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पांच बार का नमाजी ये मुसलमान नवरात्र में करता है मां दुर्गा की पूजा, गो सेवा में भी आगे

याकूब खान ने बताया की बचपन से ही ऐसे माहौल में रहा हूं जहां मेरे परदादा भी पन्ना सागर तलाब पर बने मक्खन दास जी आश्रम में जाया करते थे और बाबा मक्खन दास से उनका गहरा लगाव भी था. पिछले 17 साल से नवरात्र महोत्सव में भाग ले रहा हूं.

पूजा-अर्चना करते याकूब खान पूजा-अर्चना करते याकूब खान
शरत कुमार
  • झुंझुनू,
  • 27 सितंबर 2017,
  • अपडेटेड 12:08 PM IST

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना, यह कथन हम सबने सुना तो जरूर है लेकिन इसे चरितार्थ करना बड़ा मुश्किल है. ऐसे भी लोग हैं जो मुस्लिम होते हुए भी सर्व धर्म सम्मान और प्रेम-सद्भाव का उदाहरण पेश कर हिन्दू- मुस्लिम भाईचारे का परिचय देने में पीछे नहीं है . ऐसी ही तस्वीर राजस्थान में झुंझुनू के खेतड़ी से सामने आई है. यहां एक मुस्लिम नवरात्रों में घट स्थापना के साथ ही मां दुर्गा की आराधना करते हुए दुर्गा सप्तशती और दुर्गा चालीसा के मंत्रो का जाप करते हुए पूजा पाठ कर रहे  हैं.

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झुंझुनू के खेतड़ी के वार्ड संख्या पांच के निवासी याकूब खान की जो अपने धर्म का जितना मान करते है उतना ही हिन्दू धर्म का सम्मान करते हैं. नमाजी याकूब मियां सुबह 5:30 पर उठते हैं बिसायतियान मस्जिद में सुबह फजर की नमाज के लिए अजान करने पहुंच जाते हैं . नमाज अदा करने के बाद सुबह करीब 7:00 बजे ऐतिहासिक भोपालगढ़ पहाड़ी स्थित रानी चूड़ावत मंदिर पहुंच कर मां दुर्गा की आराधना में पूजा अर्चना कर मां की जोत लेते हैं और वहीं बैठकर दुर्गा सप्तशती के पाठ के मंत्रो का जाप करते हैं.

नवरात्र के दौरान लगातार 9 दिन तक ऐसे याकूम की यही दिनचर्या रहती है. जहां आपसी सद्भाव के लिए खुदा से दुआ करते हैं वहीं दुर्गा मंदिर की आराधना कर आपसी भाईचारे की प्रार्थना भी करते हैं. दुर्गा माता की पूजा अर्चना के साथ ही प्रतिदिन की तरह गाय को अपने हाथों से सब्जी-रोटी खिलाना भी नहीं भूलते. मंदिर में नगरपालिका अध्यक्ष उमराव कुमावत सहित दर्जनों श्रद्धालु भी नमाजी याकूब मिया की श्रद्धा को सलाम करते हैं. कह सकते हैं कि 50 वर्षीय याकूब खान सर्व धर्म सम्मान, सद्भाव और भाईचारे की अद्भुत मिशाल पेश कर रहे हैं.

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आपको बता दें कि 50 वर्षीय याकूब खान के परिवार का संबंध खेतड़ी के महाराजा राजा बहादुर सरदार सिंह से भी रहा है. खेतड़ी के राजा बहादुर सरदार सिंह के राज्य के ट्रस्ट में याकूब खान के दादा अब्दुल सहायक सुपरवाइजर के पद पर कार्य कर चुके हैं. ऐसे ही याकूब खान भी उसी पद पर कार्य करने के बाद रिटायर्ड होकर समाज सेवा में लगे हुए हैं. हिन्दू राजा के सानिध्य में रहने के कारण याकूब खान का परिवार आज भी हिंदुओं के साथ रहता आया है.

याकूब खान ने बताया की बचपन से ही ऐसे माहौल में रहा हूं जहां मेरे परदादा भी पन्ना सागर तलाब पर बने मक्खन दास जी आश्रम में जाया करते थे और बाबा मक्खन दास से उनका गहरा लगाव भी था. पिछले 17 साल से नवरात्र महोत्सव में भाग ले रहा हूं लेकिन इस बार भोपालगढ़ स्थित चुड़ावत शक्ति मंदिर में नगर पालिका चेयरमैन उमराव सिंह, पवन शर्मा और मित्रों के साथ नवरात्र पूजा करने में आनंद की अनुभूति कर रहा हूँ. 4 सितंबर 1967 को जन्मे याकूब खान 11 बहन-भाइयों में सबसे बड़े है और आठवीं तक की ही पढ़ाई की है.

याकूब के परदादा खेतड़ी राजघराना में माला और कंठी पिरोने का भी काम किया करते थे. लेकिन दुर्भाग्य से 1947 में जब देश आजाद हुआ तब हिंदुस्तान-पाकिस्तान बंटवारे के कारण उनके दादा अब्दुल हकीम पाकिस्तान चले गए लेकिन वहां उनका मान नहीं लगा. इस बीच खेतड़ी के राजा सरदार सिंह के बुलावे पर पूरे परिवार सहित वापस हिंदुस्तान लौट आये. बताते हैं कि राजा से उनका आपसी तालमेल और प्रेम इतना गहरा था कि जब राजा सरदार सिंह विदेश जाते थे तब पावर ऑफ अटॉर्नी अब्दुल हकीम के नाम करके जाते थे.

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एक बार जब राजा सरदार सिंह मुंबई गए तब उनका मुंबई में अकस्मात निधन हो गया जब दिल्ली से खेतड़ी इस बात की सूचना पहुंची. तब अब्दुल हकीम मुंबई गए और राजा सरदार सिंह की अस्थियां लेकर आए और जब उन अस्थियों को हरिद्वार ले जाकर हिन्दू रीती-रिवाज से विसर्जन किया था. इसका उल्लेख हरिद्वार में बैठे पंडितों के यहां भी मौजूद है.

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