
महाराष्ट्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है. दरअसल, हाईकोर्ट ने अपने आदेश में भीमा कोरेगांव हिंसा की जांच पूरी करने की अवधि बढ़ाने के निचली अदालत के आदेश को निरस्त कर दिया था. राज्य सरकार की इस अपील पर 29 अक्टूबर को सुनवाई होगी.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को निचली अदालत के उस फैसले को निरस्त कर दिया था जिसमें महाराष्ट्र पुलिस को हिंसा के इस मामले में जांच पूरी करने और आरोप-पत्र दायर करने के लिए ज्यादा समय दिया गया था. भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में वकील सुरेंद्र गाडलिंग समेत कई जानेमाने सामाजिक कार्यकर्ताओं को आरोपी बनाया गया है.
हाईकोर्ट में सिंगल जज मृदुला भाटकर ने कहा कि आरोप पत्र पेश करने के लिए अतिरिक्त समय देना और गिरफ्तार लोगों की हिरासत अवधि बढ़ाने का निचली कोर्ट का आदेश गैरकानूनी है. हाईकोर्ट के इस आदेश से गडलिंग और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं की जमानत पर रिहाई का रास्ता खुल गया. जबकि महाराष्ट्र शासन के अनुरोध पर जज ने अपने आदेश पर स्टे फौरी तौर पर स्टे लगा दिया है. इसके साथ ही राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने के लिए 1 नवंबर तक का समय दिया है.
बता दें कि पुणे पुलिस ने गडलिंग समेत प्रोफेसर शोमा सेन, सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धवाले, महेश राउत और केरल की रहने वाली रोना विल्सन को 1 जून को गिरफ्तार किया था. पुलिस के मुताबिक 1 जनवरी 2018 को कोरेगांव हिंसा में इनकी भूमिका संदिग्ध है.31 दिसंबर 2017 को भीमा कोरेगांव में पेशवाओं पर महार रेजिमेंट की जीत के 200 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में पुणे के शनिवारवाड़ा में यल्गार परिषद ने जश्न मनाने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया गया. इसमें सुधीर धावले, पूर्व जस्टिस बीजी कोल्से पाटिल के अलावा कई अन्य संगठन दलितों और अल्पसंख्यकों पर मौजूदा सरकार के अत्याचारों का दावा करते हुए एकजुट हुए थे. इस जश्न के अगले ही दिन भीमा कोरेगांव में हिंसा हो गई.