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कहते हैं देर से मिला न्याय अन्याय के बराबर होता है. लेकिन राजस्थान के 81 साल के रिटायर्ड आईएएस अधिकारी का मानना है कि न्याय भले देरी से मिला संघर्ष नही छोड़ना चाहिए. इन्होंने 47 साल की लंबी लड़ाई के बाद 81 साल की उम्र में राजस्थान विश्वविधालय से गोल्ड मेडल जीता है. 2003 में हीं 'आज तक' ने रिपोर्ट दिखाई थी कि किस तरह से इस आईएएस अधिकारी ने गोल्ड मेडल की जंग हाईकोर्ट से जीती थी मगर यूनिवर्सिटी ने इस गोल्ड मेडल को देने में 13 साल लगा दिए.
दुनिया केवल फर्स्ट को याद रखती है बाकी सब भीड़ का हिस्सा है. 81 साल की उम्र में अपने से छोटी उम्र के 64 साल के राजस्थान विश्वविधालय के कुलपति जेपी सिंघल से गोल्ड मेडल और डिग्री लेते रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अजीत सिंह सिंघवी को इसी बात की धुन 1969 से सवार थी कि मुझे गोल्ड मेडल के अलावा कुछ भी मंजूर नही. आज से 47 साल पहले 1969 में एलएलबी में इन्होंने परीक्षा दी मगर राजस्थान विश्विधालय ने इन्हें मेरीट में दूसरे स्थान पर चुना. इन्होंने नंबर देने के तरीके के फैसले के खिलाफ मुंशीफ कोर्ट में याचिका दायर कर दिया. इस बीच अपनी पढ़ाई जारी रखी और 1979 में आईएस भी बन गए.
अजीत सिंह कलेक्टर भले हीं बन गए मगर कोर्ट में पेशियों पर आना नहीं छोड़ा. अब तक 300 पेशियों पर उपस्थित होकर खुद पैरवी करने वाले सिंघवी मुंशीफ कोर्ट से जीते तो मुकदमा डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में गया, फिर वहां से भी जीते तो मुकदमा हाईकोर्ट में गया. हाईकोर्ट ने राजस्थान विश्वविद्यालय को 2003 में लताड़ लगाते हुए अजीत सिंघवी को गोल्ड मेडल देने का आदेश दिया मगर मिलते-मिलते 13 साल लग गए और आखिरकार इनकी मेहनत रंग लाई.
गले में गोल्ड मेडल लटकाए और हाथ में डिग्री लिए अजीत सिंघवी कहते हैं कि मुझे खुशी तो है कि मुझे 47 साल बाद आखिरकार मेरा हक मिल गया लेकिन दुख की बात है कि मुझे अपनी मेहनत का फल पाने में 300 पेशियों पर आना पड़ा. उन्होंने बताया कि वे बीकानेर कलेक्टर रहते हुए जयपुर आकर अपने केस की पैरवी करते थे. अगर उस वक्त ये गोल्ड मेडल मिला होता तो उनके डूंगरपुर कॉलेज के लिए शान की बात होती.
13 साल का वक्त लगा मेडल मिलने में
हाईकोर्ट के फैसले के बाद 2003 में 'आज तक' के साथ ये राजस्थान विश्विधालय के वीसी दफ्तर पहुंचे थे जहां कैमरे पर वीसी ने कहा था कि बहुत जल्द इनको गोल्ड मेडल दे देंगे. मगर 13 साल का वक्त लग गया. राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति जेपी सिंघल का कहना है कि उन्हें खुशी है कि वो इस बुजुर्ग को गोल्ड मेडल दे पाए मगर देरी का दुख भी है. राजस्थान विश्वविद्यालय के वकील अशोक मारु का कहना है कि उस वक्त जो मुकदमे में पार्टी थे उन्हें खोजने में 12 साल का वक्त लग गया, उस समय के टॉपर के अलावा भी चार-पांच लोग इस मामले में पार्टी थे जिनका कोई पता हीं नही मिल रहा था. इसलिए फैसले के एग्जक्यूशन में 12 साल लग गए और 8 महीने फार्मेलिटिज में देरी हुई है.