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पराली जलाने से किसानों को रोकना बनी गले की फांस, असमंजस में अफसर

पंजाब के किसानों ने चेतवानी दी है कि अगर पराली जलाने को लेकर अफसर उनके खिलाफ कार्रवाई करने आए, तो अफसरों को बंधक बना लिया जाएगा. इसके चलते पराली जलाने के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर अफसर असमंजस में पड़ गए हैं.

फाइल फोटो फाइल फोटो
राम कृष्ण/सतेंदर चौहान
  • चंडीगढ़,
  • 10 अक्टूबर 2018,
  • अपडेटेड 8:19 PM IST

पंजाब में किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए सरकार भले ही सख्ती करने का दावा करे, लेकिन हकीकत ये है कि किसान यूनियनों के खुलेआम पराली जलाने के ऐलान के बाद सरकारी अफसर असमंजस में है. अफसरों को समझ में नहीं आ रहा है कि वो गांवों में जाकर किसानों पर सख्ती कैसे करें, क्योंकि किसानों ने अल्टीमेटम दे दिया है कि वो कार्रवाई करने के लिए आने वाले सरकारी अधिकारियों को बंधक बना लेंगे.

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वहीं, पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की कोशिश है कि पराली जलाने से रोकने के लिए साल 1981 के द एयर प्रीवेंशन एंड कंट्रोल एक्ट को सख्ती से लागू किया जाए. सरकार ने चंडीगढ़ में किसान नेताओं और कृषि से जुड़े विशेषज्ञों का सेमिनार भी कराया, लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं दिखा.

पिछले तीन वर्षों में दर्ज हुए कई केस

अगर पिछले 3 साल के आंकड़ों पर नजर डाली जाए, तो साल 2016 में पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने पराली जलाने पर 2,414 केस दर्ज किए थे और करीब 6 लाख 65 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था. वहीं, साल 2017 में 11,005 केस दर्ज किए गए और 61 लाख 47 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया था. 2018 में अब तक 363 केस दर्ज किए जा चुके हैं और 3 लाख 62 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा चुका है.

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किसान यूनियनों के दबाव के चलते नहीं हो पाती कार्रवाई

साल 1981 में बनाए गए द एयर प्रीवेंशन एंड कंट्रोल एक्ट में ₹500 से ₹15000 तक जुर्माना लगाने का प्रावधान है. हालांकि किसान यूनियनों के दबाव के चलते पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड भी सख्त कार्रवाई नहीं कर पाता है. संगरूर में जिस तरह से आजतक के कैमरे के सामने ही किसानों ने अपनी मजबूरी का हवाला देते हुए कई खेतों में पराली जलाई, उससे लगता नहीं है कि इसको रोक पाना आसान है.

हालांकि इस घटना के बाद संगरूर के DC घनश्याम पुरी ने दावा जरूर किया कि हर गांव में पराली जलाने की घटनाओं को ध्यान में रखने के लिए और कार्रवाई करने के लिए नोडल ऑफिसर लगाए गए हैं, लेकिन हकीकत ये है कि जहां-जहां किसान यूनियनों के सैकड़ों कार्यकर्ता और किसान इकट्ठे होकर पराली को आग के हवाले करते हैं, वहां पर कोई भी सरकारी अधिकारी जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता.

किसानों को समझाने की कोशिश साबित हो रही विफल

संगरूर के DC घनश्याम पुरी के मुताबिक किसानों को समझाने की कोशिश लगातार जारी है और किसानों को पराली हटाने की मशीनों के फायदे के बारे में भी बताया जा रहा है. उन्हें समझाया जा रहा है कि पराली जलाने से नुकसान ज्यादा और फायदे बिल्कुल नहीं हैं. पंजाब सरकार भी किसानों के अड़ियल रवैये और किसानों द्वारा पराली जलाने को मजबूरी बताए जाने के चलते बैकफुट पर है.

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पंजाब सरकार ने खुद पराली न जलाने के लिए किसानों से अपील की है. शायद सरकार को भी पता है कि सख्ती करने से भी किसान मानने वाले नहीं हैं. इसी वजह से राज्य सरकार ने किसानों को पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण और पंजाब की बिगड़ती छवि का हवाला दिया है. पंजाब सरकार ने किसानों से पराली न जलाने की अपील करने के साथ ही किसान यूनियनों, बुद्धिजीवियों और किसानों विशेषज्ञों का सेमिनार आयोजित किया.

किसानों की भी है अपनी समस्याएं

ऐसा नहीं है कि ऐसा सेमिनार पहली बार हुआ है या किसानों को इसकी जानकारी नहीं हैं. यहां सवाल किसानों के पैसे और समय की बचत का है, जिसका जवाब किसी के पास नहीं है. किसानों की मजबूरी ये है कि अगली फसल की तैयारी के लिए समय कम होता है, तो दूसरी तरफ पराली को इकट्ठा करने में खर्चा भी आता है और इकट्ठा करके इसका क्या किया जाए, ये भी किसानों के लिए समस्या है.

हालांकि कृषि से जुड़े एक्सपर्ट मानते हैं कि जब सरकार धान की खरीद के लिए 40 हजार करोड़ रुपये देती है, तो क्यों न सिर्फ 2000 करोड़ रुपये और बढ़ा कर 200 रुपये प्रति एकड़ सब्सिडी किसान को दे दी जाए. साथ ही इस पर विशेष ध्यान दिया जाए कि ये धनराशि उन किसानों को ही मिले, जो पराली नहीं जलाते हैं.

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