपी की तरफ से बीएस येदियुरप्पा ने सरकार बनाने का दावा पेश किया और वे मुख्यमंत्री भी बना दिए गए. लेकिन तीन दिन के अंदर ही उनकी सरकार गिर गई क्योंकि वे बहुमत का आंकड़ा नहीं जुटा पाए. फिर कांग्रेस ने जेडीएस से हाथ मिलाया और राज्य में नई सरकार का गठन हुआ.
तब 37 सीट जीतने वाली जेडीएस के नेता एजडी कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बना दिया गया. लेकिन उनका कार्यकाल सिर्फ 14 महीनों का ही रहा. कांग्रेस के कई विधायक उनकी कार्यशैली से नाराज चलने लगे, बगावती सुर तेज होते गए और फिर आखिरकार 17 विधायकों ने अपना इस्तीफा दे दिया. इसमें कांग्रेस के 14 विधायक शामिल रहे तो जेडीएस के तीन विधायकों ने अपना इस्तीफा दिया.
अब कर्नाटक में ये राजनीतिक उठापटक यहीं पर शांत नहीं हुई. जब 17 विधायकों ने बगावती सुर दिखाए तो स्पीकर के आर रमेश ने उन सभी को बर्खास्त कर दिया. जिस वजह से विधानसभा में सीटों की संख्या 207 पर पहुंच गई. ऐसे में बीजेपी के लिए बहुमत के आंकड़े तक पहुंचना काफी आसान रहा और येदियुरप्पा 106 विधायकों के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब हो गए. बाद में हुए उपचुनावों में भी बीजेपी का अच्छा प्रदर्शन रहा और पार्टी के पक्ष में 118 विधायक हो गए जो बहुमत से काफी ज्यादा रहे. इस समय कर्नाटक में बसवराज बोम्मई की अगुवाई में बीजेपी की सरकार चल रही है और वर्तमान में उनके 119 विधायक हैं.
मध्य प्रदेश
साल 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच में कड़ी टक्कर देखने को मिली. 230 विधानसभा सीटों वाले राज्य में कांग्रेस के 114 विधायक जीतने में कामयाब रहे, वहीं बीजेपी के 109 विधायक जीत दर्ज कर पाए. लेकिन दोनों ही पार्टियां बहुमत के आंकड़े से दूर रहीं. फिर कुछ निर्दलीय और सपा-बसपा के विधायकों ने कांग्रेस का समर्थन किया और राज्य में कई सालों बाद कांग्रेस की सरकार बनी और कमलनाथ को मुख्यमंत्री बना दिया गया. लेकिन उनके सीएम बनते ही ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों की नाराजगी साफ देखने को मिली.
सरकार तो कांग्रेस की चलती रही, लेकिन समय-समय पर अपनी ही सरकार पर हमला करने का एक भी मौका नहीं छोड़ा गया. फिर 2020 में जब देश में कोरोना अपनी दस्तक देने ही जा रहा था, मध्य प्रदेश में बड़ा सियासी भूचाल आया और पार्टी के बड़े नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी. उनके साथ 22 और विधायकों ने बगावती तेवर दिखाए और वे अपने नेता के साथ खड़े हो गए. इस लिस्ट में 6 तो कमलनाथ सरकार में मंत्री भी थे. ऐसे में कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई. वहीं दूसरी तरफ सिंधिया ने अपने तमाम विधायकों के साथ बीजेपी का दामन थामा और राज्य में एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बनने का रास्ता साफ हो गया.
कमलनाथ जानते थे कि बहुमत उनके साथ नहीं है, ऐसे में फ्लोर टेस्ट से पहले ही उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया और राज्य में एक बार फिर बीजेपी सरकार बनाने में कामयाब हो गई. इस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री बने हुए हैं.
गोवा
साल 2017 में गोवा विधानसभा चुनाव के दौरान जो सियासी नाटक देखने को मिला था, उसने सभी को हैरान किया. जो पार्टी बहुमत से सिर्फ चार सीट दूर थी, वो सरकार तक नहीं बना पाई और जिस पार्टी को कम से कम 9 और विधायकों के समर्थन की जरूरत थी, उसने सरकार बनाने में सफलता हासिल कर ली. इस चुनाव को बीजेपी की ताकतवर इलेक्शन मशीनरी और रणनीति के लिए जाना जाता है. इस चुनाव में कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं, वहीं बीजेपी के खाते में सिर्फ 13 सीटें गईं. बहुमत का आंकड़ा 21 था. बीजेपी की तरफ से केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और मनोहर पर्रिकर ने कमान संभाली और सरकार बनाने के लिए निर्दलीय और दूसरे दलों से बात करना शुरू कर दिया.
हैरानी की बात ये थी कि उस समय दिग्विजय सिंह कांग्रेस की कमान संभाल रहे थे. उन्हें सिर्फ चार विधायकों के समर्थन की जरूरत थी, लेकिन वे वो भी जुटाने में फेल हो गए. बाद में उन्होंने कहा था कि समय पर कांग्रेस हाईकमान की तरफ से कोई फैसला नहीं लिया गया, इस वजह से देरी हो गई. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने MGP और GFP से बात करना शुरू किया और बाद में गोवा फॉर्वर्ड पार्टी (GFP) के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई और मनोहर पर्रिकर को मुख्यमंत्री बना दिया गया. बड़ी बात ये रही कि चुनाव के दौरान GFP ने कांग्रेस का साथ दिया था, लेकिन बाद में पाला बदल लिया. इस साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने गोवा में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई.
