
पुणे का विशेष अदालत भीमा-कोरेगांव एल्गार परिषद पुलिस मामले में गिरफ्तार तीन कथित माओवादियों की जमानत अर्जी पर अंतिम निर्णय शुक्रवार को सुनाएगा. पुणे के विशेष अदालत के न्यायमूर्ति के डी वडने इस पर फैसला करेंगे.
इन तीन आरोपियों के नाम हैं सुधा भारद्वाज, वेरनॉन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा. 28 अगस्त को गिरफ्तार किए गए पांच कथित माओवादी नेताओं को पुणे लाया जाना था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में गिरफ्तारी को चुनौती देने के बाद 26 अक्टूबर तक पांचों आरोपियों को हाउस अरेस्ट में भेज दिया गया.
भीमा-कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में गिरफ्तार किए गए 5 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को अपना फैसला सुनाते हुए इस मामले में दखल देने से मना कर दिया, साथ ही पुलिस को अपनी जांच आगे बढ़ाने को कहा था.
सरकारी वकील और आरोपियों के वकीलों की दलीलों को सुनने के बाद अब अंतिम निर्णय 26 अक्टूबर को सुनाया जाएगा जिस पर यह तय होगा कि सुधा भारद्वाज, वेरनॉन गोंजाल्विस और अरुण फरेरा को जमानत मिलेगी या नहीं.
अन्य दो आरोपियों गौतम नवलखा और वरवरा राव की जमानत पर सुनवाई पुणे में नहीं होगी क्योंकि नवलखा को 1 अक्टूबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने नवलखा की हाउस अरेस्ट का निर्बंध खत्म करते हुए उन्हें राहत दी थी, वहीं आरोपी राव ने हैदराबाद हाईकोर्ट में पुणे पुलिस की कार्रवाई को चुनौती दी है और वहीं अदालती कार्रवाई चल रही है.
जून महीने में गिरफ्तार किए गए पांचों आरोपियों पर माओवादी संस्थाओं से संबध रखने के गंभीर आरोप हैं. साथ में एल्गार परिषद के दौरान देशद्रोही बयानबाजी करने का भी आरोप है. इन पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जैसा हत्याकांड करने की साजिश का आरोप है इनमे से दो आरोपियों के जमानत अर्जी पर नवंबर एक तारीख के बाद सुनवाई होगी.
जून में गिरफ्तार शोमा सेन और एडवोकेट सुरेंद्र गडलिंग ने भी जमानत के लिए अर्जी दाखिल की हुई है जिस पर सुनवाई हो रही थी, लेकिन एडवोकेट सुरेंद्र गडलिंग जिन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट में पुणे अदालत के निर्णय को चुनौती दी थी जिसमें पुणे पुलिस को चार्जशीट प्रस्तुत करने के लिए अतिरिक्त 90 दिनों का समय देने के अर्जी को मंजूरी दी थी.
मंगलवार को हाईकोर्ट ने चार्जशीट प्रस्तुत करने के अतिरिक्त 90 दिनों के समय को गलत ठहराया, लेकिन हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ पुणे पुलिस एक नवंबर तक सुप्रीम कोर्ट जा सकती है.