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बैंक की लूट होगी कम साइबर लूट होगी ज्यादा, ये हैं कैशलेस इकॉनोमी के चैलेंज

स्वीडन ऐसा देश है जिसे ग्लोबल इनफॉर्मेशन टेक्नॉलोजी में नंबर-1 माना जाता है. स्वीडन में इतने सिक्योरिटी मेजर्स के बाद भी जब साइबर लूट बढ़ सकती है तो भारत जैसे देश जो जहां अभी भी एटीएम में 15 साल पुराना ऑपरेटिंग सिस्टम यूज किया जा रहा है, इसका क्या होगा?

क्या हैं कैशलेस इकॉनोमी के चैलेंजेज क्या हैं कैशलेस इकॉनोमी के चैलेंजेज
Munzir Ahmad
  • नई दिल्ली,
  • 29 नवंबर 2016,
  • अपडेटेड 2:44 PM IST

'कैशलेस इकोनॉमी की तरफ बढ़ रहा है भारत'. ऐसा सुनने को मिला होगा, क्योंकि 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट बैन यानी डीमोनेटाइजेशन के बाद अब सरकार लोगों से कैशलेस होने को कह रही है. एटीएम के बाहर लंबी कतारें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं और एटीएम के यूज में लगातार इजाफा हो रहा है. ऐसे में अमेरिकी सिक्योरिटी फर्म फायर आई की साइबर अटैक जुड़ी यह रिपोर्ट देश के लिए गंभीर साबित हो सकती है.

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अमेरिकी साइबर सिक्योरिटी एजेंसी फायर आई ने 'सिक्योरिटी लैंडस्केप एशिया पेसिफिक एडिशन 2017' कि रिपोर्ट में कहा है, 'APAC देशों में हमने एटीएम पर साइबर अटैक पर ज्यादा फोकस देखा है जिसमें भारत भी शामिल है. इन देशों के एटीएम को भेदना आसान है. इसके अलावा इन एटीएम में अभी भी पुराने ऑपरेटिंग सिस्टम Windows XP यूज किए जाते हैं. इसलिए ये सॉफ्ट टार्गेट हैं.'

ये हैं वो पांच वजहें जिनकी वजह से कैशलेस इकॉनोमी दूर की कौड़ी है

कैशलेस इकॉनोमी के फ्रॉड से निपटने के लिए नाकाफी है IT Act
साइबर सिक्योरिटी के जानकार और सुप्रीम कोर्ट के वकील नीरज अरोड़ा का मानना है कि भारत का आईटी ऐक्ट ऑनलाइन फ्रॉड से निपटने के लिए काफी नहीं है. उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार को बताया है कि आईटी ऐक्ट की धारा 66,66A,66C और 66D जो फिशिंग, फर्जी ईमेल लिंक और फ्रॉड से निपटने के लिए है, लेकिन इसके तहत पुलिस दोषी को हिरासत में नहीं ले सकती है. इन सारे मालों में दोषी को बेल मिल जाती है.

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डेटा प्रोटेक्शन के लिए भी कोई ठोस कानून नहीं है, इसलिए कस्टमर्स को इस बात का डर होना लाजमी है कि उसका डेटा कोई चुरा न ले. इसके अलावा न तो कोई प्राइवेसी कानून है जिससे कम से कम ई-ट्रांजैक्शन के दौरान कस्टमर्स इस बात को लेकर श्योर हो सकें की वो सुरक्षित हैं.

कमजोर साइबर सिक्योरिटी और रैंजमवेयर
साइबर सिक्योरिटी के जानकारों का मानना है कि भारतीय कानून रैंजमवेयर के खतरों के लिए पर्याप्त नहीं है. मौजूदा दौर में रैंजमवेयर का खतरा भारत में तेजी से बढ़ रहा है जिसके तहत लोगों के कंप्यूटर्स को एन्क्रिप्ट करके उसे खोलने के लिए उनसे पैसे मांगे जाते हैं. सिक्योरिटी एजेंसियों की मानें तो भारत में ये खतरा दूसरे मुल्कों के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है, क्योंकि यहां इसके रोकथाम के लिए कुछ पुख्ता नहीं है. ऐसे मामलों में भी दोषी को बेल मिल जाती है.

