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बीजेपी की राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव में वोट बैंक पॉलिटिक्स

ऐसा लग रहा है कि रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी चुनावी रणनीति के बिसात बिछाना शुरू कर दिया है.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
हिमांशु मिश्रा
  • नई दिल्ली,
  • 21 जून 2017,
  • अपडेटेड 5:19 AM IST

एनडीए राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर बिहार के मौजूदा गर्वनर रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा कर चुकी है. जिस तरह से एनडीए के अलावा कई विपक्षी दलों ने रामनाथ कोविंद का समर्थन करने का भरोसा बीजेपी नेतृत्व को दिया है उसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि देश के अगले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ही हो सकते हैं.

राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा करने के लिये बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने खुद प्रेस कॉंफ्रेंस की जिसमें उन्होंने कई बार कहा कि रामनाथ कोविंद दलित समाज से आते हैं. उसके बाद कई मंत्रियों और बीजेपी के नेताओं ने 'रामनाथ कोविंद दलित वर्ग से आते हैं' का जिक्र करते हुए मीडिया में बयान और ट्वीटर पर ट्वीट किए.

ऐसा लग रहा है कि रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए अपनी चुनावी रणनीति के बिसात बिछाना शुरू कर दिया है.

सूत्रों की मानें तो रामनाथ कोविंद मूलतः संघ या बीजेपी की पृष्ठभूमि से नहीं आते हैं. वे नब्बे के दशक की शुरुआत में बीजेपी में शामिल हुए लेकिन उसके बाद भी पार्टी के कई दलित नेताओं को दरकिनार करते हुए उन्हें चुनना पार्टी के अंदर और बाहर सभी को आश्चर्य चकित इसलिए करता है क्योंकि पार्टी में कई दलित नेता हैं जिनका प्रभाव शायद रामनाथ कोविंद से ज्यादा अपने समाज पर रहा है और वर्तमान में भी है.

इस फैसले से साफ झलकता है कि चुनावी समीकरणों के अनुसार वोट बैंक में दलित फैक्टर को ध्यान में रखकर जिस तरह से रामनाथ कोविंद का नाम राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए घोषित किया गया है उसके बाद लगता है कि कहीं वोट बैंक राजनीति के मकड़जाल को भेदने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी आने वाले दिनों में उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए उम्मीदवार का नाम दक्षिण भारत या फिर मुस्लिम समाज से ना कर दे क्यूंकि इन दोनों ही एरिया में बीजेपी कमजोर है.

अब सवाल ये हैं कि बीजेपी के नेता हमेशा कहते हैं कि वो धर्म के आधार पर और जाति के आधार पर राजनीति नहीं करते हैं लेकिन राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को दलित बता कर पार्टी क्या संदेश देना चाहती है. एक बात तो साफ है कि बीजेपी अब विचारधारा से नहीं आइडिया से चलती है वो भी चुनाव जिताने वाले.

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