
राजस्थान सरकार केंद्र में 2008 से ही लंबित अपने धर्म स्वातंत्र्य विधेयक की मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय को लिखा है. बीजेपी को केंद्र में अपनी सरकार और अपनी पार्टी के राष्ट्रपति होने की वजह से 11 साल से कांग्रेस के विरोध की वजह लटके विधेयक को मंजूरी मिलने की उम्मीद है.
राजस्थान सरकार ने राजस्थान हाईकोर्ट को अपने जवाब में कहा है कि जून 2017 में इस विधेयक की मंजूरी के लिए गृहमंत्रालय को पत्र लिखा गया है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे स्वयं इसके लिए राजनाथ सिंह से मिल चुकी हैं. गौरतलब है कि राजस्थान हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या कोई कानून राजस्थान में धर्म परिवर्तन के लिए है. इस तरह से एफिडेविट पर कोई धर्म कैसे बदल सकता है. बता दें कि राजस्थान हाईकोर्ट ने 22 साल की एक लड़की के जोधपुर में धर्म परिवार्तन करने पर सरकार से जवाब मांगा था.
दरअसल, राजस्थान में धर्म परिवर्तन के लिए बने कानून को लेकर शुरू से ही विवाद रहा है. इसमें ये प्रावधान है कि धर्म परिवर्तन के लिए कलेक्टर से मंजूरी लेना जरूरी है. इसके साथ ही लोभ, लालच या जबरन धर्म परिवर्तन कराने पर तीन साल की सजा का प्रावधान है. जबकि एससी, एसटी, नाबालिग और महिलाओं के धर्म परिवर्तन पर अधिकतम पांच साल की सजा है और 25 हजार का जुर्माना है. धर्म वापसी का भी इसमें प्रावधान है. कोई धर्म वापसी करता है तो इसकी सूचना जिला मजिस्ट्रेट को देकर धर्म में वापस आ सकता है और इसके लिए कोई सजा नहीं है.
2006 में जब पहली बार ये विधेयक पारित हुआ तो कांग्रेस ने विरोध किया और राज्यपाल प्रतिभा पाटिल ने लौटा दिया. फिर संशोधन के बाद 2008 में विधानसभा से पारित हुआ तो राज्यपाल की मंजूरी के बाद राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए केंद्र के गृहमंत्रालय को भेजा गया और इस बीच बीजेपी के वसुंधरा सरकार चली गई. अब कोर्ट के जवाब के बाद सरकार फिर से इसे पारित करने के लिए सक्रिय हो गई है. वहीं दूसरी ओर इस मुद्दे पर कांग्रेस का कहना है कि कोर्ट के मामले पर वे लोग कोई टिप्पणी नहीं करेंगे.