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आपातकाल में इंदिरा सरकार को गच्चा देकर संसद पहुंच गए थे सुब्रमण्यम स्वामी

इंदिरा गांधी की नाराजगी के चलते स्वामी को दिसंबर 1972 में आईआईटी दिल्ली की नौकरी गंवानी पड़ी. हालांकि इसके खिलाफ स्वामी अदालत गए और 1991 में अदालत का फैसला स्वामी के पक्ष में आया.

सुब्रमण्यम स्वामी सुब्रमण्यम स्वामी
अमित कुमार दुबे
  • नई दिल्ली,
  • 25 जून 2018,
  • अपडेटेड 12:28 PM IST

आपातकाल के दौरान सुब्रमण्यम स्वामी बड़े हीरो बनकर उभरे थे, वैसे तो उन्होंने इमरजेंसी से पहले ही इंदिरा गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. भारत के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्रियों में से एक इंदिरा गांधी ने 1970 बजट के बहस के दौरान स्वामी को अवास्तविक विचारों वाला सांता क्लॉज बताया था. स्वामी द्वारा रखे गए उदारवादी आर्थिक नीतियों की इंदिरा बहुत बड़ी विरोधी थीं.

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इमरजेंसी से पहले इंदिरा के खिलाफ मोर्चा

दरअसल 1969 में स्वामी दिल्ली आईआईटी से जुड़ गए थे. इस दौरान उन्होंने सुझाव दिया कि भारत को पंचवर्षीय योजनाओं से दूर रहना चाहिए और बाहरी सहायता पर निर्भर नहीं रहना चाहिए. उनके अनुसार 10 फीसदी विकास दर हासिल करना संभव था. स्वामी की यही बातें इंदिरा को नागवार गुजरी.

जिसके बाद इंदिरा गांधी की नाराजगी के चलते स्वामी को दिसंबर 1972 में आईआईटी दिल्ली की नौकरी गंवानी पड़ी. हालांकि इसके खिलाफ स्वामी अदालत गए और 1991 में अदालत का फैसला स्वामी के पक्ष में आया.

यही नहीं, आपातकाल के दौरान स्वामी ने इंदिरा को सबसे बड़ा गच्चा दिया था. जिस वक्त विपक्ष के नेता जेलों में बंद थे और जो बाहर थे उनके ठिकानों पर दबिश दी जा रही थी. इस दौरान हिम्मत दिखाते हुए स्वामी अमेरिका से भारत वापस आए, संसद के सुरक्षा घेरे को तोड़ते हुए 10 अगस्त 1976 में लोकसभा सत्र में भाग लिया, और देश से पलायन कर अमेरिका वापस लौट भी गए.

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चकमा देकर पहुंचे संसद

दरअसल आपातकाल से पहले डॉ. स्वामी के नौकरशाहों के बीच काफी संपर्क थे, इसलिए उन्हें पहले ही आपातकाल के विषय में पता चल गया था. 25 जून 1975 को स्वामी और जयप्रकाश नारायण एक साथ रत्रिभोजन कर रहे थे, इस दौरान स्वामी ने जेपी से कहा कि कुछ बड़ा होने वाला है तो जेपी ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया और कहा कि इंदिरा गांधी ऐसी मूर्खता नहीं करेंगी. लेकिन ठीक अगली सुबह 4.30 बजे उन्हें एक कॉल आया जिसमें उन्हें पुलिस ने अप्रत्यक्ष रूप से बताया कि वो स्वामी को पकड़ने वाले हैं. इसके बाद स्वामी 6 महीनों के लिए भूमिगत हो गए. उस समय जेपी ने स्वामी को सूचना भेजी कि तुम अमेरिका चले जाओ और वहां आपातकाल के बारे में लोगों को जागरूक करो. उसके बाद डॉ स्वामी अमेरिका में जाकर हॉर्वर्ड में प्रोफेसर बन गए और हॉर्वर्ड के मंच का उपयोग करके आपातकाल को लेकर अमेरिका के 23 राज्यों में भारतीयों को जागरूक करना शुरू कर दिया.

हीरो बनकर उभरे स्वामी

सुब्रमण्यम स्वामी ने आपातकाल के दौरान सोचा कि लोगों में आपातकाल के खिलाफ हिम्मत जगाने के लिए वो एक दिन के लिए संसद में घुसेंगे और 2 मिनट का भाषण देकर फिर भूमिगत हो जाएंगे. स्वामी ये सिद्ध करना चाहते थे कि पूरा देश इंदिरा गांधी के नियंत्रण में नहीं है. हालांकि उस समय स्वामी के नाम से वारंट भी जारी हो चुका था. लेकिन फिर भी वो 10 अगस्त 1976 के दिन संसद में गए और यह देश-विदेश के पत्रकारों के सामने यह कहकर निकल गए कि भारत में प्रजातंत्र मर चुका है. उसके बाद स्वामी नेपाल के रास्ते वापस अमेरिका चल गए. इस घटना से लोगों को एक नया बल और वे आपातकाल के समय एक नायक बन गए. स्वामी आज भी कहते हैं कि 'मैं संसद इसलिए गया, ताकि इंदिरा गांधी को बता सकूं कि वो सर्वशक्तिमान नहीं हैं, देश उनकी मुट्ठी में नहीं है, मैं सिर्फ इंदिरा गांधी को गलत ठहराना चाहता था और मैंने ऐसा किया भी.'

स्वामी की जुबानी...

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हालांकि आपातकाल के दौरान अमेरिका चलकर संसद तक पहुंचना आसान नहीं था. क्योंकि दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरने वाले लोगों की लिस्ट प्रशासन के पास होती थी. जिसपर प्रशासन उन्हें पकड़ने या छोड़ने का फैसला करता था. स्वामी संसद तक पहुंचने के लिए बैंकॉक होते हुए दिल्ली पहुंचे, इसलिए प्रशासन को इसकी भनक नहीं लगी. स्वामी की मानें तो दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरते ही उन्होंने राज्यसभा का पास दिखाकर बाहर निकल गए. एयरपोर्ट पर तैनात पुलिसवालों को लगा कि ये कोई युवा कांग्रेसी नेता हैं, और फिर संसद तक पहुंच गए. जहां उन्होंने इंदिरा सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और फिर अमेरिका चले गए.

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