बैंकों में लूट कम होगी और साइबर लूट ज्यादा होगी
कैशलेस इकॉनोमी के मामले में स्वीडन नंबर-1 है. यहां बैंकों में लूट कम हुई हैं. 2008 में 110 लूट हुई जबकि 2011 में सिर्फ 16. यह आंकड़ा 30 सालों में सबसे कम रहा. लेकिन इसका दूसरा पहलू यह रहा है कि यहां साइबर क्राइम्स में बढ़ोतरी आ गई. स्पीडिश नेशनल काउंसिल फॉर क्राइम प्रिवेंशन के मुताबिक साइबर बैंक फ्रॉड तेजी से बढ़े और 2011 में 20,000 पहुंच गए जबकि 2000 में सिर्फ 3,304 ही थे.

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स्वीडन ऐसा देश है जिसे ग्लोबल इनफॉर्मेंशन टेक्नॉलोजी में नंबर-1 माना जाता है. स्वीडन में इतने सिक्योरिटी मेजर्स के बाद भी जब साइबर लूट बढ़ सकती है तो भारत जैसे देश जो जहां अभी भी एटीएम में 15 साल पुराना ऑपरेटिंग सिस्टम यूज किया जा रहा है, इसका क्या होगा? जाहिर साइबर क्रिमिनल्स की तादाद बढ़ेगी और लोग इसके शिकार भी होंगे.

स्लो इंटरनेट स्पीड
ज्यादातर कैशलेस ट्रांजैक्शन के लिए यूजर्स को अच्छी स्पीड वाले इंटरनेट की जरुरत होती है. लेकिन भारत में इंटरनेट की स्थिति काफी निराशजनक है. ऐसे में सेशन टाइम आउट, पेमेंट फेल्ड, इंटरनेट डिसकनेक्ट, नेटवर्क एरर और ओटीपी का समय पर न मिलना लोगों के दिनचर्या में शामिल हैं. ये छोटी प्रॉब्लम कही जा सकती हैं, लेकिन यह गंभीर हैं, क्योंकि कई बार इन वजहों से काम हर्ज होता है. इसके अलावा मौजूदा समय में यह भी देखा जा रहा है कि वक्त बे वक्त POS मशीन काम करना बंद कर देती हैं और ऐसे में आपके पास कैश न हो तो आप जरूरी सामान तक नहीं खरीद सकते.

रोजमर्रा की इलेक्ट्रॉनिक समस्याएं
कैशलेस ट्रांजैक्शन के लिए स्मार्टफोन, पर्सनल कंप्यूटर और इंटरनेट कनेक्टिविटी की जरूरत होती है. लेकिन अगर आपका फोन अचानक बंद हो गया या बैटरी खत्म हो गई तो आप क्या करेंगे? नेटवर्क चला गया तो क्या करेंगे?

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अगर आपके डिजिटल वॉलेट को किसी ने रिमोटली शट डाउन कर दिया तो क्या होगा?

बैंकिंग से जुड़ा आपका पर्सनल डेटा कहीं न कहीं सर्वर पर स्टोर होगा जहां से चुराना हैकर्स के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं है.

ये सब काफी बेसिक समस्याएं हैं, क्योंकि अगर विष्तार से बताया जाए तो ये तो बिना इंतजाम के कैशलेस इकॉनोमी के खतरे और भी भयावह लगेंगे. इन समस्याओं को बिना निपटाए और साइबर सिक्योरिटी को मजबूत किए बगैर कैशलेस इकॉनोमी बनाने की बातें करना थोड़ा अजीब है.

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