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आपातकाल: इंदिरा सरकार की हुई वापसी, लेकिन कांग्रेस के माथे लगा कलंक

इंदिरा गांधी को आपातकाल के बाद जो झटका लगा था, उससे कहीं ज्यादा जनसमर्थन उन्हें 1980 के चुनाव में हासिल हुआ.

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (फाइल फोटो) पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (फाइल फोटो)
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2018,
  • अपडेटेड 12:54 PM IST

देश में आपातकाल लगाने का फैसला बतौर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल पर भारतीय राजनीति के इतिहास का सबसे बड़ा दाग है. 43 साल पहले उठाए गए उनके उस कदम की आज भी न सिर्फ आलोचना होती है, बल्कि विरोधी दल उसे आधार बनाकर हर मौके पर कांग्रेस पार्टी की घेराबंदी भी करते हैं. 1975 में 25-26 जून की रात जब आपातकाल लागू किया गया तो पूरे देश में इंदिरा गांधी के खिलाफ सियासी विरोध हुआ. तमाम गैर-कांग्रेसी नेता एकजुट हो गए. नतीजतन, इंदिरा गांधी को आपातकाल के बाद हुए चुनाव में करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा. हालांकि, इंदिरा विरोधी नेताओं का यह गठजोड़ ज्यादा वक्त नहीं चल पाया और 1980 के चुनाव में उन्होंने मजबूती के साथ वापसी की.

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23 मार्च 1977 तक देश में आपातकाल चला. जेपी की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची और इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा. मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ. 1977 में फिर आम चुनाव हुए और कांग्रेस बुरी तरह हार गई. इंदिरा खुद रायबरेली से चुनाव हार गईं और कांग्रेस 153 सीटों पर सिमट गई. 23 मार्च 1977 को 81 की उम्र में मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने. ये आजादी के तीस साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी.

जनता पार्टी की सरकार में जल्द ही उथल-पुथल मच गई. जनता पार्टी में बिखराव हो गया और जुलाई 1979 में मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई. इसके बाद कांग्रेस के समर्थन से चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री बने.

1980 में चला इंदिरा का जादू

जनता पार्टी में बिखराव के बाद 1980 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने विजय पताका लहराई. इंदिरा को आपातकाल के बाद जो झटका लगा था, उससे कहीं ज्यादा जनसमर्थन उन्हें इस चुनाव में हासिल हुआ. कांग्रेस ने इस चुनाव में 43 प्रतिशत वोट के साथ 353 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की. जबकि जनता पार्टी और जनता पार्टी सेक्युलर 31 और 41 सीटों पर ही सिमट गईं.

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इस चुनाव के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 1984 में हत्या कर दी गई. इंदिरा के बाद उनके बेटे और राहुल गांधी के पिता राजीव गांधी ने देश की कमान संभाली और अगले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को और ज्यादा जनसमर्थन हासिल हुआ, जिसके दम पर राजीव गांधी ने बतौर पीएम पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद सरकारें बदलती रहीं. कांग्रेस सत्ता में आई और बाहर हुई, लेकिन इंदिरा गांधी के उस फैसले का दाग आज भी कांग्रेस धुल नहीं पाई है और विरोधी दल हमेशा उसे टारगेट करते रहते हैं.

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