
यूं तो सर्जिकल के मायने सर्जरी से ही जुड़े हुए हैं, लेकिन ये गजब का इत्तेफाक है कि दो सर्जिकल कार्रवाईयों की तैयारी एक साथ चल रही थी और वो भी देश के शिखर पर. एक तरफ भारतीय सेना के जांबाज जवान थे, तो दूसरी तरफ दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स के डॉक्टर.
जब सेना पीओके में घुसकर पाकिस्तान की पनाह में पल रहे आतंकवादियों का सर्जिकल स्ट्राइक में सफाया कर रही थी, ठीक उसी वक्त लेह में दिल्ली से पहुंची एम्स के करीब 15 डाक्टरों की टीम भी अलग-अलग सर्जरी की तैयारी कर रही थी. संयोग ऐसा कि सर्जिकल स्ट्राइक के दूसरे दिन एम्स के डाक्टरों की टीम ने तमाम इलाज, जांच पड़ताल के साथ ही 17 हिप और घुटना बदलने वाली सर्जरी को अंजाम दिया.
सर्जरी करने वाली टीम के लीडर एम्स के सीनियर प्रोफेसर डॉ चंद्र शेखर यादव के मुताबिक देश के शिखर से ये जांबाज जवानों को एक सैल्यूट है क्योंकि लेह जैसे ऊंचे इलाके में कोई भी सर्जरी करना आसान काम नहीं है, लेकिन यहां इतनी दुर्गम परिस्थितियों में हमने 17 रिप्लेसमेंट सर्जरी कर डालीं. डाक्टरों ने सितंबर के आखिरी हफ्ते में इन ऑपरेशन को अंजाम दिया और अब मरीज अपने पैरों पर खड़े होने लायक हालात में आ गए हैं.
जल्दी खराब होते हैं लोगों के घुटने
दरअसल शिखर पर सर्जरी का ये मिशन लेह के स्थानीय प्रशासन ने एम्स और एनजीओ अशोक मिशन के साथ मिलकर तैयार किया था. 2013 से लगातार इस तरह के सर्जरी कैंप लेह और कारगिल में आयोजित हो रहे हैं. पहाड़ी इलाकों में आम समस्या होती है कि यहां लोगों के घुटने और कूल्हे जल्दी खराब हो जाते हैं क्योंकि यहां समतल जमीन नहीं होती. लेकिन दूरदराज के इलाकों में इलाज की सुविधा नहीं होती और दिल्ली या किसी बड़े शहर में इलाज कराना हर किसी के लिए संभव नहीं होता.
लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज
ऐसे में एनजीओ अशोक मिशन और लेह प्रशासन की ओर से एम्स के साथ मिलकर देश के नामी डाक्टरों को ही साल में एक बार लेह और कारगिल में इकठ्ठा किया जाता है और मरीजों की पहचान कर उनकी सर्जरी की जाती है. समुद्रतल से साढ़े ग्यारह हजार फीट की ऊंचाई पर सर्जरी आसान नहीं होती, इसीलिए यहां होने वाली सर्जरी को लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में भी दर्ज किया गया है.
अब तक की जा चुकी है 66 रिप्लेसमेंट सर्जरी
एम्स के आर्थोपेडिक्स डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ चंद्रशेखर यादव के मुताबिक लेह में ऑक्सीजन की भी कमी हो जाती है और सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले सामान का वजन भी टनों में होता है. ऐसे में सर्जरी को अंजाम देना अपने आप में एक मुश्किल काम है. 2013 से लेकर अब तक लेह और कारगिल में कुल 66 रिप्लेसमेंट सर्जरी की जा चुकी हैं. इनमें से 60 घुटनों का रिप्लेसमेंट और 6 हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी शामिल हैं.