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एसवाईएल पर फिर हो सकता है बवाल, पंजाब के सीएम अमरिंदर सिंह ने कहा- जल उठेगा पंजाब

खट्टर और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में पंजाब के मुख्यमंत्री ने तर्क दिया कि एसवआईएल नहर मुद्दा एक भावनात्मक मुद्दा है.

पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह (फाइल फोटो- ट्विटर) पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह (फाइल फोटो- ट्विटर)
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 19 अगस्त 2020,
  • अपडेटेड 4:24 PM IST

  • एसवाईएल मुद्दे पर हुई पंजाब और हरियाणा की बैठक
  • अपने-अपने रुख पर अड़े रहे पंजाब और हरियाणा

हरियाणा और पंजाब के बीच सतलुज यमुना लिंक नहर (एसवाईएल) का मुद्दा बना हुआ है. वहीं एसवाईएल नहर के निर्माण के लिए अपने राज्य के रुख को दोहराते हुए हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने पंजाब से कहा कि इसका निर्माण और पानी की उपलब्धता दो अलग-अलग मुद्दे हैं और इसे भ्रमित नहीं करना चाहिए.

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सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों पर सतलुज यमुना लिंक नहर पर दोनों राज्यों की एक बैठक बुलाई गई. इस मामले में 28 जुलाई को केंद्र से कहा गया था विवाद को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों की मध्यस्थता करें. हालांकि दोनों राज्य पंजाब और हरियाणा अपने-अपने रुख पर अड़े रहे.

खट्टर ने क्या कहा

बैठक में खट्टर ने एसवाईएल नहर के निर्माण को पूरा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के सम्मान की पुरजोर वकालत की. राज्य सरकार ने जारी एक विज्ञप्ति में कहा कि हरियाणा में पानी की वैध हिस्सेदारी के लिए पर्याप्त क्षमता वाले चैनल के निर्माण की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया.

कैप्टन अमरिंदर ने क्या कहा

वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने दावा किया कि पानी की उपलब्धता कम हो गई है. जिस पर हरियाणा के सीएम खट्टर ने कहा कि एसवाईएल का निर्माण और पानी की उपलब्धता दो अलग-अलग मुद्दे हैं और पूरी तरह से असंबद्ध हैं. इसे भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए.

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यह भी पढ़ें: नहर विवाद पर पंजाब-हरियाणा की बैठक, केंद्रीय मंत्री की मौजूदगी में चर्चा

खट्टर और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत के साथ एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में पंजाब के मुख्यमंत्री ने तर्क दिया कि एसवआईएल नहर मुद्दा एक भावनात्मक मुद्दा है. इससे राष्ट्रीय सुरक्षा के आगे संकट पैदा हो सकता है और उनके राज्य को अगर पानी साझा करने के लिए कहा गया तो राज्य जल उठेगा.

इस बीच हरियाणा सरकार के बयान के मुताबिक बैठक में खट्टर ने तर्क दिया कि इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि रावी, सतलुज और व्यास के अधिशेष जल पिछले 10 वर्षों से पाकिस्तान में बह रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय संसाधन का एक बड़ा हिस्सा बर्बाद हो गया है.

यह भी पढ़ें: SYL मामला: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- पंजाब-हरियाणा के मुख्यमंत्री आपस में निकालें हल

वहीं शेखावत ने कहा कि एसवाईएल नहर के आकार में बुनियादी ढांचे और वाहक क्षमता का निर्माण हरियाणा को उसकी वर्तमान उपलब्धता के अनुसार पानी के आवंटित हिस्से का दोहन करने और पाकिस्तान में बहने वाले पानी के हिस्से का दोहन करने के लिए किया जाना है.

क्या है विवाद?

24 मार्च 1976 को केंद्र सरकार ने पंजाब के 7.2 एमएएफ यानी मिलियन एकड़ फीट पानी में से 3.5 एमएएफ हिस्सा हरियाणा को देने की अधिसूचना जारी की थी. पूर्व पीएम इंदिरा गांधी ने 8 अप्रैल, 1982 को पंजाब के पटियाला जिले के कपूरई गांव में इस योजना का उद्घाटन किया था. 24 जुलाई, 1985 को राजीव-लोंगोवाल समझौते को लागू किया गया था और पंजाब ने नहर के निर्माण के लिए अपनी सहमति दी थी. लेकिन समझौता के जमीन पर लागू नहीं होने के बाद हरियाणा ने 1996 में सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.

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