
रक्षा मंत्री मनोहर परिकर की अध्यक्षता वाली रक्षा खरीद परिषद ने सालों से लंबित एम-777 हॉवित्जर तोपों के सौदे पर गुरुवार को मुहर लगा दी. इसी के साथ 1986 में बोफोर्स तोप के बाद अब सेना को एक कारगर तोप मिलने का रास्ता साफ हो गया है.
बोफोर्स के बाद मिलेगा नया तोप
रक्षा खरीद परिषद ने अमेरिका से 145 अल्ट्रा लाइट हॉवित्ज़र तोपों के सौदे को हरी झंडी दे दी है. इसके साथ ही अच्छी तोप के मामले में सेना का तीस साल पुराना इंतज़ार ख़त्म जल्द ही ख़त्म होने जा रहा है. रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर की अध्यक्षता वाली डीएसी ने 1986 में बोफोर्स के बाद पहली बार सेना के लिये बढ़िया तोप खरीदने का रास्ता साफ कर दिया है. अब यह मामला कैबिनेट की सुरक्षा मामलों की समिति के पास जाएगा.
7000 करोड़ की रक्षा डील
7000 करोड़ की इस डील के तहत अमेरिका भारत को 145 नई तोपें देगा. ऑप्टिकल फायर कंट्रोल वाली हॉवित्ज़र से तक़रीबन 40 किलोमीटर दूर स्थित टारगेट पर सटीक निशाना साधा जा सकता है. डिजिटल फायर कण्ट्रोल वाली यह तोप एक मिनट में 5 राउंड फायर करती है. 155 एम एम की हल्की हॉवित्ज़र सेना के लिए बेहद अहम होगी, क्योंकि इसको जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी क्षेत्रों में आसानी से ले जाया जा सकता है. सेना में माउंटेन स्ट्राइक कोर के गठन के बाद इस तोप की ज़रुरत और ज़्यादा महसूस की जा रही थी.
कीमत को लेकर अटकी हुईं थी बात
इससे पहले कई सालों से लगातार होवित्जर की क़ीमत पर बात अटकी हुई थी. बात बिल्कुल साफ है कि अरुणाचल में चीन से सटी सीमा पर सेना को इस तोप की ख़ास दरकार थी. हॉवित्जर 155 एम एम की अकेली ऐसी तोप है जिसका वज़न 4200 किलो से कम है. देश में ही 155 एम एम की तोप बनाने की ऑर्डनेन्स फैक्ट्री बोर्ड की कोशिशें उतनी कामयाब नहीं रही हैं. ट्रायल के दौरान गन बैरल फटने की घटनाएं भी सामने आईं थीं. ज़ाहिर है हॉवित्ज़र का आना सेना में आर्टिलिरी के लिये मील का पत्थर साबित होगा.