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बूढ़े मां-बाप को 4 साल से इंतजार है, शहीद बेटे की प्रतिमा से पर्दा हटने का....

शहीद प्रकाश की कपड़े से ढकी प्रतिमा इंतजार कर रही है कि कब सरकार की ओर से किसी नेता को वक्त मिले और वो गांव आकर प्रतिमा का अनावरण करे. हालत ये है कि प्रतिमा के चारों ओर बंधा कपड़ा भी तार-तार होने को आ गया है.

शहीद का स्मारक शहीद का स्मारक
शरत कुमार/खुशदीप सहगल
  • जयपुर,
  • 26 सितंबर 2016,
  • अपडेटेड 8:23 PM IST

उरी आर्मी बेस पर आतंकी हमले के बाद देशभक्ति का हर तरफ जोश है. देश के सपूतों के बलिदान के आगे हर कोई नतमस्तक है. लेकिन ऐसा क्यों होता है कि शहीदों के बलिदान के बाद कुछ समय तक तो उन्हें बहुत जोर-शोर से याद किया जाता है. फिर धीरे-धीरे सब भुला दिया जाता है. ये सवाल एक शहीद के बूढ़े माता-पिता का है. चार साल से अधिक अरसा हुआ, ये दोनों इंतजार कर रहे हैं कि कोई नेता आकर उनके लाल की प्रतिमा से पर्दा हटाएगा. उनकी बूढ़ी आंखें पथरा गईं, लेकिन किसी को उनकी भावनाओं का एहसास नहीं हो रहा.

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शहीद के लिए नेताओं के पास वक्त नहीं
जयपुर से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव का नाम है शेखावटी की ढाणी. यहां शहीद प्रकाश की कपड़े से ढकी प्रतिमा इंतजार कर रही है कि कब सरकार की ओर से किसी नेता को वक्त मिले और वो गांव आकर प्रतिमा का अनावरण करे. हालत ये है कि प्रतिमा के चारों ओर बंधा कपड़ा भी तार-तार होने को आ गया है. लेकिन देशभक्ति की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले हमारे नेताओं को इसके लिए वक्त नहीं मिल पा रहा.

पिता ने बनवाया शहीद बेटे का स्मारक
शहीद प्रकाश के पिता कृष्णा मीणा की आखों में 13 मई 2012 की तारीख याद कर आज भी आंसू आ जाते हैं. इसी दिन उनका लाडला प्रकाश दंतेवाड़ा में नक्सलियों से लोहा लेते हुए शहीद हुआ था. उस वक्त प्रकाश की उम्र सिर्फ 23 साल थी. पिता कृष्णा ने प्रकाश की शादी के लिए दिल में बड़े अरमान सजा रखे थे. लेकिन फिर उन्होंने अपने जीवन भर की कमाई 11 लाख रुपए से बेटे का स्मारक बनाने का फैसला किया. स्मारक बन कर तैयार हो गया. इसके बाद कृष्णा प्रशासन के हर अधिकारी से लेकर मुख्यमंत्री के दफ्तर तक प्रतिमा के अनावरण के लिए गुहार लगा चुके हैं, लेकिन हर जगह जल्दी वक्त देने का बस आश्वासन ही मिला.

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आश्वासन मिला, पर वक्त नहीं
कृष्णा तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मिले थे, तो उन्होंने प्रतिमा के अनावरण के लिए वक्त भी दे दिया था. लेकिन फिर चुनाव का ऐलान होने के बाद आचार संहिता का हवाला देते हुए कार्यक्रम को टाल दिया गया. चुनाव के बाद वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री बनीं. वसुंधरा से मिलने के कृष्णा पत्नी भगवती के साथ पहुंचे. वसुंधरा से भी उन्हें आश्वासन ही मिला, लेकिन वक्त नहीं मिला. कृष्णा का कहना है कि वो इलाके के सांसद और केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ से भी चार बार मिल चुके हैं, लेकिन उनसे भी प्रतिमा के अनावरण के लिए वक्त नहीं मिला. कृष्णा के मुताबिक उन्होंने प्रधानमंत्री दफ्तर को भी चिट्ठी लिखी है. अभी वहां से भी जवाब का इंतजार है.

इंतजार करते-करते थक गए हैं मां-बाप
कृष्णा और भगवती इंतजार करते-करते इतना थक गए हैं कि अब उनका सब्र भी जवाब देने लगा है. शहीद प्रकाश की मां भगवती का कहना है कि दीवाली तक कोई नेता नहीं आया, तो वो खुद ही अपने लाल की प्रतिमा का अनावरण कर देंगी. भगवती का कहना है कि इस प्रतिमा में उनके बेटे की आत्मा बसती है. भगवती का शरीर बूढ़ा हो चुका है, लेकिन वो हर दिन खुद अपने हाथों से स्मारक की साफ-सफाई करती हैं.

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सीएम को हाथों से चाहते हैं अनावरण
प्रकाश के साथ ही दंतेवाड़ा में ही दौसा के दो और जवान भी शहीद हुए थे. उन दोनों जवानों की प्रतिमाओं का मुख्यमंत्री के हाथों अनावरण हो चुका है. यही वजह थी कि कृष्णा और भगवती भी चाहते थे कि उनके बेटे की प्रतिमा का पर्दा भी मुख्यमंत्री के हाथों ही हटे. लेकिन प्रकाश के साथ जो दो और जवान शहीद हुए थे, उनके गांव हाईवे से सटे हुए ही थे. वहीं प्रकाश के गांव में जाने का रास्ता बेहद खराब है. टूटी सड़क पर कई किलोमीटर का पथरीला रास्ता तय कर इस गांव तक पहुंचना पड़ता है. क्या यही वजह है कि नेता वहां तक पहुंचने से कतराते हैं. अगर ऐसा है तो फिर किस मुंह से कहा जाता है:

शहीदों की चिता पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशां होगा...

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