मणिपुर
साल 2017 में मणिपुर चुनाव के दौरान भी गोवा वाली कहानी ही देखने को मिली थी. उस विधानसभा चुनाव में बीजेपी बहुमत से पीछे रह गई थी. 60 विधानसभा सीटों वाले राज्य में बीजेपी के पास तब 21 सीटें थीं, वहीं कांग्रेस 28 जीतने में सफल रही. ऐसे में एक बार फिर सबसे पुरानी पार्टी के पास सरकार बनाने का सुनहरा मौका था. लेकिन यहां फिर बीजेपी ने खेल किया और ऐसी टाइमिंग दिखाई कि वहां पर कांग्रेस सरकार बनाने में फेल हो गई. इस बार बीजेपी की सरकार बनाने में हिमंता बिस्वा सरमा, पीयूष गोयल और प्रकाश जावडेकर ने बड़ी भूमिका निभाई. कई दिनों तक इन तीनों ही नेताओं ने स्थानीय पार्टियों से बात की, समर्थन जुटाने की कवायद की.
नतीजा ये रहा कि बीजेपी को नेशनल पीपल्स पार्टी (4), नगा पीपल्स फ्रंट (4), लोजपा (1) का समर्थन मिला. इसके अलावा दो अन्य विधायकों ( इसमें एक कांग्रेस का) के सहयोग से बीजेपी ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. फिर कांग्रेस से बीजेपी में आए एन बीरेन सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया गया. हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में भी एन बीरेन सिंह की अगुवाई में बीजेपी ने राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है.
बिहार
बिहार में साल 2015 में बीजेपी को हराने के लिए महागठबंधन बनाया गया था. नीतीश कुमार की जेडीयू, लालू प्रसाद यादव की आरजेडी और कांग्रेस ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. नतीजा ये रहा कि उस चुनाव में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा. लेकिन सरकार बनने के बाद से ही तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार के बीच कई मौकों पर तकरार की स्थिति देखने को मिली. फिर ऐसे सियासी समीकरण बदले कि नीतीश कुमार ने दो साल बाद ही बीजेपी से हाथ मिला लिया और महागठबंधन को छोड़ दिया.
वो राज्य जहां फेल रहा ऑपरेशन लोटस
वैसे इन राज्यों में तो बीजेपी की रणनीति और चुतराई ने कांग्रेस को चकमा दे दिया, लेकिन कुछ राज्य ऐसी रहे जहां पर तमाम प्रयासों के बावजूद भी बीजेपी अपनी सरकार बनाने में सफल नहीं रही. इसका सबसे बड़ा उदाहरण वो राजस्थान है जहां पर इस समय अशोक गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस सरकार है. साल 2020 में सचिन पायलट ने बगावती तेवर दिखाते हुए 19 विधायकों के साथ विरोध किया था. तब कयास लगने लगे थे कि सचिन बीजेपी का दामन थाम सकते हैं. वहीं दूसरी तरफ अशोक गहलोत भी अपने विधायकों के साथ होटल में मौजूद रहे. लंबे समय तक अटकलों का दौर रहा और फिर कांग्रेस हाईकमान के हस्तक्षेप के बाद स्थिति नियंत्रण में कर ली गई. इसके बाद विधानसभा में सीएम को विश्वास मत भी हासिल हो गया और सरकार पर आया सियासी संकट टल गया.
महाराष्ट्र
महाराष्ट्र में भी साल 2019 में बड़ा सियासी संकट देखने को मिला था. जब शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया, बीजेपी ने एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार के साथ मिलकर सरकार बनाने का दावा ठोक दिया. स्थिति इतनी जल्दी बदली कि सुबह तक देवेंद्र फणडवीस को मुख्यमंत्री बना दिया गया और अजित पवार डिप्टी सीएम बन गए. लेकिन शरद पवार ने ऐसी घेराबंदी की कि तमाम प्रयास के बावजूद भी बीजेपी बहुमत का वो जादुई आंकड़ा नहीं जुटा पाई जिससे सरकार बन सके. इसके बाद जब सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का फैसला सुनाया, देवेंद्र फणडवीस की तरफ से इस्तीफा दे दिया गया और राज्य में महा विकास अघाडी की सरकार बनी.
उत्तराखंड
इसी तरह साल 2016 में उत्तराखंड में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार पर बड़ा सियासी संकट आया था. तब पार्टी के अपने विधायकों ने ही सीएम के खिलाफ बगावत कर दी थी. स्थिति ऐसी बन गई कि राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. 2 महीने बाद कोर्ट के हस्तक्षेप से वो राष्ट्रपति शासन हटा और हरीश रावत की सरकार बहाल हो पाई. कांग्रेस ने तब बीजेपी और मोदी-शाह की जोड़ी को इसके संकट के लिए जिम्मेदार बता दिया था.
वरिष्ठ पत्रकार आलोक रंजन के इनपुट के साथ