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कांग्रेस का कटाक्ष- खुद से चंडीगढ़ नहीं आ रहे अमित शाह

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के चंडीगढ़ दौरे को लेकर कांग्रेस ने कटाक्ष करते हुए कहा है कि अमित शाह खुद चंडीगढ़ नहीं आ रहे हैं बल्कि उनको भेजा जा रहा है.

सुनील कुमार जाखड़ सुनील कुमार जाखड़
मनजीत सहगल/मोनिका गुप्ता
  • चंडीगढ़,
  • 07 जून 2018,
  • अपडेटेड 2:00 AM IST

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के चंडीगढ़ दौरे को लेकर कांग्रेस ने कटाक्ष करते हुए कहा है कि अमित शाह खुद चंडीगढ़ नहीं आ रहे हैं, बल्कि उनको भेजा जा रहा है.

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने कहा कि चार साल तक बीजेपी ने अकालियों की खोज खबर नहीं ली. इस दौरान बीजेपी नेताओं ने अकाली दल के संस्थापक प्रकाश सिंह बादल से हाथ मिलाना भी ठीक नहीं समझा. अब जब अमित शाह चंडीगढ़ आ रहे हैं तो भेद खुल गया. प्रकाश सिंह बादल भी समझते हैं कि अमित शाह खुद से नहीं आ रहे बल्कि उनको भेजा जा रहा है.

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सुनील जाखड़ ने कहा कि बीजेपी और उसके सहयोगियों को राहुल गांधी की लीडरशिप का भय खा रहा है. जिस तरह राहुल गांधी को लोगों का सहयोग मिल रहा है, चाहे वह कर्नाटक हो या फिर कहीं और, इससे बीजेपी के भीतर असुरक्षा की भावना पैदा हो गई है.

सुनील जाखड़ ने कहा कि मुझे याद नहीं है कि पिछले 4 सालों के दौरान नरेंद्र मोदी और प्रकाश सिंह बादल की कोई मुलाकात हुई हो. जब हरमंदिर साहिब के लंगर पर जीएसटी लगाने की बात हुई तो लोगों को उम्मीद थी कि प्रकाश सिंह बादल नरेंद्र मोदी से तुरंत मिलकर उसे जीएसटी की सूची से बाहर करा लेंगे. ऐसा लगता है कि या तो प्रधानमंत्री ने अकाली दल नेताओं को मिलने का समय नहीं दिया या फिर उनकी उनसे इस मुद्दे पर बात करने की हिम्मत नहीं हुई.

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उन्होंने कहा कि बीजेपी ने अकाली दल की कभी सुध ना लेती अगर राहुल गांधी को लोगों का समर्थन ना मिला होता. उन्होंने कहा कि किसान पिछले हफ्ते से सड़कों पर है लेकिन प्रकाश सिंह बादल के मुंह से उनके लिए एक भी शब्द नहीं निकला.

उन्होंने कहा, 'मैं प्रकाश सिंह बादल को यह याद दिलाना चाहता हूं कि जिस तरह डीजल की बढ़ी हुई कीमतों ने किसानों की कमर तोड़ दी है और उनको अपने उत्पाद सड़कों पर गिराने पर मजबूर होना पड़ रहा है. उनको चाहिए कि अमित शाह के समक्ष इन मुद्दों को उठाएं ताकि तिल-तिल कर मर रहे किसान बच सकें.'

गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से बीजेपी और पंजाब में उसकी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के बीच कई मुद्दों को लेकर 36 का आंकड़ा बना हुआ है. चाहे वह अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष की नियुक्ति हो या फिर सदस्यों की नियुक्तियां हो.  इसके अलावा  शिरोमणि अकाली दल को हरमंदिर साहिब के लंगर को जीएसटी से बाहर करवाने के लिए भी खासी मशक्कत करनी पड़ी. केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर ने जब अपना पद छोड़ने की धमकी दी तो उसके बाद केंद्र सरकार जागी और स्वर्ण मंदिर की रसोई को जीएसटी से बाहर किया.

यही नहीं अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल तो कुछ दिन पहले साफ कह चुके हैं कि एनडीए और सहयोगियों के बीच पिछले चार सालों के दौरान जो बैठकें होने चाहिए थी, वो नहीं हो पाई जिसका उन्हें मलाल है. अमित शाह प्रकाश सिंह बादल के साथ मिलकर ना केवल इस राजनीतिक खटास  को दूर करना चाहते हैं बल्कि 2019 के लोकसभा चुनावों की रणनीति तैयार करना चाहते हैं.

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